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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद २१ ० १ शरीरभेदननिरूपणम् ५९७ चरतिर्यग्योनिकपञ्चेन्द्रियौदारिकशरीरञ्च, पर्याप्तक संमूच्छिमोरः परिसर्प स्थलचरतियग्योनिरुपञ्चेन्द्रियौदारिकशरीरञ्च, एवं गर्भव्युत्क्रान्तिकोरः परिसर्प चतुष्ककोभेदः, एवं सुजपरिसर्या अपि, संमूच्छिम गर्भव्युत्क्रान्तिकपर्याप्तकाः अपर्याप्त काश्थ, खेचरा द्विविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-संमूछिमाश्च गर्भव्युत्क्रान्तिकाश्च, संमूच्छिमा द्विविधाः प्रज्ञताः, पर्याप्तकाश्च अप प्तिकाश्च, गर्भ युत्क्रान्तिका अपि पर्याप्त काश्च अपर्याप्त काश्च, मनुष्यपञ्चेन्द्रियौदारिकशरीरं खलु भदन्त ! कतिविधं प्रज्ञप्तम् ? गौतम ! द्विविधं प्रज्ञप्तम, तद्यथा-संमूच्छिममनुष्यपञ्चेदिय ओरालियसरीरे य) संमूर्थिम दो प्रकार का है, वह इस तरह अपर्याप्तक संमूर्छिम उपरिसर्प स्थलचर तिर्यग्योनिक पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर और पर्याप्सक संमूर्छिमउरपरिसर्प स्थलचर तिर्यग्योनिक पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर (एवंगम्भवस्कंतिय उरपरिसप्पे चश्मो मेओ) इसी प्रकार गर्भव्युत्क्रान्तिक उरपरिसर्प के चार भेद (एवं भुयपरिसप्पा वि) इसी प्रकार भुजपरिसर्प भी (संमुच्छिम गठभक्कंतियपज्जत्ता अपज्जत्ता य) संमूर्छिम, गर्भज, पर्यास और अपर्याप्त (खयरा दुविहा पण्णत्ता) खेचर दो प्रकार के कहे हैं (तं जहा-संमुच्छिमा य गन्भवतिया य) वह इस प्रकार संमूछिम और गर्मज (समुच्छिमा दुविहा पण्णत्ता) संम्मूर्छिम दो प्रकार के कहे हैं (पज्जत्ता अपज्जत्ता य) पर्याप्त और अप प्ति (गम्भवक्कंतिया वि पजत्ता, अपजत्ता य) गर्भज भी पर्याय और अपर्याप्त के भेद से दो प्रकार के हैं (मणूसपंचिंदिय ओरालियसरीरे गं अंते ! कतिविहे पण्णत्ते ?) मनुष्य पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर हे भगवन् ! कितने प्रकार का कहा है (गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते) हे गौतम ! दो प्रकार का है (तं जहा-समुच्छितिरिक्खजोणिय पंचिंदिय ओरालियसरीरे य) स भूछि भने ५४२ना छ-२ ॥ शतઅપર્યાપ્તક સંમૃમિ ઉરપરિસર્પ સ્થલચર તિર્યનિક પંચેન્દ્રિય ઔદારિક શરીર અને પર્યાપ્તક સંભૂમિ ઉરપરિસર્ષ સ્થલચર તિર્યનિક પચેન્દ્રિય ઢારિકશરીર (g गम्भकंतिय उरपरिसप्पे चउक्कओ भेओ) मे ४३ गमति : 8. परिसपना यार लेह (एवं मुयपरिसप्पा वि) मे ५४२ सुन परिस५ ५५ (समुच्छिम गम्भवतिय पज्जत्ता अपज्जत्ता य) स भूरिभ, पति मने ५५पित (खहयरा दुविहा पण्णत्ता) ५२ . ५४२न छ (तं जहा-समुच्छिमा य गम्भवक्कंतिया य) ते मारे-स भूमि म ८ (संमुच्छिमा दुविहा पण्णत्ता) स भूमि में प्रारना ४ा छ (पज्जत्ता अपज्जत्ता य) पर्याप्त मने मस्ति (गन्भदतिया वि पज्जत्ता, अपज्जत्ता य) - ५४ पर्याप्त म२ सयपत. (मणूस पंचिंदिय ओरालियसरीरे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्त) मनुष्य पयन्द्रिय मोहा॥२४॥२२ 8 लगवन् । ४८॥ ४॥२॥ ४i छ ? (गोयमा दुविहे पण्णत्ते) 3 गौतम! मे ४२ ४i छ (तं जहा -समुच्छिम मणूस पंचिदिय ओरालियसरीरे य, गम्भवक्कंति य
SR No.009341
Book TitlePragnapanasutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size62 MB
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