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________________ राजप्रश्नीयसूत्रे तेषु खलु जातिमण्डपकेषु यावत मालुकामण्डपकेषु बहवः पृथिवीशिलापट्टका हंसासनसंस्थिताः यावद् दिक्सौवस्तिकासनसंस्थिताः अन्ये च वहवे वरशयनासनविशिष्टसंस्थानसंस्थिता पृथिवीशिलापट्टकाः प्रज्ञप्ताः, श्रमणाऽऽयुष्मन् ! आजिनकस्तरनवनीततूलस्पर्शाः सर्वरत्नमया: अच्छाः यावत् और अनेक मालुकामडपक हैं (सवरयणामया अच्छा जाब पडिरूवा) ये सब मडपक सर्वथा रत्नमय है, अच्छ है यावत् मतिरूप हैं। (तेसु णं जाइभडवएसु जाव मालुघामडवेसु वहवे :पुढविसिलापट्टगा हंसासण सांठिया जार दिसा सोवत्थियासणसंठिया) इन जातिमंडपो से लेकर मालकामंडपों तक के समस्त मं पो में पृथिवीशिलापट्टक कहे गये है ये पृथिवीशिलापट्टक कोई हसासन के आकार जैसे आकारवाले हैं यावत् कोई दिशासौवस्तिक आसन के आकार जैसे आकारवाले हैं। (अण्णे य बहवे वरसयणासणविसिह संठाणसंठिया) तथा इस पृथिवी शिलापट्टक से भिन्न जो और कितनेक पृथिवी शिलापटक हैं वे आकार प्रकार से विलक्षण ऐसे उत्तम शयन और आसन से जैसे आकार वाले हैं। (पुढविसिलापडगा पण्णत्ता) इस प्रकार से वहां पृथिवीशिलापट्टक कहे हैं। (समणाउसो) यह पद संबोधन है (आईणगख्यदूरणवणीयतूलफासा सव्वरयणामया अच्छा जाय पडिरूवा) इन पृथियीशिलापट्टकों का स्पर्श अजिन-चमनिर्मित वस्त्र के स्पर्श जैसा है, रुई के जैसा स्पर्श है, वृर-बनस्पति-विशेष के (सब्बरयणामया अच्छा जाव पडिरूको) मा सवे भ34 सर्वथा नभय छ, અચ્છ છે ન્યાય तिमु णं जाइमंडबएसु जाव मालुयामंडवएस वदवे पुढविसिलोपटगा हं. सासणसठिया जाव दिसासोवत्थियासणसंठिया) मा तना भपाथी भांडीन માલુકા મંડપ સુધીના બધા મંડપમાં પૃથિવીશિલાપટ્ટકે છે. આ પૃથિવી શિલાપકેમાંથી કઈ હંસાસનના આકાર જેવા છે યાવત કઈ દિશા સૌવસ્તિકાસનના मा२ २१ १२ वाणा छ..(अण्णे य बहवे वरसयणासणविसिट्ठसंठाणसंठिया તેમજ પૃથિવી શિલાપટ્ટકથી ભિન જે કેટલાક બીજા પૃથિવીશિલાપટ્ટકે છે. તે આયર પ્રકારથી વિલક્ષણ તેમજ ઉત્તમ શયન અને આસનના જેવા આકારવાળા છે. (पुढविसिलापट्टगा पणत्ता ) मा प्रमाणे त्यां पृथिवी शिक्षापामा माव्या छ. (समणाउसो) आयुष्यन् ! श्रभY ! (आईणगरुयधरणवणीयतूलफासा सन्वरयपामया अच्छा जाव पडिरूवा) ॥ पृथिवी शिसापानी स्पर्श मानिन-यम -થી નિર્મિત થયેલા વસ્ત્રના સ્પર્શ જે છે. રૂના સ્પર્શ જે છે, બૂર–વનસ્પતિ
SR No.009342
Book TitleRajprashniya Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages721
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size55 MB
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