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________________ ६२० प्रज्ञापनास्त्रे अपर्याप्ता अपि एचश्चैव, गर्मव्युत्क्रान्तिकजळचराः पविधसंस्थानसंस्थिताः, एवं पर्याप्तापर्याप्तानामपि, एवं स्थलचराणामपि नसूत्राणि, एवं चतुष्पद स्थलचराणामपि, उरःपरिसर्पस्थलचराणामपि युजपरिसर्प स्थलचराणामपि, एवं खेचराणामपि नव सूत्राणि, नवरं सर्वत्र संमृच्छिमाः हुण्डसंस्थानसंस्थिता भणितव्याः, इतरे पट्यपि, मनुष्यपञ्चेन्द्रियौदारिकशरीरं खल्ल भदन्त ! किं संस्थानसंस्थितं प्रज्ञप्तम् ? गौतम ! पविधसंस्थानसंस्थितं प्रज्ञप्तम्, तधा-समचतुरस्रम् यावद् हुण्डम्, पर्याप्तापर्याप्तानामपि एवञ्चैय, गर्भव्युत्क्रान्तिकासंमूर्छिम जलचर हुंड संस्थान वाले होते हैं (एतेलि चेच पज्जत्ता वि अपज्जत्ता वि एवं चेव) इनके पर्याप्त और अपर्याप्त भी इसी प्रकार समझ लेवें " (गन्भवतियजलयरा छविह संहाणसठिया) गर्भज जलचर छहों संस्थान वाले होते हैं (एवं पज्जत्तापज्जत्ताण वि) इसी प्रकार पर्याप्तों-अपर्याप्तों के भी (एवं थलयराण विणवस्तुत्साणि) इसी प्रकार स्थलचरो के भी नौ सूत्र (एवं चउप्पयथलयराण वि) इसी प्रकार चतुष्पद स्थलचरों के भी (उरपरिसप्पथलयराण वि) उरपरिसर्प स्थलचरों के भी (भुमपरिसप्पधलयराण वि) भुजपरिसर्प स्थरचरों के भी (एवं खहयराण विणवत्ताणि) इसी प्रकार खेचरो के भी नौ सूत्र (नवरं) विशेष (सव्वत्थ) सर्वत्र (समुच्छिमा हुँइसंठाण संठिआ) संमूछिम हुंडकसंस्थान वाले (भाणिन्धा) कहने चाहिए (इयरे छस्तु वि) अन्य छहों मंस्थान वाले भी होते हैं ___ (मणूसपंचिंदिय ओरालियसरीरे णं भते ! किसंठाणसंठिए) मनुष्य पंचे न्द्रिय औदारिक शरीर हे भगवन् ! किस संस्थान वाला है ? (गोयला! छब्धिह संठाणसंठिए पपणत्ते) छह प्रकार के संस्थान वाला है (तं जहा समचउरंसे जाव हत्य छ (एतेसिं चेव पज्जत्ता वि अपज्जत्ता वि एवं चेव) समना पात भने मयत ५ मे ५४ारे (गन्भवक्कंतियजलयरा छव्विह सठाणसठिया) म सय२ छम सस्थानवा हाय छे (एवं पज्जत्तापज्जाण वि) मे १२ पति-पताना ! (एवं थलयराण वि णव सुत्ताणि) मे०४ मारे २५०यराना ५५ न सूत्र (एवं चउप्पय थलयराण वि) मे १२ यतु०५४ स्थलयोना ५ (उरपरिसप्प थलयराण वि) मे हारे ९२परिसप २५सयराना पY (भुयपरिसप्य थलयराण वि) सु०४५:२५ स्यसयराना ५] (एवं खहयराण वि णव सुत्ताणि) से प्र४ारे यन५ नप सूत्र (नवरं) विशेष (सव्वत्थ) सब समुच्छिमा हुड सठाणसठिया) स भूछिमसथान (भाणियव्वा) ४ नये (इयरे छसु वि) अन्य छये संस्थान नपा. __(मणूस पंचिंदिय ओरालियसरीरे णं भंते ! किं स ठाणस ठिए) मनुष्य पयन्द्रिय मो२ि४२२ है भगवन् ! ४या संस्थानमा छ ? (गोयमा! छव्विह सठाणस ठिए • पण्णत्ते) ७ ५४ाना थाना छे (तं जहा-समचउरसे जाव हुडे) त म हारे
SR No.009341
Book TitlePragnapanasutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size62 MB
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