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________________ ઉદ્દેશ प्रज्ञापना गौतम ! नानासंस्थान संस्थितं प्रज्ञप्तम्, एकेन्द्रियतैजसशरीरं खलु भदन्त । किं संस्थित प्रज्ञप्तस् ? गौतम ! नानासंस्थानसंस्थितं प्रज्ञप्तम्, पृथिवोकायिकै केन्द्रियतैजसशरीरं खलु भदन्त ! किं संस्थितं प्रज्ञप्तम् ? गौतम ! मसूरचन्द्र संस्थानसंस्थितं प्रज्ञप्तम्, एवम् औदारिकसंस्थानानुसारेण भणितव्यं यावच्चतुरिन्द्रियाणामपि नैरचिकाणां भदन्त । तैजसशरीरं किं संस्थितं प्रज्ञप्तम् ? गौतम ! यथा वैक्रियशरीरम्, पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकानां मनुष्याणां यथा एतेषाञ्चैव औदारिकाणामिति, देवानां भदन्त ! कि संस्थितं तैजसशरीरं प्रज्ञप्तम् ? गौतम ! यथा वैक्रियस्य यावद् अनुत्तरौ१पातिकानामिति ॥ सू० ८ ॥ सरीरे भेओ भणिओ तहा भाणियन्वो) देवों के जैसे वैक्रियशरीर के भेद कहे हैं। इसी प्रकार तैजसशरीर के भेद भी समझलेने चाहिए (जाव सव्वद्धसिद्ध देवत्ति) सर्वार्थसिद्ध के देवों तक (तेयगसरीरे णं भंते! किंस ठिए पण्णत्ते ?) हे भगवन् ! तैजसशरीर किस आकार का कहा है ? (गोयमा ! नाणासंठाणसंठिए पण्णत्ते) हे गौतम! अनेक संस्थानों वाला कहा है (एगिंदिय तेयगसरीरे णं भंते! किं संठिए पण्णत्ते ?) हे भगवन् ! एकेन्द्रिय का तैजसशरीर किस आकार वाला कहा है ? (गोयमा !णाणा संठाणसंटिए पण्णत्ते) हे गौतम ! नाना संस्थानों वाला कहा है ( पुढवि काइयएगिंदियतेयगसरीरे णं भते ! किंसंठिए पण्णत्ते ?) हे भगवन् ! पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय का तैजसशरीर किस आकार को कहा है ? (गोयमा ! मसूर चंद संगणसंठिए पण्णत्ते) हे गौतम! मसूर के दाल के आकार का कहा गया है और यहां चन्द्र का अर्थ दाल है ( एवं ओरालिय संठाणानुसारेण भाणियां) इस प्रकार औदारिकशरीर के संस्थान के अनुसार कहना चाहिए (जाव चउरिंदियाण वि) यावत् चौइन्द्रियों का भी । (नेरइया णं भते ! तेयगसरीरे किं संठिए पण्णत्ते ?) हे भगवन् ? नारकों के (तेयगसरीरेण भंते! किं संठिए पण्णत्ते) भगवन् । तै सशरीर ठेवा साधारन ह्यां छे ? (गोयमा ! नाणा संठाणस ठिए पण्णत्ते) गौतम ! भने संस्थानावाना उद्यां (एर्गिदिय तेयगसरीरेण भंते ! किं संठिए पण्णत्ते ) है लगवन् ! थोडेन्द्रियना ते सशरीर ठेवा आहारवाणा ह्यां छे ? ( गोयमा ! णाणास ठाणस ठिए पण्णत्ते) गौतम ! नाना संस्थान वाला ह्या छे (पुढविकाइय एगिंदिय तेयगसरीरेण भंते किं संठिए पण्णत्ते १) से लगवन् ! पृथ्वीभयिष्ठ मेन्द्रियना ते सशरीर वा मारना ४ है ? (गोयमा ! मसूरचंद ठाणासं'ठिए पण्णत्ते) गौतम | भसूरनी हाजना आहारना ह्यां हे भने यहीं यन्द्रना अर्थहा छे ( एवं ओरालिय स ठाणाणुसारेण भाणियव्वं) से प्रहारे मोहारि४शरीरना संस्थानना अनुसार महेवु लेध्ये (जाव चउरिंदियाण वि) यावत् यतुरिन्द्रियोना य (नेरइयाणं भंते ! तेयगसरीरे किं स ठिए पण्णत्ते ?) डे भगवन् ! नारडोना तै सशरीरना
SR No.009341
Book TitlePragnapanasutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size62 MB
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