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________________ राजप्रश्नीयसूत्र त्ताराः नानामणितीर्थसुबद्धाः चतुष्कोणाः आतुपूर्व्यमुजानवप्रगम्भीरशीतल. जला: संछन्नपत्रविसमृणालाः बहत्पलकुमुदनलिननुभगमोगन्धिकपुण्डरीकशतपत्रसहस्रपत्रकेसरफुल्लोपचिताः पहपदपरिसुज्यमानकमला: अच्छविमलमा लिलपूर्णाः प्रतिहस्तभ्रमन्मत्स्यकच्छपानेकशकुनमिथुनकवि चरिताः प्रत्येक प्रत्येक टिकमणियों के समूह से बने हुए हैं (म्युओयार मुउताराओ) इनमें प्रवेश करना और इनमें से बाहर निकलना बिलकुल मुलभ है (णाणा. मणितित्थरबद्धाओ) इनके जो घाट बने हुए हैं वे नाना जातीय मणियों के बने हुए है (चउकोणाओ) ये सब चार कोनों से युन, हैं (आणुपुचमुजायबप्पा भीरसीयलजलाओ) इनका जो जल के नीचे का स्थान हैं वह गंभीर एवं शैत्यगुणयुक्त जल से युक्त (छन्नपत्तबिसगुणालाओ) इनमें जो पद्मपत्र, विस, मृणाल हैं वे सब जल से आच्छादित हैं (बहुउपल. कुमुयनलिणमुभगसोगाधियपोंडरीयसयपत्तसहस्सपत्त केसरफल्लोवचियाओ ) केशरप्रधान एवं विकसित ऐसे अनेक उत्पलों से, कुमुदों से, नलिनों से, सुभगों से सौगन्धिको से: पुण्डरीकों से, शतपत्रों से, एवं सहस्र पत्रों से ये युक्त है (छप्पयपरिभुजमाणकमलाओ, अच्छविमलसलिलपुष्णाओ इनके कमल भ्रमरों से भुज्यमान-आस्वाद्यमान है। निर्मल और विमल सलिल से ये परिपूर्ण हैं। (पडिहत्यभमतमच्छकच्छमाणेगसउणमिणगयविचारियायो) अनेक इधर उधर चलते हुए मच्छ वैडू माण भने २५टि मणुियाना समृडया मनमा छ (सुओयारमुउताराओ) समानामा त तभी हा२ भाव मेम सरण छ. ( णाणामणितित्थसुवद्धाओ) मेमना ? पाटी नापामा मावेश छ. ते अने तीय भाशुमाना भानाववामां माता छ. (चउक्कोणाओ) 20 या यतुशाथी त छ. (आणुपुचमुजायवप्पगंभीरसीयलजलाओ) ओमनुरे पानी नीयनु स्थान એટલે કે તળિયું છે તે ગંભીર અને શીતલગુણથી યુકત એવા પાણીથી યુકત છે. (संछन्नपारिसमुणालाओ) मेमनाभा २ पापत्री, विसभृणा छ सर्व पाणीया माहित छ. ( बहुउप्पलकुम्लुयनलिणसुभगसौगधियपौडरीयसयपत्त सहस्सपत्तकेसरफुल्लोवचियाओ ) श२-प्रधान मने विसित मने ઉત્પલેથી, કુમુદેથી, નલિનેથી, સુભગોથી, સૌગંધિથી પુંડરિકેથી, શતપથી અને सहसपत्राथी युरत छ. (छप्पयपरिभुज्जमाणकमलाओ, अच्छविमलसलिल, पुण्णाओ) समाना भगा प्रभाथी सुन्न्यमान-मास्वधभान-छ. मेगा विमा भने निम ससिस (पाell) थी परिव छ. (पडिहत्यभमंतमच्छकच्छभअणेगल
SR No.009342
Book TitleRajprashniya Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages721
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size55 MB
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