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________________ ' ' सुबोधिना टोका' स ७० पद्मवरवेदिकावनषण्डवणनच याः खलु तत्र तत्र तस्मिन् तस्मिन् भागे वेदिकासु-उपवेशनस्थानरूपासु वेदिकाबाहुपु वेदिकापार्थेषु च वेदिकाफलके वेदिकापट्टेषु च, वेदिकापुटान्तरेषु. 'वेदिकापुटानि-वेदिकायुग्मानि-तदन्तरेषु तदन्तरालमागेषु च, तथा-स्तम्भेषु स्तम्भबाहुषु, . स्तम्भशिरस्सुस्तम्भशिरोभागेषु, स्तम्भपुटान्तरेषु-स्तम्भयुग्मान्त. : रालभागेषु, तथा-मूची-फलनद्वयसन्धानोपकरणभूतेषु कील केषु सुचीमुखेसूचीभिद्यमानफलकप्रदेशप्रत्यासन्नदेशेषु, तथा-मूचीफलकेषु-सूचीभिभिद्यमाना ये फलकप्रदेशास्तेऽप्युपचारात् सूचीफलकास्तेपु-सूचीनानुपर्यवीवर्तमानेषु फलकप्रदेशेषु, सूचीपुटान्तरेषु-सूचीयुग्मान्तराल भागेषु तथा-पक्षेषु-वेदिकैकदेशेषु, पक्षबाहुषु वेदिकैकदेश विशेषेषु, पक्षपर्यन्तेषु-पक्षप्रान्त भागेषु, पक्षपुटान्तरेषु-पक्षयुग्मानारालभागेषु च बहुकानि प्रचुरागि उत्पलानि-कुवल्यानिचन्द्रविकासिकमलानि, पद्मानि-सूर्यविकासिकमलानि, कुदानिचन्द्रविकासिकमलानि, नलिनानि ईपद्रतानि कमलानि, सुभगानि-कमलविशेषाः,सौगन्धिप्रभु कहते हैं-हे गौतम ! यह, पद्मवरवेदिका उस उस भाग में, उन २ उपवेशन स्थानों में, अपने आसपास में, अपने फलकों में-पहों में, “अपने युरनों के अन्तगाल भागों में, तथा स्तम्भों में, स्तम्भों के शिरोभागों में, स्तम्भयुग्म के अन्तरालभागों में, तथा फलकछय को आपस में जोड़ने बाली कीलिकों में, सूचीपुरखों में-सूचीयों ले भिद्यमान फलकप्रदेशों में-मुचियों के ऊपर नीचे वर्तमान फलकपदेशों में, सूचीपुटान्तरों में सूची युग्म के अन्तराल भागो में, तथा पक्षों में-वेदिका के एक एक देशमें, पक्षबाहुओं में-- वेदिका के एक . एक देश विशेष में पक्ष के प्रान्तभागों में पक्षपुटान्तरों में पक्षयुग्म के अन्तराल भागों में अनेक उत्पल हैं चन्द्रविकाशीकमल हैं, पद्म हैं---सूर्यविकाशी कमल है, कुमुद हैं-चन्द्रविकाशी कमल है नलिन है-कुछ २ लालर गाले कमल हैं, सुलग हैकमल विशेष हैं, सौगन्धिक हैं-कल्हार नायक कमल है, पुण्डरीक हैं ગૌતમ! આ પદમવરદિકા . તે ભાગમાં, તે તે ઉપવેશન સ્થાનમાં, પિતાના સમીક્ષા ના પ્રદેશમાં, પિતાના ફલકમાં-પટ્ટોમાં પોતાના સુમેના અંતરાલ ભાગમાં સ્તંભમાં સ્તંભના શિરોભાગમાં, સ્તંભયુમના અંતરાલ ભાગમાં તથા ફલકદ્રયને પરસ્પર જોડનારી બીલિયે, સૂચીમુખોમાં-સૂચીઓથી ભિધમાન લકપ્રદેશમાં, સૂચીઓની ઉપર નીચે વર્તમાન ફલક પ્રદેશમાં, સૂચી પુટાન્તરમાં, સૂચી યુમની અંતરાય ભાગોમાં, તથા પક્ષમાં–વેદિકાના એક એક દેશમાં પક્ષબાહુઓમાં–વેદિકાની એક એક દેશવિશેષમાં, પક્ષના પ્રાંત ભાગોમાં, પક્ષ પુરાન્તમાં–પયુમેના અંતરાલ ભાગોમાં -ji पटो छ-यन्द्रविाशीमो छ. पनो छ-सयाविशी भी छ. भुट्टो છે– ચન્દ્રવિકાશીકમળે છે, નલિને છે-સહેજ સહેજ લાલ રંગવાળા કમળે છે.
SR No.009342
Book TitleRajprashniya Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages721
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size55 MB
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