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________________ सुबोधिनी टीका. सू. १२ भगवद्वन्दनार्थे सूर्याभस्य गमनव्यवस्था 11३ दिग्भागमवक्रामति अरक्रम्य वैक्रियासमुद्घातेन समवहन्यते, समवहत्य संख्येयानि योजनानि यावत् यथावादरान पुद्गलान् परिशातयति, परिशात्य यथासूक्ष्मान् पुद्गलान् पर्यादत्ते, पर्यादाय द्वितीयमपि चैक्रियसमुद्घातेन 'तएणं से आभियोगिए देवे' इत्यादि । सूत्रार्थ-(तएण) इसके बाद (से आभियोगिए देवे) वह आभियोगिक देव जब कि (मरियाभेणं देवेणं एवं चुत्ते समाणे) स्मृरियाभदेवने उससे पूर्वोक्त रूप से कहा (हट जाब हियए) हृष्ट तुष्ट यावत् हृदय पाला हो गया और ऐसा होकर उसने (करयलपरिग्गहियं जात्र पडिसुणेइ) बडे विनय के साथ दोनों हाथों की अंजलि बनाकर और उसे मस्तक पर रखकर उसकी आज्ञा के वचनों को स्वीकार किया. ( पडिसुणित्ता उत्तरपुरस्थिम दिसीभागं अवकमइ) स्वीकार करके फिर वह ईशान दिशा में गया (अपकमिना वेउन्धियसमुग्धाएणं समोहणइ) वहां जाकर के उसने क्रिय समुद्घात किया (समोह णित्ता संखेजाई जोयणाङ्जाव अहा बायरे पोरगले पडिसाडेइ) वैक्रिय समुद्घात करके संख्यात योजन तक आत्ममदेशों को दण्डाकाररूप से निकाला-यावत्-यथावादर-रत्नों के असार-पुदगलों का उसने परित्याग किया और (पडिसाडित्ता अहासुहमे पोग्गले परियाएइ) परित्याग करके रत्नों के यथा सूक्ष्म पुगलों को ग्रहण किया (परियाइत्ता) तएण से आभियोगिए देवे' इत्यादि । सूत्राथ:-(एणं) त्या२ पछी (से आभियोगिए देवे) ते मालिया हेव न्यारे (सरियामेणं देवेणं एवं वुते समाणे) सूरियासवे तेने २ प्रमाणे ह्यु, त्यारे ते (हट-जाव हियए) ट-तु-2 यावत् मनवाणी 25 गयो भने मेवो थान तेरे (करयलपरिग्गहियं जाव पडिसुइ) भूप • भावना भने હાથની અંજલી બનાવીને અને તેને મસ્તકે રાખીને તેની આજ્ઞાના વચને સ્વીકારી લીધાં (पडिसणित्ता उत्तापुरथिमं दिसौभागं अबक्कमइ) वीरीने ते त्यांची शान शामा आयो (अपकमित्ता वे उब्वियसमुग्घाएगौंसमोहणइ) यांने तो काय समुदधात या (समोहणित्ता संखेजाई जोयणाइ जाव अहा चायरे पोग्गले. पडिसाडेइ) पैठिय समुद्धात शन सध्यात सुधी मामशाना १२ ३५मां બહાર પ્રકટ કર્યો. યાવતું યથા બાદર રત્નને અસાર-પુદગલનો તેણે ત્યાગ કર્યો અને (पडिसाडित्ता अहा सहमे पोन्गणे परियाएइ) त्या परीने २त्नाना सा२ ३५ सम पाने पड ४ा. (परियाइत्ता) अडाय ४ीने (दोचापि वे उब्धिय
SR No.009342
Book TitleRajprashniya Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages721
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size55 MB
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