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________________ - प्रमेयबोधिनी रीक्षा पद २१ सू० ६ वैक्रियशरीरसंस्थाननिरूपणम् ७११ प्राणतारणाच्युतेषु तिस्रो रत्नयः, अवेयकल्पातीतवैमानिकदेवपञ्चेन्द्रियवै क्रियशरीरावगा. इना किं महालया प्रज्ञप्ता ? गौतम ! ग्रैवेयकदेवानाम् एका भवधारणीया शरीरावगाहना प्रज्ञप्ता, सा जघन्येन अङ्गुलस्यासंख्येयभागम्, उत्कृष्टेन द्वे रत्नी, एवम्-अनुत्तरौपपातिकदेवानामपि, नवरस् एका रनिः ॥ सू० ६॥ टीका-पूर्व वैक्रियशरीराणां संस्थानानि प्ररूपितानि, सम्प्रति तेषामेव शरीराणायवगाहना परिमाणं प्ररूपयितुमाह-'वेउब्धियसरीरसस्त णं भंते ! के महालिया सरीरावगाहना पण्णत्ता ?' हे भदन्त ! वैक्रियशरीरस्य खलु किं महालया-कियद विस्तारा शरीरावगहना प्रज्ञप्ता ? भगवानाह-'गोयमा !' हे गौतम ! 'जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज इभाग, उक्कोलेणं साति(आणयपाणय आरणच्चुएस तिणि रयणीओ) आनत, प्राणत, आरण और अच्युत कल्प से तीन हाथ (गेवेज्जगकप्पातीय बेनाणिय देव पंचिंदिय वेउव्विय सरीरए कि महालए पण्णते ?) अवेयक कल्पातीत वैमानिक देव पंचेन्द्रिय का वैक्रियशरीर कितना बडा कहा है ? (गोयमा ! गेवेज्जगदेवाणं एगा अवधारणिज्जा सरीरोगाहणा पण्णत्ता) हे गौतम ! अवेयक देवों की एक अवधारणीय शरीरावगाहना कही है (ला जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं' वह जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग की (उकोसणं दो रथणी) उत्कृष्ट दो हाथ की होती है (एवं अणुत्तरोववाइय देवाण वि) इली प्रकार अनुत्तरोपपातिक देवों की भी (णवरं एक्का रयणी) विशेषता यह है कि वह एक हाथ की होती है ।।१० ६॥ टीकार्थ--पहले वैक्रिय शरीर के संस्थान का प्ररूपण किया गया है, अब वैकि यशरीर को अवगाहना के प्रमाण की प्ररूपणा की जाती है__ गौतमस्वामी-हे भगवन् ! वैक्रियशरीर की अवगाहना कितनी बड़ी कही ससा२४६५मा यार हाथ (आणय पाणय आरण अच्चुएसु तिण्णि रयणीओ) मानतप्रायुत, सार मन मयुत५i हाय (गेवेज्जगकापातीयवेमाणियदेवपंचिदिय वेउव्वियसरीरए किं महालये पण्णत्ते ?) ३५४४८यातीत वैमानि ५ ५ येन्द्रिय वैठियशरीर उसु माटु छे ? (गोयमा ! गेवेज्जग देवाणं एगा अवधारणिज्जा सरीरागाहणा पण्णत्ता) है गौतम । अवेय४ हेवानी : सधारणीय शरीराबाईना ४ी (जहण्गेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभाग) ते धन्य शुसना मध्यातमालानी (उक्कोसेणं दो रयणी) भट मायनी डाय छ (एवं अणुत्तरोववाइय देवाण वि) मेरी प्रहारे अनुत्तरी ५५ति हेवानी ५१ (णवरं एक्कारयणी) विशेषता से छे मे हथिनी हाय छे. ટીકાથ–પહેલાં વક્રિયશરીરના સંસ્થાનનું પ્રરૂપણ કરાયું છે, હવે વૈકિયશરીરની અવગાહનાના પ્રમાણની પ્રરૂપણ કરાય છે— શ્રી ગૌતમસ્વામી–હે ભગવન્વૈક્રિયશરીરની અવગાહના કેટલી કહેલી છે?
SR No.009341
Book TitlePragnapanasutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size62 MB
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