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________________ ३३८ राजप्रश्नीयमुत्र मयानि कनककूटतपनीयस्तृपिकाकानि श्वेतानि शकुन्तलविमलनिर्मलदधिधन. गोक्षीरफेनरजतनिकरप्रकाशानि तिलकरत्नाद्रचन्द्राणि नानामणिदामालकतानि अन्तर्ष हिश्च'लक्ष्णानि तपनीयवालुकापस्तटानि सुखम्पर्शानि सश्रीकरूपाणि प्रासादीयानि दर्शनीयानि अभिरूपाणि प्रतिरूपाणि ॥ ० ५४ ॥ की बनी हुई हैं। (सबसेयरययामये पच्छापणे, अंकमया कणगडतवणिजधूभियाना, सेयसंवतलविमलनिम्मलदधिघणगोखीरंफेणरययणिगरप्पगामा) मोन्छनियोंके ऊपर एवं कवेल्लकों के नीचे का जो आच्छादन है वह सर्वात्मना शुरूवर्ण वाले रजत का बना हुआ है. इस तरह ये सब द्वार अकरलमयशिखरों से युक्त हैं, स्वर्ण विशेषनिर्मित लघुशिखरों से महित हैं, श्वेतवर्णवाले हैं, अतएव ये निर्मल शंखतले के जैसे निर्मल दधिधनजैसे, गोदुग्ध के फेन जैसे, चांदी जैसे प्रकाशवाले हैं। (तिलगरयणद्धचंदचित्ता, नाणामणिदामालंकिया, अंतोवहिं च सण्डा, तरणिजवालुयापत्थडा, सुहफासा. सस्सिरी यरूवा पासा ईया, दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा) तथा श्रेष्ठतिलक एवं अर्धचन्द्र इनसे अद्भुत हैं, अनेक प्रकार की मालाओं से उपशोभित हैं, भीतर बाहर में चिकने हैं। इनमें जो अङ्गण वे तपनीय-स्वर्ण की बालुका के बने हुए हैं. इनका सुखद स्पर्श है. ये सब सश्रीकरूपवाले हैं, मासादीय हैं दर्शनीय है, अभिरूप हैं और प्रतिरूप हैं। छ. ५२ पाना। ५००२तनी गली छ. (सबसेयरययामये, पच्छायणे; अंक मया : कणगकूडनवणिज्जथूभियागा, सेयसंखतलविमल-निम्मलदधिषण गोखीर फेणरययणिगरप्पगासा) प्रांछनी मानी ५२ अने पेसानी नीय रे આચ્છાદન છે તે સર્વાત્મન શુકલ (ત) વર્ણવાળા રજત (ચાંદી) ના બનેલાં છે. આ રીતે આ સર્વ દ્વારે (દરવાજાઓ) અંક રનમય છે. સ્વર્ણમય શિખરેથી યુક્ત છે, સ્વર્ણ વિશેષ નિર્મિત લઘુશિખરેથી સુકત છે, સફેદ વર્ણન છે, એથી તે નિર્મળ मतदपा तेम४ यही 24 A युधत छ. (तिलगरयणद्धचंदचित्ता, नाणामणि दामालंकिया, अंतो यहिं च सण्हा, तवणिज्जवालयापत्थडा, सुहफासा, सम्सिरीयरूवा पासाईया दरिसणिज्जा अभिरुवा पडिरूवा) તેમજ તે સર્વ શ્રેષ્ઠ તિલક અને અર્ધચન્દ્રથી અદ્ભુત છે. ઘણી જાતની માળાએથી ઉપરોભિત છે, બહાર અને અંદરના ભાગમાં લીલા છે. એમાં જે અંગણુ (આંગણું) છે તે તપનીય-સુવર્ણ-ની વાલુકારિતી) નાં બનેલાં છે. એમને સ્પર્શ સુખદ છે. આ સર્વે સશ્રીકરૂપ છે, પ્રાસાદીય છે, દર્શનીય છે અભિરૂપ છે અને પ્રતિરૂપ છે.
SR No.009342
Book TitleRajprashniya Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages721
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size55 MB
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