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________________ प्रमैथयोधिनी टीका पद २१ सू० ३ औदारिकशरीरावगाहनानिरूपणम् कि महालया शरीरावगाहना प्रज्ञप्ता ? गौतम ! जघन्येन अगुलस्य असंख्येयभागम्, उत्कृप्टेन त्रीणि गव्यूतानि, एवमपर्याप्तानां जघन्येन उत्कृष्टेन अद्गुलस्या संख्येयभागम्, गर्भव्युक्रान्तिकानां पर्याप्तानाश्च जघन्येन अङ्गुलस्प असंख्येयभागम्, उत्कृप्टेन त्रीणि गपृतानि ॥ टीका-पूर्वमौदारिकशरीराणां संस्थानानि प्ररूपितानि अथ तेषामेव अवगाहना परिमाण प्ररूपयितुमाह-'ओरालियसरीरस्त णं भंते ! के महालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ?' पृथक्त्व (संमुच्छिमे) संमूर्छिम में (होइ) होती है (उच्चत्तं) उंचाई ॥२॥ (मणूसोरालियसरीरस्स गं भंते ! के महालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता) हे भगवन् ! मनुष्यों के औदारिक शरीर की अवगाहना कितनी घडी कही है ? (गोयमा ! जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइ भाग) हे गौतम ! जघन्य अंगुल के असंख्यातवेंभाग (उक्कोसेणं तिण्णिगाउयाई) उत्कृष्ट तीन गव्यूति (एवं अपज्जत्साणं) इसी प्रकार अपर्याप्तों की (जहण्णेणं उक्कोसेणं) जघन्य और उत्कृष्ट (अंगुलस्स असंखेज्जइभाग) अंगुल के असंख्यातवें भाग (समुच्छिमाणं जहणणं उक्कोसेणं) संमृछिमों की जघन्य और उत्कृष्ट (अंगुलस्स असंखेज्जहभाग) अंगुल के असंख्यातवें भाग (गम्भवक्कंतियाणं पज्जत्ताण य) गर्भजों की और पर्याप्तों की (जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जहभागं) जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग (उक्कोसेणं तिण्णि गाउयाई) उत्कृष्ट तीन गव्यूति की। . टीकार्थ-इससे पूर्व औदारिकशरीर के संस्थान की प्ररूपणा की गई थी, अब उसके अवगाहना के परिमाण का निरूपण किया जाता है गौतमस्वामी-हे भगवन् ! पूर्वप्ररूपित औदारिकशरीर की अवगाहना अर्थात भूछभमा (होइ) य छ (उच्चत्त) या. ॥२॥ . (मणूसोरालियसरीरस्स णं भंते ! के महालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता) है सन् ! मनुष्याना मोहा२ि४शरीरनी माना ही भाटी छ ? (गोयमा । जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभाग) है गौतम ! धन्य मांगन मसभ्यातमी माn (उकोसेणं तिण्णि गाउयाइं) एट अ ०यूति (एवं अपज्जत्ताणं) से रीत मर्यास्तानी (जहण्णेणं उक्कोसेणे) धन्य मने ट (अंगुलस्स असंखेज्जइभार्ग) मांगजन असभ्यातमी मा (समुच्छि माणं जहण्णेणं उक्कोसेणं) सभूछिभनी धन्य भने (अंगुलस्स असंखेज्जइभाग) मागणी असभ्यातमा माn (गव्भवक्कंतियाणं पज्जत्ताण य) सलना मन पयस्तिनी (जहण्णेणं अंगुलस्स असखेज्जइभाग) धन्य मांगजनो मध्यातमा लाn (उकोसेणं तिण्णि गाउयाई) उत्कृष्ट ऋष्य यूति. ટીકાથ–આના પહેલાં દારિક શરીરના સંસ્થાનની પ્રરૂપણા કરાઈ હતી, હવે તેમની અવગાહનાના પરિમાનું નિરૂપણ કરાય છે- શ્રી ગૌતમસ્વામી- હે ભગવન્! પૂર્વપ્રરૂપિત ઔદ્યારિક શરીરની અવગાહના અર્થાત
SR No.009341
Book TitlePragnapanasutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size62 MB
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