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________________ १५९२ प्रापनासत्र रिफशरीरं खलु भदन्त ! कतिविधं प्रज्ञप्तम् ? गौतम ! द्विविधं प्रज्ञप्तम्, तद्यथा-पर्याप्तक द्वीन्द्रियौदारिकशरीरञ्च, अपर्याप्त द्वीन्द्रियौदारिकशरीरञ्च, एवं त्रीन्द्रियाश्चतुरिन्द्रिया अपि, पञ्चेन्द्रियौदारिकशरीरं खलु भदन्त ! कतिविधं प्रज्ञप्तम् ? गौतम ! द्विविधं प्रज्ञप्तम्, तद्यथाविर्यग्योनिक पञ्चेन्द्रियौदारिकशरीरञ्च, मनुष्यपञ्चन्द्रियौदारिकशरीरश्च । तिर्यग्योनिकपञ्चेन्द्रियौदारिकशरीरं खलु भदन्त ! कतिविधं प्रज्ञप्तम् ? 'गौतम ! भिविधं प्रज्ञप्तम्, तद्यथाजलचरतिर्यग्योनिकपञ्चेन्द्रियौदारिकशरीरश्च, स्थलचरतिर्यग्योनिक पञ्चेन्द्रियौदारिकशरीरच, का शरीर भी इसी प्रकार (एवं जाव वणस्सह काइयएगिदिय ओरालियत्ति) इसी प्रकार यावत् धनस्पतिकायिक एकेन्द्रिय औदारिक भी समझलेवे ___(बेइंदिय ओरालियसरीरे णं भंते ! काविहे पण्णत्ते ?) हे भगवन् ! हीन्द्रिय औदारिकशरीर कितने प्रकार का कहा है ? (गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते) हे गौतम! दो प्रकार का कहा है (तं जहा-पज्जत्तगवेइंदिय ओरालियसरीरे य अपज्जत्तग. वेइदिय ओरालियसरीरे य) वे इस प्रकार-पर्याप्तक हीन्द्रिय औदारिक शरीर और अपर्याप्तक द्वीन्द्रिय औदारिक शरीर (एवं तेइंदिया चउरिंदिया वि) इसी प्रकार त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय भी। ___ (पंचिंदिय ओरालियसरीरे णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते?) हे भगवन् ! पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर कितने प्रकार का कहा है ? (गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते) हे गौतम! दो प्रकार का कहा है (तं जहा) वह इस प्रकार (तिरिक्खजोणिय पंचिंदिय ओरालियसरीरे थ, भुणुस्स पंचिंदिय ओरालियसरीरे य) तियरयोनिक पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर और मनुष्य पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर (तिरिवखजो णिय पंचिंदिय ओरालियसरीरे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ?) तियेग्योनिक એ પ્રકારે યાવત્ વનસ્પતિકાયિક એકેન્દ્રિય દારિકે પણ સમજવા. (बेइंदिय ओरालियसरीरेणं भंते । कइविहे पण्णत्ते ) है मगवन्! दीन्द्रिय माहा॥२3. शरीर हैदा ४२ छ ? (गोयमा दुविहे पण्णत्ते) 3 गौतम में प्रा२ना ४ह्या छ (तं जहा पजत्तग वेइंदिय ओरालियसरीरे य अपजत्तग बेइंदिय ओरालियसरीरे य) तमामा પ્રકા-પર્યાપ્ત ઢીદ્રિય દારિકશરીર અને અપર્યાપ્ત હીન્દ્રિય દારિક શરીર. (एवं तेइंदियचउरिदिया वि) से प्रारे त्रीन्द्रिय अन यतुन्द्रिय पय समनवा. (पंचिंदिय ओरालियसरीरेणं भंते । कविहे पण्णत्ते ?) 3 भगवन् ! पश्यन्द्रिय मोह:(२४३री२ मा ४२४ा छ १ (गोयमा ! दुविहे पण्णते) गौतम ! मे Fan Bai छ (तं जहा) ते ॥ ४॥रे (तिरिक्खजोणिय पंचिंदिय ओरालियसरीरे य, मणुस्स पंचिंदिय ओरालियसरीरे य) तिय योनि पयन्द्रिय मोहा२ि४शश२ मन मनुष्य पयन्द्रिय मोह।२४शरी२ (तिरिक्ख जोणिय पंचिंदिय ओरालियसरीरेणं भंते ! कइविहे पण्णत्ते ?) तियानि ५यन्द्रिय मोहानि शरी२ सावन् ! ४८४२i हा छ १ (गोरमा ! तिविहे पप्णत्ते)
SR No.009341
Book TitlePragnapanasutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size62 MB
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