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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद १८ सू० १ जीवादिकायस्थिति निरूपणम् भवति ? गौतम ! जघन्येन अन्तर्मुहर्तम् उत्कृष्टेन त्रीणि पल्योपमानि अतर्मुहत्तौनानि, एवं तिर्यग्योनिकी पर्याप्ति काऽपि, एवं मनुष्योऽपि, मनुप्यपि, एवञ्चैव, देवपर्याप्तको यथा नैरयिकप्रर्याप्तकः, देवी पर्याप्तिका खलु भदन्त ! देवीपर्याप्तिका इति कालतः कियच्चिरं भवति ? गौतम ! जघन्येग दशवर्षपदस्राणि अन्तर्मुहूतॊनानि, उत्कृष्टेन पञ्च पञ्चाशत् पल्योपमानि अन्तर्मुहत्तौनानि ॥ द्वारम् २ ॥ सू० १॥ टीका-अथ प्रथमं सामान्यरूपेण पर्यायेण प्रतिपादितस्य जीवस्याव्यवच्छेदेन भवनरूपउस्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम तेतीस सागरोपम तक (तिरिक्खजोणिय पज्जत्तए णं भंते ! तिरिक्खजोणियपछत्तए त्ति कालो केवच्चिर होइ ?) हे भगवन् ! पर्याप्त तिर्यग्योनिक कितने काल तक पर्याप्त तिर्यग्योनिक रहता है ? (गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहुतं, उक्को सेणं तिन्नि पलिओवमाई अंतोमुहुत्तूणाई) हे गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त तक, उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम तीन पल्योपम सक (एवं तिरिक्खजोणिणि पज्जत्तिया वि) इसी प्रकार तिर्यचनी पर्याप्त भी (एवं मणुस्से वि) इसी प्रकार मनुष्य भी (मणुस्सी वि) मनुष्यनी भी (एवं चेव) इसी प्रकार (देव. पज्जत्सए जहा नेरइयपज्जत्तए) देव पर्याप्तक जैसा नारक पर्याप्तक (देवी पज्जसिया णं भते ! देवी पजत्तियत्ति कालओ केवच्चिरं होइ ?) हे भगवन् ! पर्याप्त देवी पर्याप्त देवी पनेमें कितने काल तक रहती है ? (गोयमा ! जहण्णेणं दस वाससहस्साइं अंतोमुहुत्तगाई) हे गौतम! जघन्य अन्तर्मुहर्त कम दस हजार वर्ष तक (उकासेणं पणयन्नं पलिओवमाइं अंतोमुत्तूणाई) उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम पचपन पल्योपम तक द्वार २। __टोकार्थ-अय स स से पहले सामान्य पर्याय रूप में प्रतिपादित जीव की काय माछा तेवीस सागरे५भ सुधा (तिरिक्खजोणिय पज्जत्तएणं भंते । तिरिक्खजोणिय पज्जतएप्ति काल भो केवच्चिरहोइ) सवान् । पर्यात तिश्योनि टक्षा 1 सुधी परित तिय योनि २९ छ १ (गोयमा । जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाई अंतोमुहु तणाई) 3 गोतम I org-५ मतभुडून सुधी, अष्ट मन्तभुत छ। १ पक्ष्यापम सुधी (एवं तिरिक्खजोणिणि पज्जत्तिया वि) से प्र४२ तिय यनी पर्याप्त पए (एवं मणस्से वि) से प्र४.रे भनुष्य ५ मणुस्सी वि) मनुष्यनी पY (एवं चेव) मेरी प्रहारे (देव पज्जत्तए जहा नेरइयपज्जत्तए) ३५ पर्याप्त । ना२४ पर्याप्त (देवी पज्जत्तिया णं भंते ! देवी पज्जत्तियत्ति कालओ केवच्चिर होई ?) 3 मापन् । पर्याप्त हेवी पति वीपाथी ४ाण सुधी : छे १ (गोयमा ! जहण्णेण दसवाससहस्साई अंतोमुत्तूणाई) 3 गौतम! न्य मन्तभुत माछ। ४२ M२ सुधी (उकोसेणं पणपलिओवमाइं अंतोमुहुसणाई) Gष्ट मन्तभुत छ। पयापन पक्ष्या५म सुधी द्वा२. २
SR No.009341
Book TitlePragnapanasutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size62 MB
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