SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 277
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सुबोधिनी रीका. सू ३६ सूर्याभस्य समुद्घातकरणम् २६५ शत परिपिरिकाणां विकरोति, एवमादिकानि एकोनपश्चाशतम् आतोधविधानानि विकरोति, विकृत्य तान् बहून् देवकुमारांश्च देवकुमारीश्च शब्दयनि ॥५०३६॥ 'तएणं से मरियाभे देवे' इत्यादि टीका--स्पष्टम् नवरम्-थाना-महापटढानाम-अष्टशत' विकरोति । तथा-परिपिरिकाणाम्-परिपिरियां' इति देशीयः शब्द और्णनाभिकपुटावन द्धमुखवाद्यविशेषः, आतोद्यविधानानि-वाद्यप्रकारान् एकोनपञ्चाशतम्--मूलभेदा.. पेक्षया . एकोनपश्चाशत्संख्यानि - विकरोति। शेषा वाघभेदा ए तेष्वेवान्तभवन्ति, शब्दयति-अहियति ॥ सू० ३६। व्वइ). १०८ खरमुखिवादकों का विकुर्वणा की (अट्टमयं पेयाणं विउन्धइ,अष्टमय पेयवायगाणं विउन्धइ), १०८ पेयों को विकुगा की. १०८ पेय.. 'वादिकों की विकुर्वणा की. (अट्ठसय परिपरियाग विउबइ. एकमाइयाण एगणपण' आउजविहाणाई विउचह. विउधित्ता ते बहवे देवकुमारा य. देवकुमारीओ य सदावेइ) १०८ परिपरिकाओं को विकुवंगा की. इस तरह उसने ४९ प्रकार के आतोय विधानों राजा को विकुवंगा की इन सर.. वाद्या.. विशेषों की विकुर्वणा करके फिर उसने अनेक देवकुमारों को एवं देवकुमारिकाओं को बुलाया. । - - - - 'टीकार्थ-इसका अर्थ स्पष्ट है पेय एक जाति के महापटह (बडा ढोल) होते है, 'परिपिरिया' यह देशीय शब्द है. इस नाम का एक विशेषाकार का वा होता है. इसका मुख मकंडी के जाल से अवनद्ध , रहना है मूल भेद सय खामुहीण विउठवई .) ३.८ भरभुजाना विव' ४ : (अहसाय खरमुहो वायगाणं पिउव्वइ) १.८ में मुभी पानी पिसे (अस । पेयाणं विउव्वइ. असयं पेयवायगाणं पिउधइ) १०८ योनी विga ४ तेम१०८ पेय-(वाय विशेष) ४५, (अहसय परिपरियाणे विउन्धइ, एवमाइयांग एगमगणं आउज्जविहागाई विना विउविता ते वहवे देवकुमारा य देवकुमारीओ य सद्दावेइ) त्या२ पछी १०८ परिषરિકાઓની વિર્વણું કરી. આ પ્રમાણે તેણે ૪૯ જાતના આઘાનની વિક કરી. આ વાવ વિશેષોની વિકર્વણુ કરીને પછી તેણે દેવકુમારે તે જ દેવभारिसमान व्याराव्या. . . . . , सूत्रन टी स्पष्ट ०४ छ. पेय- लतना मोटा यट (नगारा, ने छ. परिपरिया' मा देश ४ Ava छ.. मा मे मनाय विशेष हाय. .
SR No.009342
Book TitleRajprashniya Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages721
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size55 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy