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________________ उत्कृष्टेन सर्वार्थसिद्धे उत्पादः प्रज्ञप्तः 'विशहियाजमाणं जहष्णेणं भवणवासीसु उक्कोसेणं सोहम्मे कप्पे' विराधितसंयमानां जघन्येन भवनवासिए उत्कृप्टेन सौधर्मे कल्पे उत्पादः, प्रज्ञप्तः, 'अविराहियसंजमासंजमाणं जहणेणं सोहम्मे कप्पे उक्कोसेणं अच्चुए कप्पे' अविराधितसंयमासंयमानां जघन्येन सौधर्मे कल्पे, उल्टेन अच्युतो कल्पे उत्पादः प्रज्ञप्तः, 'विराहिय संजमासंजमाणं जद्दण्णेणं भवणवासीयु उक्कोसेणं जोइसिएस' विरापितसंयमासंयमानां जघन्येन भवनवासिषु उत्कृष्टेन ज्योतिष्केषु उत्पादः प्रज्ञप्तः, 'असण्णी जइण्णेणं भवणवा सील उक्कोसेणं वाणमंतरेसु'-अमंज्ञिनां जघन्येन भवनासिषु उत्कृप्टेन वानव्यन्तरेषु मध्ये उत्पादः प्रज्ञप्तः, 'तावसाणं जहण्णेणं भवणवासीसु उक्कोसेणं जोइसिएम' तापसानां जघन्येन भवनवासिपु उत्कृष्टेन ज्योतिष्केषु उत्पादः प्रज्ञप्तः, 'कंदप्पियाणं जहण्णेणं भवणवासिम उकोहणं सोहम्मे कप्पे' कान्दर्पिकाणां जघन्येन भवनवासिषु उन्कृष्टेन सौधर्मे कल्पे उत्पादः प्रक्षप्त', 'चरमपरिवायगाणं जहणेण अवणवासिसु उको सेणं बंभलोए कप्पे' चरकपरिवाजकानां जघन्येन भवनवासिषु उत्कृष्टे न ब्रह्मलोके कल्पे उत्पादः प्रज्ञप्तः, 'किब्धिसियाणं जहण्णेणं सोहम्मे कप्पे उक्कोसेणं लंतए कप्पे' हिल्विपिकाणां पापविशेपवता जघन्येन सौ. की उत्पत्ति जघन्य सौधर्म कल्प में और उस्कृष्ट सर्वार्थसिद्ध कल्प में कही गई है । विराधितसंयमों का उत्पाद जघन्य भवनवासियों में, उत्कृष्ट सौधर्म नाम्नक कल्प में होता है। जिन्होने अपने संयमासंयम की अर्थातू देश चारित्र को विराधना नहीं की है, उनका जघन्य उत्पाद सौधर्म कल्प में और उत्कृष्ट उत्पाद अच्युत कल्प में कहा गया है। संयमासंयम की विराधना करने वाली का जघन्य भवनवासियों में, उत्कृष्ट ज्योतिषको में उत्पाद होता है। असे ज्ञियों का उत्पाद जघन्य भवनवासियों में, उत्कृष्ट तानव्यन्तरो मे होता है। तापलो का उत्पाद जघन्य सवनवासियों में उत्कृष्ट ज्योतिष्कों में कहा गया है। कान्दर्षिको का उत्पाद जघन्य भवनवासियो में, उत्कृष्ट सौधर्म कल्प में उत्पाद होता है। चरक परिव्राजको का जघन्य भवनवासियों में, उत्कृष्ट ब्रह्मलोक में उत्पाद कहा है। किल्बिषिकों का उत्पाद जघन्य सौधर्म कल्प में, उत्कृष्ट लान्तक સૌધર્મ ક૫માં અને ઉત્કૃષ્ટ સર્વાર્થસિદ્ધ કલvમાં કહેલ છે. વિરાધિત સંયમેને ઉત્પાદ જઘન્ય ભવનવાસિયામાં, ઉત્કૃષ્ટ સૌધર્મ નામક ક૫માં થાય છે. જેઓએ પિતાના સંયમસંયમની અર્થાત દેશ ચારિત્રની વિરાધના કરેલી નથી, તેમને ઉત્પાદ જઘન્ય સોધા કપમાં અને ઉત્કૃષ્ટ ઉત્પાદ અશ્રુત કહ૫માં કહે છે. સંયમાસ યમની વિરાધના કરનારાઓને જઘન્ય ભવનવાસમાં ઉત્કૃષ્ટ તિરોમાં ઉત્પાદ થાય છે. અસ રિયાન ઉત્પાદ જઘન્ય ભજનવાસિમાં, ઉત્કૃષ્ટ વાનવ્યન્તરમાં થાય છે તાપસનો ઉત્પાદ જઘન્ય ભવનવાસિમાં, ઉત્કૃષ્ટ જાતિષ્કોમાં કહેવાયેલ છે. કાર્દપિકોના જઘન્ય ભવનવાસિયમાં, ઉત્કૃષ્ટ સૌધર્મ કલ્પમાં ઉત્પાદન થાય છે. ચરપરિવ્રાજકોને જઘન્ય ભવનવાસિયા
SR No.009341
Book TitlePragnapanasutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size62 MB
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