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________________ सुबोधिनी टीका. सू ३४ सूर्याभस्य समुद्घातकरणम् ___२५३ वर्णनमेकविंशतितममूत्रादारभ्य द्वाविंशतितमूत्रमस्य 'तिष्ठन्ति' पदपर्यन्तादवसेयम् । इत्येतत्मूचनायाह-तिष्ठन्ति' इति ॥ मू. ३३ ।। • मूलम्-तएणं से सूरियाभे देवे समणस्स भगवओ महा. वीरस्स आलोए पणामं करेइ, करित्ता अणुजाणउ मे भगवं त्तिक सीहासणवरगए तित्थयराभिमुहे सण्णिसण्णे। तएणं मे सूरियाभे देवे तप्पढमयाए णाणामणिकणगरयणविमलमहरिहनिउणोचियमिसिमिसिंतविरइयमहाभरण कडगतुडिय वरभूसणुज्जलं पीवरं पलंब दाहिणं भुयं पसारेइ। तओ णं सरिसयाणं सरित्तयाणं, सरिसव्वयाणं सरिसलावण्णगुणोक्वेयाणं एगाभरणवसणगहियणिज्जोयाणं दुहओ संवलियग्गणियत्थाणं आविद्धति. लयामेलाणं पिणद्धगेविज कंचुयाणं उप्पीलियचित्तपट्टपरियरसफेण गावत्तरइयसंगय पलंबवत्थंतचित्तचिल्ललगनियंसणाणं एगावलिकंठरइयसोभंतवच्छपरिहत्थभूसणाणं असयं णटुसज्जाणं देवकुमारा णिगच्छइ ॥ सू० ३४॥ का उल्लोक. अङ्कुश एवं मुक्तादाम इन सब का वर्णन २१ वे मूत्र से लेकर २२. वें सत्र के तिष्ठन्ति ' इस पद तक किया गया जानना चाहिये. इसी बात की सूचना के लिये 'तिष्ठन्ति' पद का प्रयोग किया गया है। म०१३। ' 'तए णं से मुरियाभे देवे' इत्यादि । मन्त्रार्थ-(तए णं) इसके पश्चात् (से) 'उस (मरियामे देवे समस्त भगवओ महावीरस्स आलोए पणामं करेइ) मूर्याभ देवने श्रमण भगवान २१ मां सूत्रथी भांडीन २२ भां सूत्रना ‘तिष्ठन्ति ' २॥ ५४ सुधी ४२वामां मान्य छ तभ समात्ने ये. - पातने २५८ ४२वा भाट तिष्ठन्ति' पहना પ્રવેશ કરવામાં આવ્યું છે. ૩૩ "तएण से मरियाभे देवे' इत्यादि । सूत्रार्थ-(तएण') त्या२ - ५छी (से) ते (मरिया देवे समणस्स भगवा
SR No.009342
Book TitleRajprashniya Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages721
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size55 MB
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