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________________ २८९ सुबोधिनो टीका. सू. ४३ सूर्यामेण नाट्यविधिप्रदर्शन अभवत्, तनः खलु ने बहवो देवऋगाराश्च देवकुमार्यश्च श्रमणस्य भगवना महावीरस्य आवर्त मत्वातंत्रणिपश्रेणि स्वस्तिकमोवस्तिकपुत्रमाणवक 'तएणं ते वह वे देवकुमारा य देवकुमारीश्री य' इत्यादि। • मूत्रार्थ - (तएणं) इम स्वस्निकादि अष्ट मंगलों की रचना से अद्भुत प्रधम नाटयविधि की समाप्ति के बाद (बह वे देवकुमारा य देवकुमारीओं य) वे सब देवकुमार और देवकुमारिकाएँ (लमयेव समोसरणं करेंति) एक ही समय में एक जगह मिल गये. (करिता तं चेत्र भणियलं जात्र दिव्वे देवरमणे पान याति होत्या) मिलकर उन्होंने पहिले की तरह कार्य किया-एला यहां कहना चाहिये. और यह पूक्ति कथन यहां 'देवरमणं प्रात्तं चापि अभवत् ' इस ४३ वें मूत्र के अन्तिम पाठ तक ग्रहण करना चाहिये. (लएणं ते बहदे देवकुमारा य देवकुमारीओ य समणस्ल भगवत्रो महाबोरसम्म आवडपञ्चावड सेणिपणिसोस्थि यसोबत्थियपूसमाणबद्ध माणगामच्छंडमगरं इजारमारफुलावलिप उमपत्तसागरतरंगवसंललयपउमलयभनि चित्त' णात दिवं नविहिं उबद से ति) इसके बाद उन्न सब देवकुमार एव देवकुमारीकानों ने श्रमण भगवान् महावीर के समक्ष आवर्त १, प्रत्यावर्त २, श्रेणि ३, प्रश्रेणि ४, स्वस्तिक ५, मौरम्तिक ६, नएणं ते बहवे देवनाग र देवकुमारीओ य' इत्यादि। • सूत्रार्थ-ताण) स्वस्ति वगेरे 18 महीनी श्यनाथी सुत प्रथम नाटय. विधिनु: प्रशन पुथयु त्यार पछी (ते कवे देवकुमारा य देवकुमारीओ य) ते सवे भा३॥ भने हेवाभारिया (ममेव समोसरण करें ति) 2ी १५.ते २४ २१ स्थाने मे 25 गया. (रित्ता त चेत्र भागि यव्वं जाब दिब्वे दे पर मणे पत्ते यावि होत्या) ये थने तेमणे पाडसानी मा य यु आयु यी समन्यु नये. अने. २॥ ४थन गडी देवरमण प्रत चापि अमबन्' मा ४3 भां सूजना मतिम पाठ सुधी अ ४२ नये. (तपगते वह देश कुमारा य देवकुमारीओ य समणरम भगवओ महावीरस्त आवड. चारडसेणिपसेगिमोत्थियनोवत्यियपूममाण ववमाणगमच्छंडमगर डजारमारफुल्लावलिपउमपत्तसागरतरगवसंतलयपउमलयत्तिचित्त णाम दिन नविहिं उनसे ति ) त्या२ पछी ते सर्व देवकुमार मने वाभारिકાઓએ શ્રમણ ભગવાન મહાવીરની રામે અવર્સ ૧, પ્રત્યાવર્ત ૨, શ્રેણિ, ૩, પ્રશ્રેણ, ૪, સ્વસ્તિક પ, સૌવસ્તિક , પુષ્પમાણુવક ૭, વર્ધમાનક ૮, મસ્યાંક ૯,
SR No.009342
Book TitleRajprashniya Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages721
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size55 MB
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