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________________ ___२९७ प्रमेययोधिनी टीका पद १७ सू० २२ लेश्यापरिणमननिरूपणम् गौतम ! कृष्ण लेश्या नीललेश्यां प्राप्य नो तद्रूपतया नो तवर्णतया नो तद्गन्धतया नो तद्रसतया नो तत्स्पर्शनया भूयो भूगः परिणमति, तत् केनार्थेन भदन्त ! एवाच्यते-कृष्णलेश्या नीललेश्यां प्राप्य नो तद्रूपतया यावद् भूयो यूयः परिणमति ? गौतम ! आकारभाव 'मात्रया वा सा स्यात् प्रतिभागभावमात्रया वा सा स्यात् कृष्णलेश्या खलु सानो खलु नील लेश्या, तत्रगता अवष्वष्कते, उत्वष्कले वा, तत् तेनार्थेन गौतम ! एवमुच्यते-कृष्णलेश्या 'नीललश्यां प्राप्य नो तदरूपतया यावद भूयो भूयः परिणमति, तत् नूनं भदन्त ! नीललेश्या कापोतलेश्यां प्राप्य नो तद्रूपतया यावद भूयो भूयः परिणमति ? हन्त, गौतम ! नीललेश्या कापोतलेश्यां प्राप्य नो तद्पतया यावद् भूयो भूयः परिणमति, तत् केनार्थेन भदन्त ! प्राप्त होकर तद्पता से यावत् तत्स्पर्शता से नहीं परिणत होती है ? (हंता गोयमा !) हां गौतम ! (कण्हलेस्ला नीललेस्सं पप्प णो ता स्वत्ताए, णो तव्धपणत्ताए णो ता गंधत्ताए णोता रसत्ताए जो ता फालत्ताए भुज्जो भुज्जो परिणमइ) कृष्णलेश्या नीललेश्या को प्राप्त होकर न तद्पता से न तद्वर्णता से, न तद्गंधता से, न तत्स्पर्शना ले बार-बार परिणत होती है ____ (से केणटेणं संते! एवं चुच्चह) हे भगवन् ! किन हेतु से ऐसा कहा जाता है कि (कण्हलेस्मा नीललेस्सं पप्प) कृष्णलेश्या नीललेश्या को प्राप्त होकर (णो तारूवत्ताए जाव परिणमइ ?) तद्रूपता से नहीं यावत् परिणत होती है ? (गोयमा) हे गौतम! (आगारभावमायाए वा) आकार आवमात्र-से अथवा (पलिभागभाव. मायाए) प्रतिबिम्बित वस्तु का आकार मात्र ले (लिया) होती है (नीललेस्साणं) नीललेश्या (सा) वह (णो) नहीं (खलु) निश्चय (ला) वह (काउलेस्सा) कापो. तलेश्या (तत्थगया) वहां रही हुई (ओमकद, उस्तक्कइ) घटती-बढती है (से एएणडेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ) इस हेतु से हे गौतम ! ऐसा कहा जाता है (नीलताथी नथी परिणत थती ? (हंता गोयमा 1) 31, गौतम ! (कण्हलेस्सा नीललेस्सं पप्प णो ता रूवत्ताए, णो तव्चन्नत्ताए, णो ता गंधत्ताए णो ता रसत्ताए णो ता फासत्ताए भुज्जो-भुज्जो परिणमइ) दृश्य। नीतेश्याने प्राप्त शनन तयाथी न तवा ताथी, न त यताथी, ન તસ્પર્શતાથી વારંવાર પરિણત થાય છે (से केणदेणं भंते । एव वुच्चइ) मगवन् ! ४या उतुथी मे उपाय छ । (कण्ह. लेस्सा नीललेस्सं पप्प) वेश्या नासश्याने प्राप्त थर्धन (णो ता रूवत्ताए जाव परिणमइ) तेना ३५ मा पाथी परिणत था नथी ? (गोयमा ।) 3 गोतम ! (आगारभावमागए वा) मा४।२ मा भात्र-छय! भारथी अथवा (पलिभागभावमायाए) प्रतिमिमित परतुन मार भारथी (सिया) थाय छ (नीललेस्साणं) नासवेश्॥ (सा) ते (णो) नही (खलु) निश्चय (सा) ते (काउलेस्सा) यातश्या (तत्थ गया) त्यां पडेसी (ओसकई उस्सकई वा) १धे घटेछ (से एएणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ) मे उतुथी गौतम | गे वाय छे (नीललेस्सा काउलेस्सं H० ३८
SR No.009341
Book TitlePragnapanasutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size62 MB
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