SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 475
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सुबोधिनी टीका' सू ७० पद्मवरवेदिकावनषण्डवर्णनंच ४६१ छाया-तत्खलु एकया पावरवेदिकया एकेन च वनषण्डेन च सर्वतः समन्तात् संपरिक्षिप्तम् । सा खलु पद्मबरवेदिका अद्धयोजनसमुच्चत्वेन, पञ्चधनुश्शतानि-विष्कम्सेण उपकारिकालयनसमा परिक्षेपेण । तस्याः खलु पद्मवर वेदिकायाः अयमेतद्रूपो वर्णावासः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-वज्रमया नेमाः रिष्टमयानि प्रतिष्ठानानि, वैडूर्यमयाः स्तम्भाः, सुवर्णरूप्यमयाः फलकाः, लोहिता. यह उपकारिकालयन पद्मवरवेदिका से एवं वनपंड से परिवेष्टित है इस कारण पद्मवरवेदिका का और बनषण्ड का सूत्रकार वर्णन करते हैं-- ' से ण एगए पउमवर वेइयाए' इत्यादि । सूत्रार्थ--(से ण एगए पउमवर वेइयाए एगेण य वणसडेण य सव्वओ समता सपरिविश्वतो) वह उपकारिकालयन एक पद्मवर वेदिका से एवं एक वनपण्ड से चारों दिशाओ में एवं चारों विदिशाओं में घिरा हुआ है। (साण पउमवर वेइया अद्भजोयण उडू उच्चत्तेण पच धणुसयाई विक्ख भेण) वह पद्मवरवेदिका अधयोजन की ऊँची है. एवं पांच सौ योजन की विस्तार वाली है (उधकारियलेणसमा परिक्खेवेण) इसका परिक्षेप जितना परिक्षेप उपकारिकालयन का कहा गया है उतना ही है । (तीसेण पउमवरवेइयाए इमेयारूवे वणावासे पण्णत्ते) उन पनवर वेदिका का वर्णावास-वर्णनपद्धति-ईस प्रकार से कहा गया हैं. (त जहा-वयरामया निम्मा, रिहामया पट्टाणा, वेरुलियामया खंभा, सुवण्णरुप्पमया फलगा) वन- આ ઉપકારિકાલયન પદ્યવરવેદિકાથી અને વન ખંડોથી પરિવેષ્ટિત છે એથી પદ્મવરવેદિક અને વનખંડનું સૂત્રકાર વર્ણન કરે છે— __ 'सेण एगए पउमवरवेइयाए' इत्यादि। सूत्राथ—से ण एगए पउमवरवेड्याए एगेण य वणसंडेण य सव्वओ , समता संपरिक्खित्ते) ते Sोशिसयन भने पद्मपर वेल्थिी मने ये नथी प्यारे हिशायमा भने न्यारे विदिशामामा सावरत छ. (साण पउमवरवेइयाँ अद्धजोयणं उडू उच्चत्तण पंच धणुसयाई विक्ख भेण) ते पवश्वच्छिी અર્ધા જન જેટલી ઊંચી છે અને પાંચસે લેજન જેટલો વિસ્તાર ધરાવે છે. (उचकारियलेण समा परिक्खेवेण) माना पा२२५ (परिधि) SReयनन। २८ परिक्षय हवामा माया छ तेसो छ. (तीसे ण' पउमवरवेइयाए इमेयारूवे वण्णावासे पण्णचे) ते ५५१२वेनि que-qg°न पद्धति--21 प्रमाणे छ. (तजहा-वयरामया निम्मा, रिट्ठामया पइट्ठाणा वेरुलियामया ख'भा, सुवण्णरुप्पमया फलगा )१००२त्नना मेना नेम छ. अर्थात् सूभिमाथी मा२ नी गेला
SR No.009342
Book TitleRajprashniya Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages721
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size55 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy