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________________ प्रमेयगोधिनी टीका पद १७ १० ३ नैरयिकाणां समानाक्रियादिनिरूपणम् केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते-नैरयिका नो सर्वे समक्रियाः ? गौतम ! नैरयिका त्रिविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-सम्यग् दृष्टयः, मिथ्यादृष्टयः, सम्यग् मिथ्यादृष्टयः, तत्र खलु ये ते सम्यग् दृष्टयस्तेषां चतसः क्रियाः क्रियन्ते, तद्यथा-आरम्भिकी, पारिग्रहिकी, मायाप्रत्यया, अप्रत्याख्यानक्रिया, वत्र खलु ये ते मिथ्यादृष्टयो ये सम्यग् मिथ्यादृष्टयस्तेषां खलु नियताः पञ्चक्रियाः क्रियन्ते, तद्यथा-आरम्भिकी, पारिग्रहिकी, मायाप्रत्यया, अप्रत्याख्यान क्रिया, मिथ्यादर्शनप्रत्यया, तत् तेनार्थेन खलु गौतम ! एवमुच्यते नैरयिकाः नो सर्वे समक्रियाः, समान क्रियावाले हैं ? (गोयमा ! णो इणढे समद्दे) हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है (से केणष्टेणं भंते ! एवं बुच्चइ) हे भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि (नेरइया णो सब्वे समकिरिया ?) नारक सब सम्मान क्रियावाले नहीं हैं (नोयमा ! नेरड्या तिविता पण्णत्ता) हे गौतम ! नारक तीन प्रकार के हैं (तं जहा) के इस प्रकार (समद्दिट्टी, पिच्छविट्ठी, सम्ममिच्छद्दिट्टी) समग्दृष्टि, मिथ्याष्टि और सम्यामियादृष्टि (तत्थ गं जे ते सम्पदिट्टी) उनसे जो सम्य. ग्दृष्टि हैं (तेलि णं) उनको (चत्तारि किरियाओ कज्जति) चार क्रियाएं होती हैं (तं जहा) वे इस प्रकार (आरंसिया) आरंभिकी (परिग्गहिया) पारिग्राहिकी (मायावत्तिया) मायाप्रत्यया (अपच्चरवाणकिरिया) अप्रत्याख्यान क्रिया (तत्थ णं जे ते मिच्छट्टिी) उनमें जो मिथ्याष्टि हैं (जे सम्मामिच्छद्दिट्टी) जो सम्यमियादृष्टि हैं (तेलि णं नियताओ पंच किरियाओ कज्जति) उनको निश्चय से पांच क्रियाएं होती हैं (तं जहा-आरंजिया, परिग्गहिया, मायावत्तिया, अपच्चक्खाणकिरिया, मिच्छादसणवत्तिया) वे इस प्रकार-आरंभिकी पारिग्रहिकी, मायाप्रत्यया, अप्रत्याख्यानक्रिया, मिथ्यादर्शनप्रत्यया (से तेणष्ट्रेणं गोयमा ! एवं ठियावामा छ ? (गोयमा ! णो इणटे समढे) 3 गौतम ! २ मिथ समय नथी (सेकेण ट्रेणं भंते ! एवं वुच्चइ) ॐ भगवन् । २॥ ४२४थी मे उखु छ है (नेरइयो णो सव्वे समकिरिया ?) ना२४ मा समान या नथी (गोयमा ! नेरइया तिविहा पण्णत्ता) गौतम ! ना२४ ए] ४२ना छे. (तं जहा) ते 20 ४ारे (सम्मट्ठिी, मिच्छद्दिति, सम्ममिच्छदि ट्ठि) सभ्यट, मिथ्याट मने सभ्यभिच्याट (तत्थणं जे ते सम्मद्दिट्रि) तमामा २ सभ्यष्टि छ (तसिंणं) तेमाने (चत्तारि फिरियाओ कज्जति) या२ ठयायी थ य छ (तं जहा) ते 20 मारे (आरंभिया) मालिनी (परिग्गहिया) रियालिी (मायावतिया) भाया प्रत्यया (अपच्चक्खाणकिरिया) मप्रत्याभ्यानया (तत्थणं जे ते मिच्छादिदी) तमाम २ मिथ्याट छे (जे सम्मामिच्छादिट्ठी) रे सभ्यमिथ्या ष्टि छ (तसिणं नियताओ पंच किरियाओ कज ति) तेमनी निश्चयथी पायठियायी थाय छे (त जहा-आरंभिया परिग्गाहिंया-मायावत्तिया-अपच्चक्खाण किरिया, मिच्छादसणवत्तिया) ते 20 मारे--मा मिली, PARIHAR, भायाप्रत्यया, AAIहिया, 94162 प्रत्यया (से तणद्वेण गोयमा ।
SR No.009341
Book TitlePragnapanasutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size62 MB
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