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________________ सुबोधिनी टीका. सू. ३९ सूर्याभस्य समुद्घातकरणम् नमन्ति-नीचैर्भवन्ति, अवनम्य सममेव उन्नमन्ति-उच्चैर्भवन्ति-ऊर्ध्वमवतिष्ठन्ते, एवम्-अनेन प्रकारेण सहितमेव मिलितमेव यथा स्यात्तथा सहैवेति भावः।' अवनमन्ति, एवं सहितमेव उन्नमन्ति, उन्नम्य स्तिमितमेव-निश्चलमेव अबनमन्ति,स्तिमितमेव उन्नमन्ति,सङ्गतमेव मिलितमेव यथास्यात्तथा सहैव अमनमन्ति, तथा-सङ्गतमेव उन्नमन्ति, उन्नभ्य सममेव प्रसरन्ति-विस्तृता भवन्ति-पृथक प्रथम् भवन्तीति भावः। प्रसृत्य सममेव आतोद्यविधानानि वादित्रभेदान गृह्णन्ति-धारयन्ति, गृहीत्वा सममेव तानि वाद्यानि प्रावादयन्-प्रवादितवन्तः. तथा-मागायन्-प्रकर्षेण गोतवन्तः, तथा-मानृत्यन्-प्रनृत्तवन्तः ॥म, ३९ ।। ही साथ ऊँचे को उठे-ऊँचे हुए अर्थात् खडे हो गये. (उन्नमित्ता एवं साहियामेव ओनमांति एवं साहियामेव उन्नमति) ऊँचे उठकर फिर दे मिलकर निचे झुके, और मिलकर ही ऊँचे उठे (उण्णमित्ता थिमियामेव ओनमंति, थिमियामेव उन्नमंति) उठकर फिर वे स्तिमितरूप (निश्चलरूप) से नीचे झुके और स्तिमितरूप से ही ऊचे उठे (स गयमेव ओनमंति, संगयामेव उन्नमति,) तथा साथ ही साथ वे सब झुके और साथ ही साथ वे सब ऊंचे उठे (उन्नमित्ता समामेव पसरंति, पसरित्ता समामेव आउजविहाणाई गेण्हंति, गिहित्ता समामेव पवाएं सु, पगाइ'सु, पणचिंसु) उंचे उठकर फिर वे सब के सब एक ही समय में फैल गये. अलग २ हो गये. अलग २ होकर उन्होंने सबने एक ही समय में आतोधविधानों (विविधवाजो) को पकड लिया और एक साथ ही एक ही समय में उन बाजों को बनाया, अच्छी तरह से गाया और अच्छी तरह से नृत्य किया.। इसका टीकार्थ मूलार्थ के अनुरूप ही है ॥ मू० ३९ ।। साथै ७५२ च्या मेटसे 3 l थया (उन्नमित्ता एवं सहियामेय ओनमंति, एवं साहियामेव उन्नमंति) GAn us तेसा ॥धा मी साथे ५२श नीय नभ्या मने पछी सेही साथै शरीरमा थया. (उण्णमित्त थिमियाने ओनमंति, थिमियामेव उन्नमंति) मा धने पछी तेया स्तिभित ३५ निश्चण ३५थी नीय नभ्या मने स्तिभित ३५थी लामा थया, (संगयामेव ओनमति, संगयामेव उन्नमंति) मेची साथे सौ नभ्या मने ही साथे सौ सय या. (उन्नमित्ता समामेव पसरति; पसरिता समामेव आउजविहाणाई गेहंति, गिण्हित्ता ममामेव पचाएं सु पगाइसु पणांच्चिसु) ये हीन पछी तमा सवे से सभચમાં વિખેરાઈ ગયા. આમ તેમ ફેલાઈ ગયા. વિખેરાઈને બધાઓએ એકી સાથે આ વિદ્યાને ઘણી જાતના વાજાઓને લીધા અને એકી સાથે એક જ સમયમાં તે વાજાઓને વગાડવા. અને બધાએ ખૂબજ સરસ રીતે ગાયું અને નૃત્ય કર્યું. આ સૂત્રને ટીકાર્થ મૂલ અર્થ, પ્રમાણે જ છે ! સૂ. ૩૯
SR No.009342
Book TitleRajprashniya Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages721
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size55 MB
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