SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 829
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८६ प्रक्षापना पाधिकानि वा ? गौतम ! सर्वहतो कानि आहारशरीराणि द्रव्यार्थतया, वैक्रियशरीराणि द्रव्या यतया असंख्येयाणानि औदारिकशरीराणि द्रव्यार्थतया असंख्येयगुणानि, तैजसकामणशरी राणि द्वयान्यपि तुल्यानि द्रव्यार्थतया अनन्तगुणानि, प्रदेशार्थत्या सर्व स्तोकानि आहारकशरी. राणि प्रदेशार्थतया, वैक्रियशरीराणि प्रदेशार्थत्या असंख्येयगुणानि औदारिकशरीराणि प्रदेशार्थतया असंख्येयगुणानि, तैजसशरीराणि प्रदेशार्थतया अनन्तशुणानि, कार्मणशरीराणि प्रदे अल्पबलत्वहार शब्दार्थ-(एएलिणं संते ! ओरालियवेउविध आकारण तेयगकम्मगसरीरा. णं) हे भगवन् ! इन औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तैजस और कार्मणशरीरों में (दबट्टयाए) द्रव्य की अपेक्षा से (पएलट्ठयाए) प्रदेशों की अपेक्षा से (दव्वट्ठप. एसट्टयाए) द्रव्य और प्रदेशों की अपेक्षा से (कयरे) सोन (कयरेहितो) किससे (अप्पा वा बहुया वा तुल्ला या विसेमाहिया वा ?) अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक है ? (गोयमा ! सम्वत्थोवा आहारगसरीरा दट्टयाए) हे गौतम ! सब ले कम आहारकशरीर हैं द्रव्य की अपेक्षा ले (वेउब्धियसीरा दट्टयाए असंखेज्जगुणा ) वैक्रियशरीर द्रन्ध की अपेक्षा असंख्यातगुणा हैं (ओरालिय. सरीरा दबट्टयाए असंखेज्जगुणा) औदारिकशरीर द्रव्य की अपेक्षा ले अमं. ख्यातगुणा हैं (तेयाकम्मगसरा दोवि तुल्ला) तैजस और कार्मणशरीर दोनों बराबर हैं (बयाए अणनगुणा) द्रव्य ले अनन्तशुणा हैं। (पएसघाए) प्रदेशों की अपेक्षा से (समात्योवा आहारगसीरा पएसयाए) लय से कम भाहारकशरीर हैं प्रदेशों की अपेक्षा से (देउव्जियसरी पएमठ्याए असंखेजगुणा) वैझियशरीर प्रदेश की अपेक्षा से असंख्यातगुणा हैं (ओरालिय. અલ્પબહુત્ર દ્વાર हाथ-(एएसिणं भंते । ओरालिय वे उव्जिय आहारग तेयग कम्मगसरीराणं) Bal वन् ! २ गोहा२ि४ बछिय, माह।२४, तेस स२ भिएशरीशमा (दबटुयाए) द्रव्यना अपेक्षाये (पएसटुयाए) प्रदेशाची अपेक्षाथी (दचयपएसट्रयाए) द्रव्य मने प्रशानी मयसाथी (कयरे) । (कयरेहितो) मानायी (अप्या वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा १) २६५, url, तुझ्य, मथवा विशेषाधि४ छ ? (गोयमा ! सात्यो वा आहारगसरीरा व्वद्रयाए) है गीतमा साथी माछा मार२४शरी२ छे द्रव्यनी मोक्षायी (वेउव्वियसरीरा दव्वदयाए असंखेज्जगुणा) यशरा२ द्रव्यना अपेक्षाथी मसभ्यातगुणा छ (ओरालियासरीरा दव्वयाए असंखेज्जगुणा) माहा२४शश२ द्र०यनी अपेक्षाथी असभ्याता छ (तेया कम्मगसरीरा दोवितुल्ला) तेस मन भए शरी२ भन्ने ५२।१२ छ (दव्वदयाए अणतगुणा) द्र०यथी मन त छे. (पएमट्टयाए) प्रशानी मपेक्षायी (सव्वत्थोवा आहारगसरीरा पएसटूयाए) याथी माछा माRAN२ छ प्रदेशाती पेक्षाथी (वेवप्रियसरीरा पएसयार असंखेन्जगणा) वाक्य
SR No.009341
Book TitlePragnapanasutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size62 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy