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________________ प्रमैयबोधिनी टीका पद २१ सू० ४ वैक्रियशरीरमैदनिरूपणम् ६६३ यावद् देवपञ्चेन्द्रियवैक्रियशरीरमपि, यदि नैरयिकपञ्चेन्द्रियवैक्रियशरीरं कि रत्नप्रभापृथिवीनैरयिक पञ्चेन्द्रियवै क्रियशरीरं यावत् किम् अधःसप्तम पृथिवीनैरयिकपञ्चेन्द्रियवैक्रियशरीरम् ? गौतम ! रत्नप्रभापृथिवीनैरयिकपश्चेन्द्रियवैक्रियशरीरमपि यावद् अधासप्तमपृथिवी नैरयिक पञ्चेन्द्रियवै क्रियशरीरमपि, यदि रत्नप्रभापृथिवीनैरयिक क्रियशरीरं किं पर्याप्तक रत्नप्रभापंचिंन्द्रियों का वैक्रियशरीर होता है तो क्या नारक पंचेन्द्रियों का वैक्रियशरीर होता है ? (जाव) यावत् किं (देव पंचिंदि वेउव्वियसरीरे ?) क्या देव पंचेन्द्रियों का वैक्रियशरीर होता है ? (गोयना ! नेरय पंचिंदिय के चियसरीरे चि जाव देव पंचिंदियवेउब्वियसरीरे वि) हे गौलम ! नारक पंचेन्द्रियों का भी वैक्रिय शरीर होता है यावत् देव पंचेन्द्रियों का भी क्रियशारीर होता है ___ (जइ नेरक्य पंचिंदिय देउब्वियसरीरे) यदि नारक पंचेन्द्रियों का वैक्रियः शरीर होता है (किं रयणप्पया पुढदि नेरइय पचिंदिय वेउश्चियसरीरे) क्या रत्नप्रभा पृथ्वी के नारक पंचेन्द्रियों का क्रियशरीर होता है ? (जाब किं अहेसत्तमापुढवि नेरइय पंचिंदिय वेउविषयलरीरे ?) यावत् क्या अधः सप्तमी पृथ्वी के लारक पंचेन्द्रियों का क्रियशरीर होता है ? (गोयमा ! रयणप्पा पुढवि नेरइय पंचिंदिय वेउब्वियसरीरे) हे गौतम ! रत्नप्रभा पृथ्वी के नारक पंचेन्द्रियों का क्रियशरीर होता है (जाच अहेसतमा पुढवि नेरच्य पंचिंदियवेउवियसरीरे वि) यावत् अधः ससभी पृथ्वी के नारक पंचेन्द्रियों का भी वैक्रियशरीर होता है (जइ रयणप्पा पुढपिनेरइय वेउन्धियसरी रे) यदि रत्प्रभा पुथ्वी के नारकों का वैक्रियशरीर होता है (किं पजन्तगरयणप्पा पुढदि नेरदय वेउध्विय ક્રિયશરીર હોય છે તે શું નાર; પંચેન્દ્રિય ના વૈકિયશરીર હોય છે ? (Ha) યાવત (किं देव पंचिंदिय वेउबियसरीरे ?) हे ५ यन्द्रियाना ठियरीन डाय छ ? (गोयमा ! नेरइय पंचिंदिय वेउब्वियसरीरे वि जाव देव पंचिंदिय वेउब्वियसरीरे वि) गौतम । ना२४ પંચેન્દ્રિયેના પણ વૈકિયશરીર હોય છે યાવત્ દેવ પંચેન્દ્રિયેના પક્રિયશરીર હોય છે (जइ नेरइय पंचिंदिय वेउब्वियसरीरे) 4६ ना२४ पयन्द्रियाना वैयिशरी२ डाय छ (किं रयणप्पभा पुढवि नेरइय पंचिंदिय वेउव्वियसरीरे) शु न । पृथ्वीना ना२४ पश्यन्द्रियाना यशश२ डाय छ ? (जाव किं अहे सत्तमा पुढवि नेरइय पंचिदिए वेउव्वियसरीरे ?) यावत् मधः सातभी पृथ्वीना ना२४ ५ येन्द्रियाना (यशी२ हाय छ ? (गोयमा ! रयणापभा पुढवि नेरइय पंचिंदिय वेउव्वियसरीरे) गीत ।। २.१५मा पृथ्वीना ना२४ ५'यन्द्रियाना 434N२ ७।५ छ (जाव अहे सत्तमा पुढवि नेरइय पंचिंदिय वेउ बियसरीरे वि) यावत् अवः सातभी मीना ना२४ ५ येन्द्रियना ५९ वैछि शरी२ हाय छे. __ (जइ रयणप्पभा पुढवि नेरइथ वेउब्वियसरीरे) यहि २iven पृथ्वीना ना वैठियरी२ हाय छ (कि पज्जत्तग रयणप्पभा पुढवि नेरइय वेउब्वियसरीरे) शु. ५०d
SR No.009341
Book TitlePragnapanasutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size62 MB
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