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________________ प्रमेयबोधिनी टीक्षा पद २०१० तीर्थंकरोत्पादनिरूपणम् ५४९ यस्य खलु रत्नप्रभापृथिवी नैरयिकस्य तीर्थरनानगोत्राणि दो बद्धानि यावत् नो उदीर्गानि उपशान्तानि भवन्ति स खलु रत्नाभापृथिवी नरयिको रत्तामापृथिवी नरयिकेभ्योऽनन्तरमुवृत्त्य तीर्थकरत्वं नो लभेत, स तेनार्थेन गौतम ! एवमुच्यते-अस्त्येको लभेत, अस्त्येको नो लभेत, एवं मार्कराप्रभा यावद वालुकाप्रभापृथिवी नैरपिकेभ्य स्तीर्थकरत्वं लभेत, पङ्कप्रभापृथिवी नैरयिकः खलु भदन्त ! पङ्कप्रभाथियो नैर यि योऽनन्तरमुद्र । तीर्थकरत्वं गरत्तं लभेज्जा) तीर्थकरत्वको प्राप्त करता है (जसणं स्यणप्पभाधुढवी नेरई यस्स) रत्नप्रभा पृथ्वी के जिस नारक (तिस्थगर नामगोसाई गो बहाई) तीर्थकर नामगोत्र कर्म नही बंधा है (जाब नो उदिन्नाई) यावत् उदय में नहीं आया है (उवसंताई हवलि) उपशान्त हैं (लेणं स्थणप्पापुढवीनेरइए) वह दन्तप्रमा पृथ्वी का नारक (श्यणप्पमापुढचीनेर इपहिलो) रत्नप्रभा पृथ्वी के नारों से (अणंतरं उच्च हिता) अनन्तर उवर्तन करके (तिस्थगरत्तं जो लज्जा ) तीर्थकर स्व प्राप्त नहीं करता (से पट्टेणं गोवला! एवं बुच्चह-अत्धेगइए लज्जा . अत्थेगइए नो लज्जा ) हे गौनस! इस हेतुखे ऐसा कहा जाता है कि कोई प्राप्त करता है, कोई प्राप्त नहीं करता (एवं सहकरप्पा जाच चालुयप्पा पुन्वी नेरहएहितो) इसी प्रकार शर्करा. प्रभा यावत् बालुका प्रभा पृथ्वी के नारकों से (लित्यगरतं लभेजा) तीर्थकर पन पाता है (पंकप्पभापुढदी नेरइए णं मंते ! पंकपमा पुढची देरएहितो) भगवन ! पंकप्रभा पृथ्वी का नारक पंकप्रमा पृथ्वी के नारक से (अणंत नाटिका अनन्तर उदवर्तन करके (तित्थगरतं लभेजा ?) तीयकरत्व प्राप्त करता है? २२त्नमा पृथ्वीना ना२ना (तित्थगर नामगोयाई णो बधाई) तीर्थ ४२ नागर नही मधाता (जाव नो उदिन्नाइं) यावत् यम नबी माया (उवसंताई हति) 34Aन्त . (से णं रयणप्पभा पुढवी नेरइए) त २त्नप्रभा पृथ्वीना न.२५ (रयणप्पभा पुढवी नेहा हितो) २त्नप्रभा थ्वीना नाथी (अणंतर उचट्टित्ता) मनन्तर पतन शन (तित्थगरतं जो लभेजा) ताय २१ मत ना ४ता (से तेणठेणं गोरमा एवं बुच्चइ-अन्यगहए लभेजा, अत्येगइए नो लभज्जा) तम ! से थी ओम उपाय छोर प्रात ४२ छ, छ प्राप्त नथी ४२ता. (एवं सकरप्पभा जाव वालुयमापुडवि नेरहएहितो) मे रे सा सावत पामा पृथ्वीना ना थी (तित्थगरतं लभेजा) ती ! २५ मे . __ (पंकप्पभापुढवी नेरइएणं भते । पंकारभापुढःी नेएहितो) २ पाप । ५ पृथ्वीना ना२४ ५४५सा ना ना२४५०४ाथी (अंतर उच्वहिता) -मन-२ निदान (तित्थगरतं लभेजा) ती प्राप्त ४२ छे ? (गोगमा । णो समटूटे) र गीत !
SR No.009341
Book TitlePragnapanasutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size62 MB
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