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________________ प्रययोधिनी टोका पद २० ५० ५ पृथ्पोकायाद्युझर्तननिरूपणम् 'एवं जाव थणिय कुमारा' एवम्-अभुरकुमारोतरीत्या यावद्-नागकुमारः, सुवर्णकुमारः, अग्रिकुमारः, विद्युत्कुमारः उदधिकुमारः, द्वीपकुमाः, दिवशुमार, पवनकुमारः, स्तनितकुमारश्चापि नैरयिकादि च विंशतिदण्डक्रगेण स्वस्वमवेश्योऽनन्तर गुवृत्य यथायोग्यं क्वचिदुत्पद्यते क्वचिनोत्पद्यते इत्येवं वक्तव्यः, इति भावः ।। सू० ४ ॥ . पृथिवीकायिकाद्यवृत्त वक्तव्यतः ॥ मूलस्-पुढवीकाइए णं अंते ! पुढबीकाएहिलो अणंतरं उबट्टित्ता नेरइएसु उबवजेजा? गोयमा! णो इगते समटे, एवं असुरकुमारेसु वि जाव थणियकुमारेसु वि, पुढीकाइए णं भंते ! पुढवीकाइएहितो अगंतरं उबहित्ता पुढवीकाइएसु उतवज्जेजा? गोयमा! अत्थेगइए उववज्जेजा, अत्थेगइए जो उवबज्जेजा, जे णं भंते ! उववज्जेजा केवलिपण्णतं धम्मं लभेजा लवणयाए ? गोयमा ! नो इणढ़े समटे, एवं आउकाइआदिसु निरंतरं भाणियब्वं जाव चउरिदिएसु, पंचिदियतिरिक्खजोणियमणुश्सेसु जहा नेरइए, वाणमंतरजोइ. सियवेमाणिएसु पडिलेहो, एवं जहा पुढवीकाइओ भणिओ तहेव उत्पन्न होता तथा वानव्यन्तरो में, ज्योतिष्को में और वैमानिको में कोई भी उत्पन्न नहीं होता उसी प्रकार कोई असुरकुमार असुरकुमारो से निकल कर पचे. न्द्रियतिथंचो और मनुष्यो में उत्पन्न हो सकता है, कोई नहीं उत्पन्न होता, मगर वानव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवो में तो कोई भी उत्पन्न नहीं होता है। जैसे असुरकुमारो के विषय में कहा है, उसीप्रकार नागकुमार, सुवर्ण कुमार, अग्निकुमार, विद्युत्कुमार उदधिकुमार, डीपकुमार, दिगाकुमार, पवनकुमार, और स्तनित कुमार देवों के विषय में भी कहलेना चाहिए। चौवीस दंडकों में से किस-किस दंडक में ये उत्पन्न होते हैं और किसमें नहीं, यह सब कथन असुरकुमार के कथन के समान ही है। નથી થતા, એજ પ્રકારે અસુરકુમાર અસુરકુમારો માથી નિકળીને પંચેન્દ્રિય તિર્યો અને મનમાં ઉત્પન્ન થઈ શકે છે, કેઈ નથી ઉત્પન થતા, પણ વાનન્તર તિષ્ક અને વૈમાનિક દેવામાં તે કઈ પણ ઉપન નથી થતા. જેમ અસુરકુમારના વિષયમાં કહ્યું છે, એજ પ્રકારે નાગકુમાર, સુવર્ણકુમાર, અગ્નિકુમાર, વિદ્યકુમાર, ઉદધિકુમાર, દ્વીપકુમાર, દિશાકુમાર અને નિતકુમાર દેના વિષયમાં પણ કહેવું જોઈએ. ચોવીસ દંડકમાંથી કયા કયા દંડકમાં એ ઉત્પન્ન થાય છે અને કયામાં નહી એ બધું કથન અસુરકુમારના કથનના સમાન જ છે.
SR No.009341
Book TitlePragnapanasutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size62 MB
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