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________________ এয়ালা खेचरतियायोनिकपञ्चेन्द्रियौदारिकशरीरं संमूगिर्भव्युत्क्रान्तिकभेदाद् द्विप्रकारकम्, तदुभयमपि प्रत्येक पर्याप्तापर्याप्त भेदाद् द्विविधम्, इति चत्वारि सर्वसंकलनया तिर्यग्योनिकपञ्चेन्द्रियौदारिकशरीर विंशतिविधम्, मनुष्यपश्चेन्द्रियौदारिकशरीरंतु संमृच्छिमगर्भव्युत्क्रान्तिभेदाद् द्विविधम्, तदुभययपि पुनरेंककं पर्याप्तापर्याप्तभेदाद् द्विप्रकारकमिति चत्वारि, सर्वसंरूपया तु ५०, पश्चाशद्भेदा अनसेया औदारिकशरीराणामित्यवधेयम् ॥ १० १॥ ॥ औसारिकशरीरसंस्थानवक्तव्यता ।। मूलम्-ओरालियसरीरे भंते ! कि संठिए पण्णते ? गोयमा ! णाणासंठाणसंठिए पण्णत्ते, एनिदियओरालियसरीरे णं भंते । किं संठिए पपणत्ते ? गोयमा ! पाणा संठाणसंटिए पण्णते पण्णत्ते, पुढविकाइय एमिदिय ओरालियतीरे णं भंते ! किं संठिए पपणते ? गोयमा! मसूरचंदसंठाणसंठिए पण्णत्ते ? एवं सुकुमपुढविकाइयाण वि बायराणवि एवं चेक, पजत्तापज्जत्ताग वि एवं चेव आउकाइय एगिदियओरा. लियसरीरे णं अंते ! किं संठिए पपपत्ते ? गोयमा! थिषुकबिंदुसंठाण संठिए एण्णत्ते, एवं सुहुम बायरयजत्तापजताण दि, तेउकाइय एगिन्द्रिय औदारिकशरीर के सब भेदों की गणना आठ है। खेचर तिर्यग्योनिक पंचेन्द्रिय औशरिकशरीर संमूर्छिम और गर्भज के भेद से दो प्रकार का है और इन दोनों के भी पर्याप्त तथा अपर्याप्त के भेद से दो-दो भेद होते हैं। इस प्रकार चार भेद हुए सब मिलकर तिर्यग्योनिक पंचेन्द्रिय औदारिकशरीर वीस प्रकारका है मनुष्य पंचेन्द्रिय औदारिकशारीर संमूर्छिम और गर्भज के भेद से दो प्रकार का है और उनके भी पर्याप्त तथा अपर्याप्त के भेद से दो-दो भेद होते हैं। यों चार भेद हुए सब मिलकर औदारिकशरीर के पचास भेदों का यहां उल्लेख किया गया है। દારિક શરીરના બધા ભેદેની ગણના આઠ થાય છે. બેચર તિગેનિક પંચેન્દ્રિય દારિકશરીર સંમૂર્ણિમ અને ગર્ભજના ભેદથી બે પ્રકારના છે અને તે બન્નેના પણ પર્યાપ્ત તથા અપર્યાપ્તના ભેદથી બે-બે ભેદ થાય છે એ પ્રકારે ચાર ભેદ થયા. બધા મળીને તિયાનિક પંચેન્દ્રિય દારિકશરીર વીસ પ્રકારનાં છે. - મનુષ્ય પંચેન્દ્રિય દારિશરીર સમૃછિમ અને ગર્ભજના લોદથી બે પ્રકારના છે અને તેમના પણ પર્યાપ્ત તથા અપર્યાપ્તના ભેદથી બે-બે ભેદ થાય છે, આમ ચાર ભેદ થયા. બધા મળીને ઔદારિક શરીરના પચાસ ભેદનો અહીં ઉલ્લેખ કરાયેલ છે.
SR No.009341
Book TitlePragnapanasutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size62 MB
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