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________________ ... राजप्रश्नायसत्र ____ स्त्या मणिपीठिका यत्र व पौरस्त्या जिनप्रतिमा तत्र व उपागच्छति, तदेव, दाक्षिणात्या मणिपीठिका दाक्षिणात्या जिनप्रतिमा तदेव । यत्र व दाक्षिणा त्यश्चैत्यक्षस्तत्र व उपागच्छति, तदेव । यत्र व महेन्द्रध्वजो यत्र व दाक्षिणा त्या नन्दापुष्करिणी तत्र व उपागच्छति, लोमहस्तक परामशति, तोरणांश्व मणिपेढिया, जेणेव उत्तारिला जिणपडिमा, तं चेव सब, जेणेव पुरस्थिमिल्लामणिपेढिया, जेणेच पुरथिमिल्ला जिणपडिमा, तेणेच उबागच्छद) इसके बाद वह जहां उत्तरीय मणिपीठिका थी और उत्तरीय जिनप्रतिमा धी-वहां पर आया-यहां पर भी उसने पूर्वोक्त सब कार्य किये. इसके बाद वह जहां पौरस्त्यमणिपीठिका और पौरस्त्य जिनमतिमा थी-वहां पर आया (तं चेव) वहां आकर के भी उसने वे हो पूर्वोत्त सब कार्य किये (दाहि. णिल्ला मणिपेढिया दाहिणिल्ला जिणपडिमा, तं चेव) इसके बाद वह जहां दाक्षिणात्य मणिपीठिका एवं दाक्षिणात्य जिणप्रतिमा थी-वहां पर भी आकर के उसने वे ही सब पूर्वोक्त कार्य किये (जेणेच दाहिणिल्ले चेइयरुवखे तेणेव उवागच्छइ) इसके बाद वह जहाँ दक्षिणात्य चैत्यक्ष था वहां पर आया (तचेव) वहां आकर के भी उसने सब ही पूर्वोक्त कार्य किये (जेणेब महिंदज्झये, जेणेव दाहिणिल्ला नंदा पुखरिणी तेणेव उवागच्छई) इसके बाद वह जहां महेन्द्रध्वज था वहां पर आया-वहां से फिर जहां नन्दापुष्करिणी थी-वहां आया यहां आकर के उसने (लोमहत्थग परामु.. जेणेव पुरथिमिल्ला मणिपेदिया, जेणेव पुरथिमिल्ला जिणपडिमा, तेणेव उवागच्छइ) त्या२ ५४ी. त्या उत्तरीय माहिती मने उत्तरीय प्रतिभा હતી ત્યાં ગયા. ત્યાં જઈને તેણે પૂર્વ કથિત બધાં કાર્યો યોગ્ય રીતે સંપન્ન કર્યા ત્યાર પછી તે જયાં પોરય મણિપીઠિકા અને પીરસ્ય જિનપ્રતિમાં હતી ત્યાં ગયો. (त चेव) त्याने पर तेरी पूर्वेति मध या सपन्न या. (दाहिणिल्ला मणिपेडिया, दाहिणिल्ला जिणपडिमा, तं चेव) त्या२ पछी ते या दाक्षिणात्य મણિપીઠિકા અને દક્ષિણાત્ય જિનપ્રતિમા હતી ત્યાં જઈને પણ તેણે પૂર્વોકત બધાં आर्यो पूरा ध्या. (जेणेव दाहिणिल्ले चेइयरुक्खे तेणेव उवागच्छइ) त्या२ पछी तयां दक्षिणात्य शैत्यवृक्ष हेतु त्यां गया. (त चेव) त्यां न पशु तेग वाहत घi या योग्य शत पूरा ध्या. (जेणेव महिंदज्झये, जेणेव दाहिणिल्ला नंदा पुक्खरिणी तेणेव उवागच्छज्ञ) त्या२ पछी भडन्द्र त२३ गया. त्यांथी पछी ते त्या नारिणी ती त्यां गया. त्याने तेथे (लोमहत्थग परामुसइ
SR No.009342
Book TitleRajprashniya Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages721
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size55 MB
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