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________________ प्रमैययोधिनी टीका पद १८ पू० १० शानदारनपणम् ४२७ सपर्ययसितः स जघन्ये र अन्तर्मुहर्तम, उत्कृप्टे र अनन्त कालम्, अनन्ता उत्सर्पिण्यवपिण्यः कालतः क्षेत्रतोऽपार्द्ध पद परिवों देशोना, विमङ्गज्ञानी खल भदन्त ! पृच्छा, गौतम ! जयन्येन एक समयग, उत्कृष्टंग त्रयस्त्रिंशसागरोपमाणि देशोर पूर्व कोटयभ्यधिकानि, द्वारम् १० सू०१० ॥ ____टीका-पूर्व सम्यक्त्यद्वार प्ररूपितम् अथ दशमं ज्ञानद्वारं प्ररूपयितमाह-'णाणी णं भंते ! गाणि त्ति कालओ करचिरं होइ ?' हे मदन्त ! ज्ञानी खलु 'ज्ञानी' इति-ज्ञ नित्वपर्यायविशिष्टः सन् कालतः-कालापेक्षया किलचिरं-कियत्कालपर्यन्तम् अव्यवच्छेदेन भवति-भाविष्ठते ? भगवानाह-'गोयमा ।' हे गौतम ! 'णाणी दुविहे पण्णजे ज्ञानी द्विविधः पसिए) और सादि सान्त (तत्य ण जे से सादीए सपज्जवसिए) उनमें जो सादि सान्त है (से ) वह (जहणेणं अंतोमुलुत्त) जघन्य अन्तर्मुहले तक (उकोसेणं अणं तं कालं) उत्कृष्ट अनन्त काल तक (अणंताओ उस्लप्पिणि ओलप्पिणीओ) अनन्त उत्सर्पिणी-अवसर्पिणियां (कालओ) काल ले (खेत्तओ अवडूढं पोग्गलपरिय देवण) क्षेत्र से देशोन अपार्ध पुदलपरिवर्तल (निभंगनाणी णं ते! पुच्छा ?) विभंगज्ञानी के विषय में भगवन् पृच्छा ? (गोयना ! जहणे एशं सम्य) हे गौतम ! जघन्य एक समय (उकोसेणं तेतीसं सागोवनाई) उत्कृष्ट तेतीस सागरोपन (देखणाए पुषकोडीए अभहियाई) देशोन करोड पूर्व अधिक द्वार १० टीका-इससे पूर्व सम्परत्व द्वार की प्ररूपणा की गई, अब ऋम के अन. सार दस वें ज्ञानद्वार की प्ररूपणा की जाती हैं गौतनस्वामी-हे भगवन् ! ज्ञानी जीव कितने काल तक ज्ञानी बना रहता है भगवान्-हे गौतम ! ज्ञानी जीव दो प्रकार के कहे हैं वे इस प्रकार हैं-सादि अपर्यवसित और सादि सपर्यवसित । जिप्त जोव को सम्यग्ज्ञान उत्पन्न होने (सादीए वा सपज्जवसिए) अने साहिसान्त (तत्थण जे से सादीए सपज्ज मसिए) तमोर सासित छ (से) ते (जहणेण अंतोमुहत्तं) धन्य भन्तन सुधी (उक्कोसेणं अणतं काल) Gट म.-18 सुधी (अणंताओ उस्सपिणिओ सन्पिणिओ) -1 समि५. समिया (कालओ) यी (खेत्तओ अवड्ढे पोग्गलपरियटै देसूर्ण) क्षेत्रथी शान सपा पुगत परावत (विभंगनाणीग भंते | पुच्छा') विज्ञानी समधी सावन् । २०ी ? (गोयमा ! जहण्णेणं एगं समय) जीभ ! ४५न्य मे समय (3कोसेणं तेत्तीसं सागरोत्रमाई) Eve तत्रास साम१यम (देसूणाए पुव्बकोडीए अमहियाई) शान ४२पूर्व मधि. (२ १०) ટીકાથ–આનાથી પહેલાં સમ્યકત્વ દ્વારની પ્રરૂપણ કરાઈ, હવે ક્રમાનુસાર દેશમાં સાનકારની પ્રરૂપણ કરાય છે શ્રી ગૌતમસ્વામી–હે ભગવન્ ! જ્ઞાની જીવ કેટલા કાળ સુધી જ્ઞાની પણામાં બની રહે છે? શ્રી ભગવાન-હે ગૌતમ 'જ્ઞાની જીવ બે પ્રકારના કહ્યા છે, તે આ પ્રકારે છે. સાદિ અપર્યાવસિત અને સાદિ સંપર્યવસિત જે જીવને સમ્યમ્ જ્ઞાન ઉત્પન થયા પછી તે
SR No.009341
Book TitlePragnapanasutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size62 MB
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