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________________ प्रशापना ५७२ विकानाम् चरकपरिव्राजकानां किल्बिपिकाणां विरथाम् आजी वकानाम् आभियोगिकानां सलिङ्गिनाम्, दर्शनव्यापश्नकानां दे. लोकेषु उपपद्यमानानां कस्य कुत्र उपपातः प्रज्ञप्तः ? गौतम ! असंयतमव्यद्रव्यदेवानां जघन्येन भवनवासिषु उत्कृप्टेन उपरितनयैवेयके पु अविराधितसंयमानां जघन्येन सौधर्मे कल्पे उत्कृष्टेन सर्वार्थसिद्धं विराधितवानां जबन्येन भवनवासिषु उत्कृष्टेन सौधर्मे कल्पे, अविराधितसंयमासंयमानो जघन्येन सौधर्मे कल्पे, उत्कृष्टेन अच्युते कल्पे, विराधितसंयमासंयमानां जघन्येन भवनवासिषु उत्कृष्टेन ज्योदिसंयमासंयम की विराधना किए हुए (असप्णीणं) असंज्ञी (तावसानं) तापस (कंदपिया) कांदर्दिक- हास-परिहास करने वाले चरणवन्त (चरगपरिव्वायगाणं) चरक परिव्राजक (किञ्चिसियाणं) किल्विषिक (तिरिच्छियाण) देशविर तिर्यचोंका (आजीवियाणं) आजीविक - गोशालक के मतानुयायी (आभियोगि या) आभियोगिक - विद्यामंत्र आदि का प्रयोग करने वाले (सलिगीणं) साधुलिंग वाले (दंसणवावण्णगाणं) सम्पन्दर्शन का वमन करने वाले (देवलोएस) देवलोकों में (उववज्जमाणाणं) उत्पन्न होने वालों का (कस्स) किसका ( कहिं ) कहां (उववाओ) उपपात (पण्णत्तो) कहा है (गोमा !) हे गौतम! (असंजय भविव्वदेवानं ) असंयत भव्य द्रव्य देवों का (जहणं भवणवासीसु) जघन्य भवनवासियों में (उक्को सेणं उवरिमगेवेज्ज - एस) उत्कृष्ट ऊपरी ग्रैवेयकों में (अविराहियसंजमाणं जहस्सेणं, सोहम्मे कप्पे कोसेणं सव्वसिद्धे) संयम की विराधना न करने वालों का जघन्य सौधर्म कल्प में, उत्कृष्ट सर्वार्थसिद्ध में (विराहियतंजमार्ग जहणं भवणवासीसु, उक्को सेणं सोहम्मे कप्पे ) संयम की विराधना करने वालों का जघन्य भवनवासियों में, भासयभनी विराधना ४२नारा ( असण्णीणं) असंज्ञी (तावसानं) तापस (कंदप्पियानं ) भन्दर्थि:- हास परिहास ४२नारा यरशुरन्त (चारगपरिव्वयाण) २२४ परिवा४४ (किल्बि सियाणं किल्बिषिक तिरिच्छियाणं) हे विश्त तिर योना (आजीवियाणं) भावि४- गोशासना भतानुयायी (आभिनियोगियाणं ) मालिदियोगिक विद्यार्थीत्र महिना प्रयोग ४२ २ (सलिंगीणं) साधुसिंगवाणी (दंसणत्रावण्णगाणं) सम्यग्दर्शननुं वमन नारा (देवलोएसु) हे साभां (उववज्जमाणाणं) उत्पन्न थनारा (कस्स) भेना (कर्हि) या (उववाओ ) उपयात (पण्णत्ता) ह्यो छे. (गोयमा) हे गौतम । ( असंजय भविय दव्वदेवाणं) असंयत भव्य द्रव्य देवाना (जहणणं भवणवासीसु) ४धन्य भवनवासियोमा (उक्कोसेगं उवरिमगेवेज्जएसु) उत्कृष्ट उपरीभ ग्रैवेयठोभां (अविराहियसंजमाणं जहणेणं सोहम्मे कापे, उक्कोसेणं सव्वट्टसिद्धे ) सयभनी विराधना न ४२नारायाना धन्य सौधर्म मां, उत्कृष्ट सर्वार्थ सिद्धयां (विराहिय संजमाणं जहण्णेणं भवणवासीसु, उक्कोसेण सोहम्मे कप्पे ) सयभनी विराधना ४२नारायना नधन्य अवनवासियोभां, सौधर्म म्हयां (अविराहिय संजमासंज्ञमाणं) सयभासय
SR No.009341
Book TitlePragnapanasutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size62 MB
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