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________________ सुबोधिनी टीका सू. ११ भगवद्वन्दनाच सूर्याभस्य गमनव्यवस्था मगरविहगवालगकिंनररुरुसरभचसर कुंजर वणलयपउमलयभत्तिचित्तं खंभुग्गयवर वइर बेइयापरिगयाभिरामं विजाहर जमल जुयलजंतजुत्तंपिव अच्चीसहस्समालणियं रूवगसहस्सकलियं भिसमाणं भिभिसमाणं चक्खुल्लो गणलेसं सुहफास सस्सिरीयरूवं घंटावलिचलियमहुरमणहरसरं सुहं कंतं दरिसणिज णिउणोवियनिसिमिसिंतमणिरयण. घंटियाजालपरिक्खितं जोयणसयसहस्सवित्थिण्णं दिव्यंगमणसज्ज सिग्धगमणं णाम दिव्वं जाणविमाणं विउव्वाहि विउव्वित्ता खिप्पामेव एयमाणत्तियं पञ्चप्पिणाहि ॥ सू० ११ ॥ छाया-ततः खलु स सूर्याभो देवः तान् सूर्याभविमानवासिनो बहून् वैमानिकान् देवान् देवींश्च अकालपरिहीनमेय अन्ति के प्रादुर्भवतः पश्यति, दृष्ट्वा हृष्टतुष्टयावदयः आभियोगिकं देवं शब्दयति, शब्दयित्वा एवमवादीत् 'तएण से सरियाभे देवे' इत्यादि । सूत्रार्थ--(तएण) इसके बाद (से सरियामे देवे) उस सूर्याभ देवने (ते स्टूरियाभरिमाणवासिणो बहवे वेमाणि या) उन मूर्याभविमानवासी सब वैमानिक (देश य देवीभो य) देवों को और देवियों को (अकाल परिहीण वेव) विना किसी बिलम्ब के-शीघ्रातिशीत्र ही (यतिए पाउभत्रमाणे पासइ) अपने पास में उपस्थित हुए देखा. (पासित्ता टूट जाव हियए आभियोगं देवं सदावेइ) देखकर वह हृष्टतुष्ट यावत् हृदयवाला हुआ. उसने उसी समय आलियोगिक देव को बुलाया. (सहावित्ता एवं क्यासी) 'तएण से मरियाभेदेवे' इत्यादि ।। सूत्राथ:-(तएण) त्या२ ५छी (से सरियाभे देवे) ते सूर्यानवे (ते मरियाभविभाणवासिणो यहवे वेमाणिया) ते सूर्याजविमानवासी (देवा य देवीओय) वोन मने वागाने (असालपरिहोणं चेय) ४ ५ तना विश 41२ (अंतिए पाउन्भवमाणे पासइ) पातानी पासे २ श्रयेसा नया. (पासित्ता हत जाव हियए आभियोगं देवं सदावेइ) ने तहट-तुष्ट यावत् श्यवाणी या गया तेणे तर १ लिया हेवने यासाव्य.. (सहावित्ता एवं बयासी) गोसावीन
SR No.009342
Book TitleRajprashniya Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages721
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size55 MB
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