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________________ प्रयोगिनी का पद १८ अधिकारसंग्रहणम् महमसन्नी भवऽन्धि वरिमेय । एएसि तु पयाणं कायठिई होइ णायव्वा ।।२॥ इति, प्रथम जीव-जीवपदमधिकृत्य कायस्थितिः प्ररूपणीया १, तदनन्तरम् गतिः-गतिपदमुद्दिश्य कायस्थिति वक्तव्या२, तत इन्द्रियम्-इन्द्रियपदमधिकृत्य कायस्थितिः प्ररूपणीया३, तदनन्तरम् काय:-कायपदमधिकृत्य कायस्थिति वक्तव्या ४, तदननारम् योगः-योगपदमुद्दिश्य कायस्थि: तिप्ररूपणं कर्तव्यम्५, तदनन्तरम् वेदः-वेदपदमधिकृत्य कायस्थि प्ररूपणं कर्यम्६ तदनन्तरम् कषाय:-कपायपदादिश्य कायस्थितिनिरूपणं कर्तव्यम् ७, ततो लेश्या-लेश्यापदमधिकृत्य कायस्थितिनिरूपणं कर्तव्यम् ८। तदनन्तरम् सम्यक्त्यम् सम्यक्त्वपदमधिकृत्य का स्थिति प्ररूपणं विधेयम् ९, तदनन्तरम् ज्ञानम्-ज्ञानपदमुद्दिश्य कायस्थितिनिरूपणं कार्यम् १०, तदनन्तरम् दर्शनम्-दर्शनपदमधिकृत्य कायस्थितिप्ररूपणं कर्तव्यम् ११, तदनन्तरम् संयत:संयतपदमधिकृत्य कायस्थितिप्ररूपणं कर्तव्यम् १२, तदनन्तरम् उपयोगः-उपयोगरदमधि. की समानता है, अर्थात् लेश्या एक प्रकार का परिणाम है और कायस्थिति भी परिणाम ही है । इसमें सबसे पहले उन दो गाथाओं का कथन किया जाता है, जिनमें प्रस्तुत पद में निरूपण किये जाने वाले विषयों का संग्रह किया गया है... सर्व प्रथम 'जीव' को लेकर कायस्थिति की प्ररूपणा की जाएगी। (१) तदनन्तर गति को कायस्थिति कही जाएगी (२) फिर इन्द्रियपद को लेकर कायस्थिति कही जाएगी (३) तत्पश्चात् कायपद को लेकर कायस्थिति कहीं जाएगी (४) तदनन्तर योगपद को उद्देश्य करके कायस्थिति का कथन किया जाएगा (५) फिर वेद के आधार पर कायस्थिति का प्ररूपण किया जाएगा (६) फिर कषापद को लेकर कायस्थिति की प्ररूपणा होगी (७) फिर लेश्यापद को लेकर कायस्थिति कहेगे (८) फिर सम्यक्त्व को लेकर कायस्थिति कही जाएगी (९) तत्पश्चात् ज्ञानपद को लेकर कायस्थिति का निरूपण करना है (१.) तदनन्तर दर्शनपद को लेकर कायस्थिति का कथन किया जाएगा (११) तत्पश्चात् संयतपद को એક પ્રકારનું પરિણામ છે અને કાયરિથતિ પણ પરિણામ જ છે. તેમાં બધાથી પહેલું તે બને ગાથાઓનું કથન કરાય છે, જેમાં પ્રસ્તુત પદમાં નિરૂપણ કરાતા વિષયને સંગ્રહ કરાયેલ છે. સર્વપ્રથમ જીવને લઈને કાયસ્થિતિની પ્રરૂપણ કરાશે. (૧) તદનન્તર ગતિની કાયરિસ્થતિ કહેવાશે (૨) પછી ઈન્દ્રિય પદને લઈને કાયસ્થિતિ કહેવાશે (૩) તત્પશ્ચાત કાયપદને લઈને કયસ્થિતિ કહેવાશે () તદનન્તર યોગપદને ઉદ્દેશીને કાયસ્થિતિનું કથન કરાશે (૫) પછી વેદના આધાર પર કાયસ્થિતિનું પ્રરૂપણ કરવામાં આવશે (૨) પછી કષાય પદને લઈને કાયસ્થિતિની પ્રરૂપણા થશે. (૭) પછી લેશ્યા પદને લઈને કાયસ્થિતિ કહીશું (૮) ફરી સમ્યકત્વને લઈને કાયથિતિ કહેવાશે (૯) તત્પશ્ચાત્ જ્ઞાન પદને લઈને કાયસ્થિતિનું નિરૂપણ થશે. (૧૦) તદનન્તર દર્શન પદને લઈને કાયયિતિનું કથન
SR No.009341
Book TitlePragnapanasutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size62 MB
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