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________________ प्रययो चिनी हा पाइ २९ १०२ पकनकियाकरण नपण अन्तक्रियां कुर्वन्ति 'वणस्सइकाइया छच्च' वनस्पति कायिका अनन्तरागता जघन्येन एको वा द्वौ वा यो का, उत्कृप्टेन पट् च एकतायन अन्तक्रियां कुर्वन्ति 'पंचिंदियतिरिक्खजोणिया दप्त' पञ्चेन्द्रियतिग्मोलिका अनन्तरागता जघन्येन एको वा द्वौ वा त्रयो वा, उत्कृष्टेन दश एकरामयेन अन्तक्रियां कुर्वन्ति, 'तिरिक्स्य जोणिणीओ दस' पञ्चन्द्रियतिर्यज्योनिक स्त्रियोऽनन्तरागता जघन्येन एका वा द्वे वा तिस्रो वा उत्कृष्टेग दश एकसमयेन अन्तक्रि पां कुर्वन्ति 'यणुस्सा दस मनुष्या अनन्तरागता जघन्येन एको वा द्वौ वा यो घा, उत्कृष्टेन दश एकसमयेन अन्तक्रिया कुर्वन्ति, 'मणुस्सीओ वीसं' मानुष्यः अनन्तरागता जघन्येन एका वा द्वे वा तिस्रो वा, उत्कृष्टेन विंशतिः एकसमयेन अन्तक्रियां कुर्वन्ति 'वाणमंतरा दस' वानव्यन्तमा अनन्तरागगा जघन्येन ए हो वा द्वौ वा त्यो वा उत्कृष्टेन दश एकसमयेन अन्तक्रियां कुर्वन्ति, 'वाणपंतरीओ पंच' वानव्यन्तरस्त्रियोऽजन्तरागता जघन्येन एका वा द्वे वा तिस्रो वा उत्कृष्टेग पञ्च एकसमयेन अन्तक्रियां कुर्वन्ति, 'जोइसिया दस' ज्योतिष्का:-अनन्तरागता जघन्येन एको वा द्वौ वा त्रयो वा उत्कृष्टेन दश एकसमयेन अन्तक्रियां कुर्वन्ति, 'जोइसिणीओ वीसं' ज्योतिक नियोऽनन्तरागता जघन्येन एका वा जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट दश एक समय मे अन्तक्रिया करते हैं। अनन्तरागत पंचेन्द्रियतिथेच स्त्रियां जघन्य एक, दो अथवा तीन और उत्कृष्ट दश एक समय मे अन्तक्रिया करती हैं। अनन्तरागत मनुष्य जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट दश एक समय में अन्तक्रिया करते हैं। अनन्तरागत मनुष्पनियां जघन्य एक, उत्कृष्ट वील एक समय में अन्तक्रिया करती हैं। अनन्तरागत वाणव्यन्तर जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट दश एक समय मे अन्तक्रिया करते हैं । अन्तरागत वानव्यन्तर देवियां जघन्य एक, दो या तीन उत्कृष्ट पांच एक समय में अन्तक्रिया करती हैं ! अनन्तरागत ज्योतिषक जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट दश अन्तक्रिया करते हैं। अनन्तरागत ज्योतिष्क स्त्रियां जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट वीस एक समय में अन्तक्रिया करती हैं। अनन्तरागत वैमानिक जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट एक રાગત વનસ્પતિકાયિક જઘન્ય એક, બે અગર ત્રણ અને ઉત્કૃષ્ટ છે એક સમયમાં અન્તક્રિયા કરે છે. અનન્તરાગત પચેન્દ્રિય તિર્યંચ સ્ત્રિયે જઘન્ય એક, બે અગર ત્રણ અને ઉત્કૃષ્ટ દસ એક સમયમાં અન્તક્રિયા કરે છે. અનન્તરાગત મનુષ્ય સ્ત્રિયો જઘન્યથી એક બે અગર ત્રણ અને ઉત્કૃષ્ટ વીસ એક સમયમાં અંતક્રિયા કરે છે. અનન્તરાગત વાન-વ્યન્તર જઘન્ય એક, બે અગર ત્રણ અને ઉત્કૃષ્ટ દશ એક સમયમાં અન્તક્રિયા કરે છે. અનન્તરાગત વાનગ્યન્તર દેવિચ જન્ય એક, બે અને ત્રણ ઉત્કૃષ્ટ પાંચ એક સમયમાં અનતક્રિયા કરે છે. અનcરાત જયતિષ્ઠ જઘન્ય એક, બે અગર ત્રણ અને RJ દશ અન્તકિયા કરે છે. અનન્તરાગત તિક ઝિયે જઘન્ય એક, બે અગર ત્રણ અને ઉત્કૃષ્ટ વીસ એક સમયમાં આ તક્રિયા કરે છે. અનન્તરાગત વૈમાનિક જઘન્ય એક, બે
SR No.009341
Book TitlePragnapanasutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size62 MB
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