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________________ सुबोधिनी रीका. सू. ८१ उपपातलमावर्णनम् वर्णावासः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-रत्नमयानि पत्रकाणि, रिष्टमय्यौ कम्बिके, तपनीयमयो दवरकः, नानामणिमयो अन्थिः, बैडूर्यमय लिप्यासनम् रिष्टमयं छादनम् तपनीयमयी शृक्षला, रिष्टमयो सषी, वजमयी लेखनी, रिष्टमयानि अक्षराणि, धार्मिक शास्त्रम् । व्यवसायसभायाः खलु उपार अष्टाष्ट मङ्गलकानि०। तस्याः खलु व्यवसायलमायाः उत्तरपोरस्त्ये अत्र खलु नन्दा पुष्करिणी प्रज्ञप्ता दसहशी । तस्याः खलु नन्दायाः पुष्करिण्याः उत्तरपौरस्त्ये महदेक वलिपीठ प्रज्ञप्त, सर्वरत्नमया अच्छं यावत् प्रतिरूपम् ।सू. ८१॥ इमेघारूचे वण्णाबासे पण्णत्ते) इस पुस्तकरत्न का वर्णन करने वाला पदसमूह इस प्रकार से है-(तंजहा रयणामयाइं पत्तगाई, रिठ्ठामईओ कंबियाओ तवणिज्जमए दोरे, णाणामणिमए गंठी, वेरुलियामए लिप्पासणे, रिठ्ठलए छेयणे) इसके पत्र रत्नमय हैं. इन पत्रों के दोनों पृष्टभागरत्नमय हैं, डोरा इसका सुचर्णमय हैं. विविधमणिमय गांठ है और लिप्यासन-दाबात वैडूर्यरत्नमय हैं। आच्छादन इसके रिष्टरत्नमय हैं। (तवणिज्जमई संकला) इस मपीपात्र की शहला तपनीय सुवर्ण की बनी हुई है। (रिडामईलसी, बहरामईलेहणी. रिहामयाइ अक्खराइ, धम्मिए सन्थे) रिष्टरत्न की बनीहुई इसकी स्याही है. वज्ररत्न की बनी हुई कलम है रिष्टरत्नस्य इसके अक्षर है यह धार्मिक, शास्त्र है। (अवसायसभाए ण उवार अष्ट मंगलगा०) व्यवसायसभा के ऊपरभाग में आठ २ मंगलक है (तीसे ण ववसायसभाए उत्तरपुरस्थिमेण एल्थ ण नंदा पुक्खरिणी पण्णता) इस व्यवसायसभा के ईशानकोने में एक नंदापुष्करिणी कही गई है। (हरियसरिसा) यह नन्दापुष्करिणी हूद वण्णावासे पण्णशे) मा पुस्त४२त्ननु वर्णन २मा प्रमाणे छ, (तंज हा) प्रेम (रयणा मयाइपत्तमाइंस्टिामइओ कंबियाओ तवणिज्जमए दोरे, णाणामणिमए गठी: वेलियामए लिप्पासणे, रिट्ठमए छेयणे) येन पत्रो २त्नमय छ, को पत्रोन। અને પૃષ્ઠ ભાગે રિટરત્નમય છે, એની દોરી સુવર્ણમય છે, વિવિધ મણિમય એની ગાઠે છે અને લિપ્યાસન-ખડિ–બેડૂર્યરત્નમય છે. એનાં આચ્છાદને રિપ્ટરત્નમય છે. (तवणिज्जमई संकला) PAL [3था श्रमदा तपनीय सुपर्णनी भनेकी छ. (रिट्रामई मसी, बहरामई लेहणी, रिठ्ठामयाई, अक्खराई, धम्मिए सत्थे) अनी શાહી રિષ્ઠરત્નની બનેલી છે. કલમ વજીરત્નની બનેલી છે. અક્ષરે રિક્ટરમય છે. એ श्यामि शास छ. ( ववसायसभाए णं उरि अट्ठ मंगलगा) व्यवसाय समाना परिणाम मा8 माह छ. (तीसे ण चवसायसभाए उत्तरपुरस्थिमेण एत्थ ण नंदा पुक्खरिणी पण्णत्ता) से व्यवसाय समाना · शानामा से नहा पुरिणी वाय छ. (हरिय सरिसा) मा नारिणी ९६ (यश) adal छ.
SR No.009342
Book TitleRajprashniya Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages721
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size55 MB
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