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________________ प्रबोधिनी टीका पद १८६० ४ सूक्ष्मकायादिनिरूपणं म् ३७१ तम् उत्कृष्टेन सागरोपमशतपृगक्त्वं सातिरेकस्, बादरपृथिवीकायिकपर्याप्तकः खलु भदन्त ! बादरपृथिवी कायिकपर्याप्त इति पृच्छा, गौतम ! जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम्, उत्कृष्टेन संख्येयानि वर्षसहस्राणि, एवमकायिकोऽपि, तेजस्कायिकपर्याप्तः खलु भदन्त । तेजस्कायिकपर्याप्त इति पृच्छा, गौतम ! जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम्, उत्कृष्टेन संख्येयानि शत्रिन्द्रियानि, वायुमुहुत्तं) हे गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त (उकोसेणं सत्तर सागरोवम कोडाकोडीओ) उत्कृष्ट सत्तर कोटा कोडी सागरोपम ( चादर तसकाइया णं भंते ! बादरतसकाइय त्ति कालओ केवच्चिरं होई ?) हे भगवन् ! बादर बसायिक कितने काल तक बाद सकाधिक रहता है ? (गोयमा जहणेणं अंतमुत्तं) हे गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त (उक्कोसेणं दो सागरोवमसहस्साई संखेज्जवाससम्भहियाई) उत्कृष्ट संख्यात वर्ष अधिक दो हजार सागरोपम (एतेसिं चेव अपज्जत्तमा सन्धे वि जहणेणं उक्कोसेणं अंतो मुहुस) इनके अपर्याप्तक सभी जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त तक (बादरपज्जत्ते णं भंते! वादरपज्जन्तत्ति पुच्छा) हे भगवन् ! बादर पर्याप्त कितने काल तक बादर पर्याप्त रहता है (ऐसी पृच्छा (गोयमा ! जहणणेणं अंतोमुद्दत्तं) हे गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त (उक्कोसेर्ण सागरोत्रमसतपुहुत सातिरेगं) उस्कृष्ट कुछ अधिक सौ सागरोपम पृथक्त्व (बादरपुढविकाइयपज्जत्तए णं भंते ! बादपुढविकायपज्जत्तए त्ति पुच्छा ?) हे भगवन् ! बादर पृथ्वीकायिक पर्याप्त कितने काल तक बादर पृथ्वीकायिक पर्याप्त पसे रहता है, ऐसी पृच्छा ? (गोयमा ! जहणणे अंतोमुहुत्त ) हे गौतम! मन्तर्भुहूर्त (उक्कोसेणं सत्तरि सागरोत्रम कोडाकोडीओ) उत्सृष्ट सत्तर (डाडोडी सागरेशयम, (बादरतसकाइयाणं भंते ! बादरत काइयत्ति कालओ केवच्चिरं होइ ) हे भगवन् ! गादृस्त्रसठायिष्ठ डेंटला सभय सुधी माहरत्रसयिङ र छे ? (गोयमा । जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं) धन्य गन्तर्मुहूर्त (उक्को से दो सागरोत्रम सहस्साई संखेज्जत्रास मव्भहियाई) उत्कृष्ट सख्यात वर्ष अधि में हजर सागरोषभ (एएसिं चेव अपज्जत्तगा सव्वे वि जहणेणं उक्कोसेणं अंतोमुहुतं) तेमनां अपर्याप्त अभवन्याने उत्सृष्ट अन्तर्मुहूर्त सुधी. (बादरपज्जत्तेणं ते ' बायरपज्जत्तेत्ति पुच्छा ?) डे लगवन् ! माहर पर्याप्त सा अज सुधी माहरपर्याप्त पशुभां रहे छे, सेवी पृच्छा ? (गोयमा । जहण्णेणं अंतो मुहुत्तं ) है गोतम ! भघन्य मन्तर्मुहूर्त (उक्कोसेगं सागरोवम सतपुहुत्तं सातिरेगं ) हृष्ट मधिसेो સાગરાપમ પૃથકત્વ. (बादरपुढविकाइए पज्जत्तरणं भंते ! बादरपुढविकायपज्जत्तएत्ति पुच्छा १) डे भगवन् ! બાદરપૃથ્વીકાયિક પર્યાપ્ત કેટલા કાળ સુધી માદરપૃથ્વીકાયિક પણામાં રહે છે, એવી પૃચ્છા ? (गोयमा ! जहृष्णेणं अंतोमुहुत्तं) हे गौतम! वन्य अन्तर्भुहूर्त (उक्कोसेणं संखिज्जाई वास
SR No.009341
Book TitlePragnapanasutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size62 MB
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