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________________ ४५८ प्रज्ञापनाम उत्कृष्टेन अनन्तं कालम्, यावद् अपार्द्ध पुद्गलपरिवर्त देशोनम्, अपरीतः खलु पृच्छा ? गौतम ! अपरीतो द्विविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-कायापरीतश्च संसारापरीतश्च, कायापरीतः खलु पृच्छा, गौतम ! जयन्येन अन्तर्मुहूर्तम्, उत्कृष्टेन वनस्पतिकालः, संसारापरीतः खलु पृच्छा, गौतम ! संसारापरीतो द्विविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-अनादिकोवा सपर्यवसितः, अनादिको वा अपर्यवसितः, नो परीतः नो अपरीतः खल्लु पृच्छा, गौतम ! सादिकोऽपर्यवसितः, द्वारम् १६, पर्याप्तकः खल पृच्छा, गौतम ! जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम् उत्कृष्टेन सागरोपमशतपृथक्त्वं सातिरेकम्, संसारपरीतविषयक-पृच्छा ? (गोयमा! जहण्णे णं अंतोमुहुत्तं) हे गौतम !जघन्य अन्तर्मुहूर्त तक (उक्कोसेणं अर्थतं कालं) उत्कृष्ट अनन्त काल तक (जाव यावत् ) (अवटूढं पोग्गलपरिय8 देसूर्ण) देशोन अपार्ध पुद्गलपरावर्तन - ___(अपरितेणं पुच्छा ?) अपरीतविषयक-पृच्छा (गोयमा! अपरिते दुविहे पण्णत्ते) हेगौतम! अपरीत दो प्रकार के कहे हैं (तं जहा) वे इस प्रकार (कायअपरिरो य, संसारअपरित्ते य) कायअपरीत और संसार अपरीत (कायअपरितेणं पुच्छा ?) कायअपरित संबंधी प्रश्न (गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणे वणस्सइ कालो) हे गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट वनस्पति काल (संसार अपरिते णं पुच्छा ?) संसार-अपरीत संबंधी प्रश्न ? (गोयमा! संसार अपरित्ते दुविहे पण्णत्ते) हे गौतम ! संसार-अपरीत दो प्रकार के कहे हैं (तं जहा) वे इस प्रकार (अणादीए वा अपज्जवसिए) अनादि अपर्यवसित और (अणादीए वा सपज्जवसिए,) अनादि सपर्यवसित __ (नोपरित्ते नोअपरित्ते णं पुच्छा ?) नोपरीत नोअपरीत संबंधी प्रश्न ? (गोयमा ! साईए अपज्जवसिए) हे गौतम ! सादि अपर्यवसित (द्वार १६) _ ससा२परित्त समधी २७। १ (गोयमा । जहणेणं अंतोमहत्त) गौतम ! धन्य मन्तभुत सुधा (उक्कोसेगं अणंत कालं) उत्कृष्ट मानन्तर सुधा (जाव) यावत् (अवड्ढं पोग्गलपरियट्ट देसूर्ण) देशान २मपाध पसरावत न. (अपरित्तण पुच्छा ?) सपरित विष-१२।१ (गोयमा ! अपरित्ते दुविहे पण्णत्ते) 8 गौतम ! २५परित 2. प्र४२ना घi छ (तं जहा) ते ॥ ४॥२ (कायअपरित्तेय, संसार अपरित्ते य) यमपरीत म संसार अपरीत (कायअपरित्तेणं पुच्छा) ४।२०५२ समाधा प्रश्न १ (गोयमा ! जहणेणं अंतोमहत्त. उक्कोसेणं वणस्सइकालो) 3 भातम ' वन्य मन्त धन्य मन्तभुडून, उत्कृष्ट वनस्पतिहास (संसार अपरित्तेणं पुच्छा ') संसार ह ण्णण अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सइकालो) है गौतम । मपरित समन्धी प्रश्न ? (गोयमा ! संसार अपरित्ते दविहे पण्णत्ते) 3 गीतम! संसारमपरीत में प्रा२ना छ (त जहा) तसा मा ४ारे (अणादीए वा अपज्जवासए अणोदीए वा सपज्जवसिए) मन अपयवसित, मन मनाहि सपर्यवसित (नोपरित्त ना अपरित्ते ण पुच्छा ?) नापरित नामपरी समन्धी प्रश्न? (गायमा ! साईए अपज्जवास હે ગૌતમ ! સાદિ અપર્યવસિત, (દ્વાર ૧૬)
SR No.009341
Book TitlePragnapanasutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size62 MB
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