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________________ सुबोधिनीटीका सू. २७ समस्य भगवद्वन्दनम् स्वपरिचयश्च ૨૨૨ यत्रैव श्रमणो भगवान् महावीरः तत्रैव उपागच्छति, उपागम्य श्रमण : भगवन्तं महावीरं त्रिकृत्वः आदक्षिणप्रदक्षिणं करोति, कृत्वा वन्दते नमस्यति, वन्दित्वा नमस्थित्वा एपमवादीत्-अहं खलु भदन्त ! मूर्याभो देवः देवानुपियाणां वन्दे नमस्यामि यावत् पर्युपासे ॥ मू० २७ ॥ 'तएणं से मरियाभे देवे' इत्यादि टीका-तत:--परिषत्त्रयदेवतदेवीनां यानविमाना-प्रत्यवतरणानन्तरं खलु सः मूर्याभो देवः चतसृभिरग्रमहिषीभिः यावत् पोडशभिरात्मरक्षकदेवसाह(सबिडिए जाव णाइयरवेणं जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ) अपनी समस्त ऋद्धि से युक्त हुआ यावत् बाजों की तुमुल ध्वनिपूर्वक जहां श्रमण भगवान् महावीर थे वहां आया. (उवागच्छित्ता समण भगवं महावीरं तिकवुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेइ करित्ता वंदइ, नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं क्यासी) वहां आकर के उसने श्रमण भगवान् महावीर को तोन चार प्रदक्षिणा की. प्रदक्षिणा करके फिर उसने उनको बन्दना की, नमस्कार किया. वन्दना नमस्कार करके फिर उसने उनसे ऐसा कहा --(अहं णं भंते ! मृरियाभे देवे देवाणुप्पियाण वंदामि, णमंसामि, जाव पज्जुवासामि) हे भदन्त ! मैं मूर्याभदेव आप देवानुप्रिय को वन्दना करता हूं, नमस्कार करता हूं यावत् पर्युपासना करता हूं। ... टीकार्थ-इस सूत्र का इसी मूलार्थ के अनुरूप ही है. विशेषता केवल ऐसी है कि 'अग्गमहिसीहिं जाव' में आगत यावत् पद से १६ हे मन हवामानी साथे (सविङ्कीए जाव णाइयरवेणं जेणेत्र समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ) पोतानी समस्त द्धनी साथे यावत् पान-मानी तुभुस पनि साथै न्यो श्रम मवान महावीर हुता त्यां मा०यो. (उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेइ, करित्ता वंदइ, नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं क्यासी) त्या भावीन तेणे न पा२ श्रम ભગવાન મહાવીરની પ્રદક્ષિણ કરી પ્રદક્ષિણા કરીને પછી તેણે તેમને વંદન કર્યા, નમસ્કાર કર્યા. વંદના તેમજ નમસ્કાર કરીને પછી તેણે તેઓશ્રીને આ પ્રમાણે વિનંતિ ४२॥ (अह णं भते ! भूरियाभे, देवे देवाणुप्पियाणं चंदामि, णमं, सामि, जाव पज्जुवासामि) लत ! सूर्यालय सा५ हेवानु प्रियन वन કરૂં છું. યાવત પર્યું પાસના કરું છું. તે ટીકર્થ– આ ત્રને અર્થ મૂલ અર્થ પ્રમાણે જ છે. ફકત વિશેષતા આટલી छ 'अग्गम हिसीहिं जाव' भां मावेसा यावत ५६थी १६ St२ आत्म
SR No.009342
Book TitleRajprashniya Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages721
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size55 MB
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