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________________ सुबोधिनी रीका. सू. ७६ सुधर्मसभावर्णनम् ५२५ स्तम्सः प्रज्ञप्ता, पष्टिं योजनानि ऊर्ध्वमुञ्चत्वेन, योजनम् उद्वेधेन, योजनं विष्कः । भेण अष्ट चत्वारिंशदस्त्रिका, अष्ट चत्वारिंशत्कोटिकः, अष्टचत्वारिंशद्विग्रहिकः. शेषं यथा महेन्द्रध्वजस्थ । माणवकस्य खलु चैत्यस्तम्भस्थ उपरि द्वादश योजनानि अवगाहय अधस्तादपि द्वादश योजनानि वर्जयित्वा, मध्ये द्वात्रिंशति योजनेषु अन खलु बहवः सुवर्णरूप्यमयाः फलकाः मजसा। सोलह योजन की है, तश बाहल्य से-स्थूलता की अपेक्षा से आठ योजन की है. यह सर्वात्मना मणिमय है यावत् प्रतिरूप है (तीसे णं मणिपेढियाए उवरि एत्थ णं माणवए चेइयखंभे एपणत्ते) इस मणिपीठिका के ऊपर एक एक माणवक नाम का चैत्यस्तंभ कहा गया हैं. (सडिंजोयणाई उ उच्चत्तेण', जोयण उब्बेहेण जोयण विख सेण अडयालीसह आंसिए, अडयालीसइ कोडीए, अडवीसइ विग्गहिए, सेसंजहा महिंदज्झयस्स) इस चैत्यस्तंभ का अचाई ६० योजन की हैं. उन्हेध (गहराई) इसका१ योजन का हैं एक योजन का ही इसका विस्तार हैं, इसके कोने ४८ हैं, ४८ ही इसके अग्रभाग हैं और ४८ ही इसके विभाग हैं इसके अतिरिक्त और सब वर्णन इसका महेन्द्र ध्वज के वर्णन जैसा ही है, (माणवगस्स ण चेइयखभस्ल उबरि चारस. जोयणाई ओगाहेत्ता हेठ्ठावि बारसजोयणाईवजेत्ता, मज्झे बत्तीसाए जोयणेतु एत्थण बहवे सुवण्णरुप्पमया फलगा पण्णत्ता.) इस माणवक स्तंभ के ऊपर १२ योजन जाकर और नीचे के १२ योजन छोडकर बाकी के ३६ योजनों में જન જેટલી છે. તેમજ બાહલ્યથી-સ્કૂલતાની અપેક્ષાર્થ–આઠ જન જેટલી છે. मा सामना भणुिमय छ यावत् प्रति३५ छ. (तीसे णं मणिपेदियाए उपरि एत्थर्ण माणवए चेइयखंभे पण रो) मा भाशुभयपानी ७५२ मे मार बामे त्यस्त महेवाय छ. (सहि जोयणाई उड्ड उच्चत्तेणं जोयणं उब्वेहेणं जोयणं विखंभेणं अडयालीसई सिए, अडयालीसइ कोडोए, अडयालीसह विग्गहिए, सेसं जहा महिंदज्झयस्स) मा शैत्यस्त'मनी या ६० योन की છે. ઉપ (પાયાનું ઊંડાણ) ૧ જન જેટલો છે. એક જન જેટલે જ એમનો વિસ્તાર છે. ૪૮ એના ખૂણાઓ છે. ૪૮ એના અગ્રભાગે છે અને ૪૮ એના વિભાગો છે, એ સિવાયનું બધું વર્ણન એનું મહેન્દ્રધ્વજના વર્ણન પ્રમાણે જ સમજવું જોઈએ. (माणवगस्स गं चेइयखंभस्स उरि बारसजोयणाई ओगाहेत्ता हेहावि वारसजोयणाई वज्जेत्ता, मज्झे बत्तीसाए जोयणेसु एत्थ णं बहवे सुवण्णरुप्पम या फलगा पण्णत्ता) मा भाशुव: स्मनी ५२ १२ यौन पहिचान भने नीये डसा ૧૨ જન સિવાય શેષ ૩૬ યોજનામાં ઘણું સુવર્ણપ્યમય ફલકે કહેવામાં આવ્યાં છે.
SR No.009342
Book TitleRajprashniya Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages721
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size55 MB
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