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________________ सुबोधिनी टीका स्. ८१ पर्याभविमानस्य देव कृतसज्जीकरणादिवर्णनम् ५९७ अप्येक के देवा पीनयन्ति अप्येक्के देवा लासयन्ति अप्येक के देवा हर्कुर्वन्ति अप्ये. कके देवा वीणयन्ति ताण्डयन्ति अप्येक के देवा वल्गन्ति आस्फोटयन्ति अप्येक देवा आस्फोटयन्ति वल्गन्ति,अप्येकके देवास्त्रिपदी छिन्दन्ति, अप्येकके देवा हयहेषित' कुर्वन्ति, अप्येकके देवा हस्तिगुलगुलायित कुर्वन्ति, अध्येकके देवा रथघनघनायित कुर्वन्ति अप्येकके देवा हयहे. न्तमध्यावसानिक कितनेक देवोंने "वुत्" इस प्रकार के शब्द का उच्चारण किया (आपेगइयो देवा पीणांत, अप्पेगड्या देवा लासे ति, अप्पेगइया देवा हकारे ति, अप्पेगइया देवा विणति, तंडवेंति) कितनेक देवोंने अपने आपको फुला लिया कितनेक देवोंने लास्य नामक कृत्य किया, कितनेक देवोंने "हकहक" इस प्रकार के शब्द का उच्चारण किया, कितनेक देवोंने वीणा के जैसे शब्दों को उच्चारण किया. कितनेक देवोंने ताण्डव नृत्य किया (अप्पेगइया देवा वग्गंति अटफोडे ति) कितनेक देव कूदे और फिर पीछे से उन्होंने तालियां बजाई (अप्पेगइया देवा अप्फोडे ति, बग्गति) कितनेक देवोंने पहिले तालियां बजाई बाद में वे कूदे, (अप्पेगइया देवा तिवई छिंद ति) कितनेक देवोंने तीन पैर आगे कूदनका कार्य प्रारंभ किया (अप्पेगइया देवा हयहेसियं करेंति) कितनेक देवोंने घोडे के हिनहिनाने जैसे शब्दों का उच्चारण किया. (अष्पेगइया देवा हत्थिगुलगुलाइयं करेंति) अस्पेगइया देवा रहधणषणाइयं करें ति) कितनेक देवोंने हाथी के गुलगुल जसे शब्दों का उच्चारण किया. कितनेक देवोंने रथ के घन घन जैसे शब्दों का. પાતિક અને લેકાંતમધ્યાવસાનિક આ ચારે જાતનાં અભિનયે છે. કેટલાક દેવોએ भुत' मा तना श य्यार यु, (अप्पेगइया देवा पीणति अप्पेगइया देवा लासेंति, अप्पेगइया देवा हक्कारेंति अप्पेगड्या देवा विण ति, तडति) કેટલાક દેવોએ પિતાના શરીરને ફૂલાવી દીધું, કેટલાક દેએ લાસ્ય નામક નૃત્ય ર્યું, કેટલાક દેવોએ હક હક” આ જાતના શબ્દનું ઉચ્ચારણ કર્યું. કેટલાક દેવો ये वी पी मनु न्या२६५ ज्यु, ८सा वोये तांडव नृत्य यु (अप्पेगइया देवा वग्गांति अप्फोडेति) ८६४ हेपोये ४ भार्या भने पछी टीम Dusi. (अप्पेगइया देवा अप्फोडे ति, गति) 32सा वोमे .gक्षा ४२di. पाणु मा हामी भावानुभम २३७युः (अप्पेगइया देवा हयहेसिय, करे ति) या वो घाना 2. शहरयार ४यु (अप्पेगहया देवा.हस्थिगुलगुलाइयं करेंति, अप्पेगइया देवा रहघणघणाइयं करे ति) ४८४ पोरमे હાથી જેવા “ગુલ ગુલ શબ્દનું ઉચ્ચારણ કર્યું, કેટલાક દેવોએ રથના “ઘનઘન જેવા
SR No.009342
Book TitleRajprashniya Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages721
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size55 MB
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