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________________ .३४ . ... ... .. राजप्रश्नीयम र प्रस्थापि आर्यस्य धार्मिकस्य सुवचनस्य श्रवणतया, किमङ्ग पुनः विपुल. स्यार्थस्य ग्रहणतया १ तद् गच्छामि खलु श्रमण भगवन्तं महावीरं वन्दे नमस्यामि सत्करोमि सम्मानयामि कल्याणं मजलं दैवतं चैत्यं पर्युपासे एतद मे प्रेत्य हिताय सुखाय क्षेमाघ निःश्रेयमाय आनुगामिकतायै भवि. वाले भगवान के नामगोत्र के श्रवण का भी महाफल होता है तो फिर उनके समक्ष जाना,, उनको वन्दना करना, उन्हें नमस्कार करना, उनसे प्रश्न पूछना, उनकी पर्युपासना-सेवा करना इनसे जो महाफल प्राप्त होता है उसके विषय में तो कहना ही क्या है ? (एगस्स वि आरियम्स धम्मियस्स सुक्यस्स सवणयाए किमंगपुण विउलस्प्त ग्रहस्स गहणयाए) एक भी आयं धार्मिक सुवचन के सुनने से जब जीव को महाफल (मोक्ष) प्राप्त होता है तो फिर उनसे विपुल अर्थ के ग्रहण से कितना महाफल जीव को प्राप्त न होता होगा (तं गच्छामि णं समणं भगवं महावीरं चंदामि, णमंसामि, सकारेमि, सम्मागेमि, कल्लाणं मंगलं देवयं वे इयं पज्जुवालामि) तो इस ये में जाउँ और श्रमण भगवान महावीर को बन्दना करूँ, उन्हें नमस्कार करूँ, उनका सत्कार करु, उनका सन्मान करूँ, वे भगवान् कल्याणकारक मङ्ग लरूप देव हैं और चैत्य-ज्ञानस्वरूप हैं, अतः मैं उनकी सेवा करूँ। (एयं मे पेचाहियाए सुहाए खमाए णिस्लेयसाए आणुगामियाए भविस्सइत्तिक वासणयाए) तो त्यारे तथा ३५वा मवानना नाम गोत्रमा नवयुथी न्यारे મહાપુણ્યફળની પ્રાપ્તિ થાય છે ત્યારે તેમની સામે જવાથી, તેમને વંદન કરવાથી તેમને નમસ્કાર કરવાથી, તેમને ધનવિષયક પ્રશ્નો કરવાથી, તેમની પJપાસના–સેવા–કરવાથી– रे भाडा एयानी प्राप्ति थती हो तेनी तो पात 4 शी?(एगस्स वि आरियस्म धम्मयस्स सुवयस्स सवणयाए किमंगपुण विउलस्स अट्ठस्स गहणयाए) એક પણ આર્યના ધામિક સુવચનને સાંભળવાથી જ્યારે જીવને મહાફળ (મોક્ષ) ની . પ્રાપ્તિ થાય છે તો પછી તેમનાથી વિપુલ અર્થ ગ્રહણ કરવાથી જીવને કેટલું બધું भडाण यतु डशे ? (त' गच्छामि ण समण भगवं महावीरं बंदामि, णम:सामि, सक्कारेमि, सम्माणेमि, कल्लाण मगलं देवयं चेइयं पज्जुवासामि) તે હમણાં જ હું ત્યાં જાઉં અને શમણુ ભગવાન મહાવીરને વંદના કરૂં, તેમને નમસ્કાર કરૂં, તેમને સત્કાર કરૂં, તેમનું સન્માન કરૂં, તે ભગવાન કલ્યાણકારક મંગળ રૂપ દેવ છે અને ચૈત્ય-જ્ઞાન સ્વરૂપ છે, એથી હું તેમની સેવા કરું (एय मे पेचा हियाए मुहाए खमाए णिस्सेयसोए आणुगामियाए भविस्मइ तिमी एवं सपेहेइ) प्रभुमडावीर स्वामी भा॥ भाटे ५२सोमा जितना
SR No.009342
Book TitleRajprashniya Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages721
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size55 MB
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