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________________ सुबोधिनी टीका. सू. २६. भगवद्वन्दनार्थ सूर्याभस्य गमनव्यवस्था .........२१३ तिसोवाणपडिरूवएणं पञ्चोरुहइ । तएणं तस्त सूरियामस्त देवस्त चत्तारि सामाणियसाहस्सीओ ताओ दिव्याओ जाणविमाणाओ उत्तरिल्लणं तिसोवाणपडिरूवएणं पच्चोरुहंति, अवसेसा देवा य देवीओ य ताओ दिव्वाओ जाणविमाणाओ दाहिणिलेणं तिसो. वाणपडिरूवएणं पञ्चोरुहंति ॥ सू० २६ ॥ ....... . छाया-ततः खलु स मर्याभो देवः तेन पश्चानीकपरिक्षिप्तेन वन मयवृत्तलष्टसंस्थितेन यावत् योजनसहस्रोच्छितेन महाऽतिमहता । महेन्द्रध्वजेन पुरतः कृष्यमाणेन चतसृभिः सामानिकसाहस्रीभि वितु षोडशभिः आत्म- रक्षकदेवसाहतीभिः अन्यैश्च बहुभिः सूर्याभविमानवासिभि वैमानिकै र्देवैर्देवी शिश्च साई संपरितः सर्वद्धर्था यावत् रवेण सौधर्मस्य कल्पस्य मध्यमध्येन तएणं से मूरियाभे देवे' इत्यादि । मुत्रार्थ-(तएणं से मरियाभे देवे. तेणं पंचाणीयपरिखित्तेण). इस तरह वह सूर्याभदेव उस, पचानीक से परिक्षिप्त हुए (महिंदज्झएग) महेन्द्र धन से जो कि(वहरामयवट्टलहसंठिएण जाव जोयणसहस्समसिएणं महईमहालएणं महिंदझएणं पुरओ को जमाणेणं)वज्र का बना हुआ था. और जिसका आ• कार गोल एव सुन्दर था यावत् जो एक हजार योजन की ऊचाई वाला था और इसी कारण जो वहुत अधिक वृहत था, एवं आगे ले जाया जा रहा था (चउहि सामाणियसहस्सेहि जाव. सोलसहि ...आयरक्खदेवसाहस्सीहि अन्नेहिय बहूहिं सरियाभविमागत्रासोहिं वेमाणिएहिं देवेहि य सद्धि सपरिवुडे). तथा चार हजार सामानिक देवों से यावत् १६ हजार आत्मरक्षक देवों - तए णं से मरियाभे देवे' - सूत्रार्थ- (तए णं से मुरियाभे देवे तेण पंचागीयपरिखित्तण) मा शते ते सूर्यालय ते ५ यानीथीपशिक्षित थयेहा (महिंदज्झएण) भन्द्रियस्थी १२ (पइरामय वलट्ठमाठिएण जाव जोयणसहस्सभूसिलएण महइमहालएणं महिंदज्झएणं - पुरओ काजमाणेण) ०.43. नावामा माटो तो मने रेनी आकृति गौण અને સુંદર હતી યાવત જે એક હજાર જન જેટલી ઉંચાઈ વાળ હતું અને એથી તે બહુ જ विश sतो भने २माण वामां आवी रह्यो हतो. (चउहि सामाणिय. सहस्सेहिं जाव सोलएहि आयरक्खदेवसाहस्सीहि अन्नेहि य वहूं हि मूरियो- . भविमाणवासीहि वेमाणिएहि. देवेहि देवीहि य सद्धि संपरिखुडे) तेभर या२ હજાર સામાનિક દેવેથી યાવત્ ૧૬ હજાર અંગ રક્ષક દેવેથી તેમજ બીજી પણ ઘણા
SR No.009342
Book TitleRajprashniya Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages721
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size55 MB
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