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________________ ............... पोयमी - - - - राजप्रश्नोयन्त्र वचनं हितमुखार्थ-हितार्थजन्मान्तरेऽपि कल्याणार्थ मुखार्थ-तद्भवे निरूपद्रवतार्थ च शृण्वन्तु-तदेवाह-भो:-हे देवानुप्रियाः ! मूर्याभो देवः, श्रमणं भगवन्तंमहावीरम् अभिवन्दितुम् जम्बूद्वीपं द्वीपम्, तत्रत्यं वर्षम्,-भरतक्षेत्रम्, तत्रत्याम् आमलकल्पां नगरीम् तत्रत्यम् आम्रशालवनं चैत्यं गच्छति, तत्-तस्मात् देवानु मियाः ! यूयमपि खलु सर्वदर्था-परिवारादिसम्पत्या संपरिटताः सन्तः अकाल परिहीनमेव-शीघ्रमेव सूर्याभस्य देवस्यान्तिके-समीपे प्रादुर्भवत-प्रकटीभवत-आगच्छत्तेत्यर्थः ।। स० २॥ · मूलए-तएणं ते सूरियाभविमाणवासिणो बहवे वेमाणिया देवा य देवीओ.य पायत्ताणियाहिवइस्स देवस्स अंतिए एवमहं सोचो णि सम्म हट्टतुटू जाय हियया अप्पेगइया वंदणवत्तियाए अप्पेगइया पूयः णवत्तियाए अप्पेगइयां सकारवत्तियाए एवं संमाणवत्तियाए कोऊह लव तियाए अप्पेगइया असुयाई सुणिस्सामो सुयाई अट्ठाई यह बड़े ही हर्ष की बात आपको सुना रहा हूं और सूर्याभविमान पतिकी ओर से म कह रहा हूँ-ऐसा करने की उन्होंने मुझे आज्ञा दी है. यह उनको आज्ञा के वचन आपके हित के लिये-जन्मान्तर में भी कल्याण ... के लिये और इस भव में निरूपद्रवता के लिये काम में आगे-वे वचन इस प्रकार से हैं-हे देवानुप्रियो ! मूर्याभदेव श्रमण भगवान् महावीर की अभिवन्दना के लिये जम्बूद्वीप नाम के द्वीप में रहे हुए भरत क्षेत्र में स्थित आमलकल्पा के आत्रशालवन उद्यान में जा रहे हैं इसलिये हे देवा । नुप्रियो ! आप लोग भी अपनी २ परिवारादिरूप समस्त संपत्ति से सप: रित होते हुए विना किसी विलम्ब के शीघ्रातिशीघ्र ही मयोंभदेव के पास आयें. ।। मन.. ९ ॥ . . ..... તમને કહી રહ્યો છું...અને આમ કરવાની મને તેઓશ્રીએ આજ્ઞા કરી છે. તેમના . આજ્ઞાને આ વચને તમારા હિત માટે બીજા જન્મમાં પણ શ્રેયરૂપ અને આ ભવમાં નિરુપદ્રવતા માટે કામમાં આવશે તે વચને આ પ્રમાણે છે – હે દેવાનું પ્રિયે ! સૂર્યાભદેવ શ્રમણ ભગવાન મહાવીરની અભિવંદના માટે જંબૂઢીપ નામના દ્વીપમાં આવેલા ભરતક્ષેત્રમાં સ્થિત આમલકપાના આગ્રંથાલવન ઉદ્યાનમાં પધાર્યા છે. એથી હે દેવાનુપ્રિયે! તમે લેકે પણ પિતાના પરિવાર રૂપ સમસ્ત સંપત્તિની સાથે સંપરિવૃત્ત થઈને વગરવિલંબે સત્વરે સૂર્યાભદેવની પાસે આવી પહોંચ્યો . લા
SR No.009342
Book TitleRajprashniya Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages721
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size55 MB
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