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________________ प्रबोधिनी हा पक्ष २१०२ औदारिकशरीर संस्थान निरूपणम् ६१७ प्रज्ञप्तम् एवं सूक्ष्मवादरापानामपि तेजस्का थिकै केन्द्रियौदा रिकशरीरं खलु भदन्त । कि संस्थानसंस्थितं प्रज्ञप्तम् ? गौतम ! सूची कलापसंस्थानसंस्थितं प्रज्ञतम्, एवं सूक्ष्मवादरपर्यासपर्याप्तानामपि, वायुकायिकानामपि पताका संस्थानसंस्थित, एवं सूक्ष्मवादरपर्याप्तापर्यातानामपि, वनस्पतिकायिकानां नानासंस्थानसंस्थितं प्रज्ञतम्, एवं सूक्ष्मवादरपर्याप्ता पर्याप्ताना मपि, द्वीन्द्रियौदारिकशरीरं खलु भदन्त ! कि संस्थानसंस्थितं प्रज्ञप्तम् ? गौतम ! हुण्ड " (आउकाइए गिंदियओरालियारीरे णं भंते! किं संठिए पण्णत्ते ?) हे भगवन् ! अष्कायिक एकेन्द्रिय औदारिक शरीर कैसे आकार का है ? (गोयमा ! धिवुक बिंदु संठाणसंठिए पण्णत्ते) हे गौतम ( तिबुक बिंदु के आकार का कहा है ( एवं सुम बादर जलापत्ताण वि) इसी प्रकार सूक्ष्म, चादर पर्याप्त और अपर्याप्त का भी (ते काय एनिंदिय ओरालिय सरीरे णं भंते! किंसंठिए पण्णत्ते १) हे भगवन् ! तेजस्कायिक एकेन्द्रिय औदारिकशरीर कैसे आकार का कहा है ? (गोयमा ! सुईकलावठाणसंटिए पण्णत्ते) हे गौतम! सुइयों के समूह के आकार का कहा है ( एवं सुहुम बादर पज्जत्तापजताण वि) इसी प्रकार सूक्ष्म, बादर, पर्याप्त और अपर्याप्त का भी (वाक्कायाणवि पडागासंाणसंठिए) वायुकायिकों का भी पताका जैसे आकार का है ( एवं हम बादपजत्तापजताण वि) इसी प्रकार सूक्ष्म, चादर, पर्याप्त और अपर्याप्त का भी (वणस्सइकाइयाणं णाणासंठाणसंटिए पण्णसे) वनस्पतिकायिकों का शरीर नाना आकारों वाला कहा है (एवं छुहुन यादर पजत्तापान्तान वि) इसी प्रकार (आउकाइय एगिंदिय ओरालियसरीरे णं अंधे ' किं संठिए पण्णत्ते ?) डे लगवन् । अयूअयि मेहेन्द्रिय मोहारिहशरीर वा आपरता ४ । है ? (गोजमा । थिवुकविदुस ठाणस ठिए पण्णत्ते) हे गौतम ! स्तिपु जीन्हुना मारला ४ । छे ( एवं सुहुम बायर पज्जन्त्ता पज्जन्ताण वि) मेन अक्षरे सूक्ष्म, महर, पर्याप्त भने अपर्याप्तना संस्थान पशु भछे. ( तेक्वाइय एगिंदि ओलियसरीरे णं भंते । किं संठिए पण्णत्ते ?) हे भगवन् ! तेनस्थायिष्ठ गोेन्द्रिय मोहास्थिशरीर वा मारना है ? (गोयमा । सूईकलावस ठाण स ठिए पण्णत्ते) हे गौतम! सोयोना समूहना भारतां ह्या छे (एवं सुहुग वायर पज्जत्ता पज्जत्ताण वि) मेन प्रहारे सूक्ष्म, माहर पर्याप्त भने अपर्यागतना प (वाउक्काइयाणवि पडागास' ठाणस ठिए) वायुायिनी पशु धनना है। भार उद्योछे ( एवं सुहुम बायरपज्जत्तापज्जत्ताण त्रि) भेन प्रकारे सूक्ष्म, गाहर, पर्याप्त અને અપર્યાપ્તના પશુ, (वणस्सइ काइयाण वि णाणास दणस ठिए पण्णत्ते) वनस्पतिअयिोना शरीर नाना प्र० ७८
SR No.009341
Book TitlePragnapanasutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size62 MB
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