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________________ प्रेमापनास्त्रे तस्मात् तन्मतेन वतुर्दश पल्योपमानि पूर्वकोटि गमलास्यदिकानि स्त्री वेदस्य स्थितियसेया। ___ अथ चतुर्था देशं पर पथितमाह-ए आ जहणं गं समयं उमसग पलिओ. वमसयं पुब्धकोडिपुहुराममष्टियं ४' एकान-न्येन चनत्यर्थः आडेशन-प्रकारेण नवायेन एकं समयम्, उत्कृप्टेन पलोमानं पूर्व कोहि त्यस्यविक पावन स्त्री वेदसः कश्चित स्त्रीवेदकत्वपर्यायविशिष्टः सन निरन्तरगयति ठने ४, नया च चतुर्मादेशानुसारेण सौधर्मः देवलोके पञ्चाशत्पल्योपनप्रमाणोत्कृष्टायुप्माणः परिगृहोताना देवीनां मध्ये पूर्वोत्तरीत्या वारद्वयं देवीत्वेनोत्पद्य ने तस्नात् जन्मतेन पल्योपगतं पूर्वकोटि पृथक्त्वाभ्यधिकमुपलभ्यते इति भावः, अथ पञ्चशादेशं प्ररूपतिमाह- 'एगेणं आदेसेणं जाणे एर्ग समयं उकोसेणं पलिओवमपुत्तं पुनकोडि पुहुराममयिं ' एकन-अन्येन पञ्चमे गेत्यर्थः आदेशेन-प्रकारेण जघन्येन एकं समय, उत्कृप्टेन एल्यो रमपृथरत्व पूर्वकोटिप्रथरत्याभ्यधिक बायत खीवेदकः फश्चित् स्त्री वेदप.त्यपर्यायविशिष्टः सन् निरन्तरमयतिष्ठने, तथा च पश्चमादेशानुसारेण अनेक भरभ्रमणद्वारे ग स्त्रीवेदकरयोत्कृष्टमस्थान परोपनपावत्यगेन पूर्व कोटी पृथक्त्वाभ्यधिक चौथे आदेश का विवरण के आदेश के अनुसार जघन्य एक समय तक उत्कृष्ट पूर्वकोटि पृथक्त्व अधिक लो पल्योपन तक स्त्रीवेदी जीच निरन्तर स्त्री वेदी बना रहता है। इस आदेश में सौधर्म देव लोक में पचास-पल्यापम की स्थिति वाली अपरिगृहीना देत्रियों में दो बार जन्म लेने वाले जीव की विवक्षा की गई है। इस विवक्षा के अनुसार पृथत्व करोउ पूर्व अधिक सौ पल्योपम तक स्त्रीवेदी का लगातार रहना सिद्ध होता है। __पांच में आदेश की प्ररूपणा-इस आदेश के अनुसार जघन्य एक समय तक और उत्कृष्ट पूर्वकोटि पृथक्त्व अधिक पल्योपन पृथक्त्व तक स्त्रीवेदी जीव निर स्तर स्त्रीवेदी रहता है। क्योंकि अनेक भावों में भ्रमण करते हए कोई भी जीय अधिक से अधिक पल्योपम पृथक्त्व तक ही स्त्रीवेद्याला रहता है, उससे अधिक काल तक नहीं, क्योंकि मनुष्यनी या लियंचनो की अवस्था में करोड - ચેથા આદેશનું વિવરણ–ચાધા આદેશના અનુસાર જન્ય એક સમય સુધી, ઉત્કૃષ્ટ પૂર્વકેટિ પૃથકત્વ અધિક સે પ.પમ સુધી સાદી જીવ નિરન્તર સ્ત્ર વેદી બની રહે છે એ આદેશમાં સૌધર્મ દેવલોકમાં પચાસપચાસ પોપમની સ્થિતિવાળી અપરિ ગૃહીત દેવિમાં બે વાર જન્મ લેનાર જીવની નિ વક્ષા કરાઈ છે રજા વિક્ષા અનુસાર પૃથકત્વ કરોડ પૂર્વે અવિક સે પાપમ સુધી સ્ત્રી વેદનું નિરન્તર રહેવું સિદ્ધ થાય છે. પાચમા આદેશની પ્રરૂપ-આ આરાના અનુસાર ધન્ય એક સમય સુધી અને ઉત્કૃષ્ટ પૂર્વકેટિ પૃષકત્વ અધિક પલ્યોપમ પૃથકત્વ સુધી સ્ત્રીવેદી જીવ નિરન્તર સ્ત્રીવેદી રહે છે કેમકે અનેક ભામાં ભ્રમણ કરતો રહેતે કઈ પણ જીવ અધિથી અધિક પલ્યોપમ પૃથકત્વ સુધી જ સ્ત્રીવેદવાળે રહે છે, તેનાથી અધિક કાળ સુધી નહીં, કેમકે
SR No.009341
Book TitlePragnapanasutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size62 MB
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