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________________ ४७८ प्रापनासो टीया-अष्टादशपदे कायस्थिति प्ररूपणं कृतम्, अथै कोनविंशतितमे पदे सम्यक्त्वं प्ररूपयितुं कस्यां कायस्थिती सम्यग्दृ' टयादिगेदेन कतिविधा जीया भवन्तीति प्ररूप्यते'जीवाणं भंते ! किं सम्मदिट्टी, मिच्छादिट्ठी, सम्मामिच्छाविट्ठी ?' गौतमः पृच्छति-'हे भदन्त ! जीवाः खलु किं सम्यग्दृष्टयो भान्ति ? किं का मिथशादृष्टयो सवन्ति ? सम्यङ्मिथ्यादृष्टयो वा किं भवन्ति ? भगवानाह-'गोयमा !' हे गौतम ! 'जीवा सम्मादिट्ठीवि, मिच्छादिट्ठी वि, सम्मामिच्छादिही वि' जीवाः सभ्यग्दृष्टयोऽपि भवन्ति, एवं मिथ्यादृष्ट(सम्मदिट्ठी वि, मिच्छादिही वि, लम्मामिच्छादिट्टी वि) सम्यग्दृष्टि भी, मिथ्याटि भी, सम्पग्मिथ्याष्टि भी होते हैं। (सिद्धा णं पुच्छा ?) सिद्ध विषयक-प्रश्न ? (गोयमा ! सिद्धा सम्मदिट्टी) हे गौतम ! सिद्ध सम्यग्दृष्टि हैं (गो मिच्छादिट्ठी) मिथ्यादृष्टि नहीं (णो सम्मामिच्छादिट्ठी) सम्यग्मिथ्यादृष्टि भी नहीं । सम्यक्षपद समाप्त टीकार्थ-पिछले अठारहवें पद में कायस्थितिका निरूपण किया गया है, प्रस्तुत उन्नीसवें पद में सम्यक्त्व की प्ररूपणा करने के लिए कायस्थिति में सम्यग्दृष्टि आदि के भेद से कितने प्रकार के जीव होते हैं, यह कहते हैं। अर्थात् इस पद में यह दिखलाया जाना है कि चौवीस दडकों के जीवों में से किस-किस में कौन-कौन सी दृष्टि पाई जाती हैं ?, गौतमस्वामी पहले सामान्य जीवों के विषय में प्रश्न करते हैं-हे भगवन् जीव क्या सम्यग्दृष्टि होते हैं ? अथवा मियादृष्टि होते हैं ? या सम्य. ग्मिथ्यादृष्टि होते हैं ? ___ भगवान्-हे गौतम ! जीव सम्यग्दृष्टि भी होते हैं मिथ्यादृष्टि भी होते हैं ज्योति मन वैमानि: (सम्मदिट्ठी वि, मिच्छादिट्ठी वि, सम्मामिच्छादिट्ठी वि) सभ्याट પણું, મિથ્યાદિષ્ટ પણ, સમૃમિથ્યાષ્ટિ પણ હોય છે. (सिद्धाणं पुच्छा १) सिद्ध विष-प्रश्न ? (गोयमा ! सिद्धा सम्मदिट्री) गौतम सिद्ध सभ्याट छ (णो मिच्छादिट्ठी) मिथ्याटि नडी (णो सम्मामिच्छादिदी) सभ्यभिथ्याट पर नही. સમ્યકત્વ પદ સમાપ્ત ટીકાર્થ–પાછલા અઢારમાં પદમાં કાયથિતનું નિરૂપણ કરાયું છે. પ્રસ્તુત ઓગણીસમા પદમાં સમ્યકત્વની પ્રરૂપણ કરવાને માટે કાયસ્થિતિમાં સમ્યગ્દષ્ટિ આદિ ભેદથી કેટલા પ્રકારના જીવ હોય છે, એ કહે છે. અર્થાત્ આ પદમા એ બનાવાય છે કે વીસ દંડકના જેમાંથી કેવા કેનામાં કેવી કેવી દકિટ મળી આવે છે? શ્રી ગૌતમસ્વામી–પહેલા સામાન્ય જીવોના વિષયમાં પ્રશ્ન કરે છે- હે ભગવન 'જીવ શું સમ્યગૃષ્ટિ હોય છે અથવા મિથ્યાદષ્ટિ હોય છે? અગર સમ્યગૃમિથ્યાદષ્ટિ હોય છે?
SR No.009341
Book TitlePragnapanasutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size62 MB
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