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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद १७ सू० ४ भवनपतिसमानाहारादिनिरूपणम् पपन्नकास्ते खलु अविशुद्धवर्णतरकाः, तत्र खलु ये ते पश्चादुपपन्नकास्ते खलु विशुद्धवर्णतरकाः तत् तेनार्थेन गौतम ! एवमुच्यते-असुरकुमाराः खलु सर्वे नो समवर्णाः, एवं लेश्यामपि, वेदनायां यथा नैरयिकाः, अवशेष यथा नैरयिकाणाम्, एवं यावत् स्तनितकुमाराः । सू०४॥ टीका-अथ असुरकुमारादिदश भवनपतीनां समाहारादिनवपदान्यधिकृत्य प्ररूपयितुमाह-'असुरकुमाराणं भंते ! सव्वे समाहारा एवं सत्वे वि पुच्छा ? हे भदन्त ! अमुरकुमाराः किं सर्वे समाहारा:-तुल्याहारा भवन्ति ? एवम् - उक्तरीत्या सर्वेऽपि कि समानशरीराः समाः एवं वुच्चइ) इस कारण हे गौतम ! ऐसा कहा गया है (असुरकुमारा णो सब्वे समकम्मा) असुरकुमार सब समान कर्मवाले नहीं हैं (एवं वन्नलेस्साए पुच्छा) इसी प्रकार वर्ण और लेश्या की पृच्छा (तत्थ णं जे ते पुव्योववनगा) उनमें जो पूर्वोत्पन्न हैं (ते णं अविसुद्धवन्नतरा) वे अशुद्धतर वर्णवाले होते हैं (तत्थ णं जे ते पच्छोवचनगा) उनमें जो बाद में उत्पन्न हुए हैं (ते णं विसुद्ध वण्णतरागा) वे विशुद्धतर वर्णवाले होते हैं (से तेणटेणं गोयमा ! एवं बुच्चइ) हे गौतम ! इस कारण ऐसा कहा जाता है कि (अस्सुरकुमारा णं सव्वे णो समवन्ना) सब असुरकुमार समान वर्णवाले नहीं होते हैं (एवं लेस्साए वि) इसी प्रकार लेग्या से भी (वेयणाए जहा नेरइया) वेदना से नारकों के समान (अवसेस) शेष कथन (जहा नेरइयाणं) जैसा नारकों का (एवं जाव थणियकुमारा) इसी प्रकार यावत स्तनितकुमार । ___टीकार्थ-अब असुरकुमार आदि दस भवनपतियों की समानाहार आदि नौ पदों को लेकर प्ररूपणा की जाती है गौतमस्वामी-हे भगवन् ! क्या सभी असुरकुमार समान आहारवाले होते हैं ? इसी प्रकार क्या सभी समान शरीर वाले और समान श्वासोच्छवास भा२ मधा समान ४भाडात नथी (एवं वन्न लेस्साए पुच्छा) मेरी प्रहार वामन वेश्यानी २छ। (तत्थणं जे ते पुव्वोक्वन्नगा) तभा र पूर्वात्पन्न छ (तेणं अविसद्ध वन्नतरा) तय। भविशुद्ध वाणा हाय छ (तत्थणं जे ते पच्छोववन्नगा) तेयामा पास या उत्पन्न येत छ (तेणं विसुद्धवण्णतरगा) तो विशुद्धत२ वर्षपणा डाय छ (से तेणठेण गोयमा । एवं वुच्चइ) 3 गौतम ! से २४थी मे उपाय छे , (असुरकुमाराणं सव्वे णो समवन्ना) मघा मसुमा२ समान वर्णवाणा नथी डाता (एवं लेस्साए वि) से आरे सेश्या विशे पशु (वेयणाए जहा नेरइया) वहनाथी नानी समान (अवसेस) शेष थन (जहा नेरइयाणं) रेवा नाना (एवं जाव थणियकुमोरा) से आरे यावत् स्तनितभार ટીકાર્ય—હવે અસુરકુમાર આદિ દશ ભવનપતિની સમાનાહાર આદિ નવ પદને લઈને પ્રરૂપણ કરાય છે શ્રી ગૌતમસ્વામી-હે ભગવન્ ! શું બધા અસુરકુમાર સમાન આહારવાળા હોય છે ? એ પ્રકારે શું બધા સમાન શરીરવાળા અને સમાન શ્વાસોચ્છુવાસવાળા હોય છે.
SR No.009341
Book TitlePragnapanasutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size62 MB
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