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________________ २७८ प्रज्ञापनासूत्र यावत् शुक्ललेश्यास्थानानाञ्च उत्कृष्टानां द्रध्यार्थतया प्रदेशार्थतया द्रव्यार्थप्रदेशार्थतया कतराणि कतरेऽभ्योऽल्पानि वा बहुकानि वा तुल्यानि वा विशेपाधिकानि वा ? गौतम ! सर्वस्तोकानि उत्कृष्टानि कापोतलेश्यास्थानानि द्रव्यार्यतया, उत्कृष्टानि नीललेश. स्थानानि द्रव्यार्थतया असंख्येयगुणानि, एवं यथैव जघन्यानि तथैव उत्कृष्टान्यपि, नवरम् उत्कृष्टमिति अभिलापः, एतेषां खल भदन्त ! कृष्णलेश्यास्थानानां यावत् शुक्ललेश्या. स्थानानाञ्च जघन्योत्कृप्टानां द्रव्यार्थतया प्रदेशार्थवया द्रव्यार्थप्रदेशार्थतया कतराणि कतरेभ्योऽल्पानि वा बहुकानि वा तुल्यानि वा विशेषाधिकानि का ? गौतम ! सर्वस्तोकानि की अपेक्षा (कयरे कयरेहितों) कौन किससे (अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा) अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? (गोयमा! सव्वत्थोवा उक्कोसगा काउलेस्साठाणा दवट्ठयाए) हे गौतम! सब से कम उत्कृष्ट कापोतलेश्या के स्थान द्रव्य की अपेक्षा से हैं (उकोलगा नीललेस्साठाणा दवट्ठयाए असंखेज्जगुणा) उत्कृष्ट नीललेश्या के स्थान द्रव्य की अपेक्षा असंख्यातगुणा है (एवं जहेव जहनगा तहेव उक्कोसगावि) इल प्रकार जैसे जघन्य वैसे हो उत्कृष्ट भी (नवरं) विशेष (उकोसत्ति अभिलावो) उत्कृष्ट ऐसा उच्चारण करना (एएसि णं भंते ! कण्हलेस्लठाणाणं जाव सुक्कलेस्सठाणाण य जहण्णउक्कोसगाणं) हे भगवन् ! इन जघन्य उत्कृष्ट कृष्णलेश्या के स्थानों यावत् शुक्ललेश्या के स्थानों में (व्वट्टयाए पएसयाए दवट्ठ पएसट्टयाए) द्रव्य की अपेक्षा, प्रदेशों की अपेक्षा और द्रव्य एवं प्रदेशों को अपेक्षा (कयरे कयरेहितो) कौन किससे (अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा) अल्प, बहत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? (गोयमा! सव्वत्थोवा जहन्नगा काउलेस्साठाणा दव्वप्रशानी अपेक्षा मने द्रव्य तक प्रदेशांनी अपेक्षा (कयरे कयरेहितो) नायी (अप्पा वा बडया ना, तुल्ला वा विसेसाहिया वा) २५६५, मधि४, तुझ्य अथवा विशेषाधि है? (गोयमा ! सव्वत्थोवा जहण्णगा काउलेस्सा ठाणा दबट्टयाए) गौतम ! माथी २७ सधन्य पातश्याना न दयनी अपेक्षा छ (उक्कोसगा नीललेस्साठाणा व्वदयाए अस खेज्जगुणा) कृष्ट नीसवेश्याना स्थान द्रव्यनी अपेक्षाथी असण्यात गए। छे. (एवं जहेव जहण्णगा तहेव उक्कोसगा वि) से शरभ धन्य ४ा छ तभन उल्लष्टया पर सभरावा. (नवर) विशेष (उक्कोसत्ति अभिलावो) उत्कृष्ट से प्रभारीना मलिदा ४31. (एएसि णं भंते ! कण्हलेस्सा ठाणाणं जाव सुक्कलेस्सा ठाणाणय जहण्ण-उक्कोसगाणं) 3 भगवन् ! धन्य स ट सेश्याना स्थान यावत् शुसोश्याना स्थानामा (दव्वद्वयाए पएसट्टयाए दव्वट्ठपएसट्टयाए) द्रव्यनी अपेक्षाथी प्रशानी मपेक्षाथी मन द्रव्य तथा प्रशानी अपेक्षाथी (कयरे कयरे हितो) रीनाथी (अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा मिसेसाहिया वा) २५३५, मधि४, तुक्ष्य अथवा विशेषाधि४ छ ? . (गोयमा ! सव्वत्थोवा जहण्णगा काउलेस्सा ठाणा व्वयाए) हे गौतम ! सोथी-छ।
SR No.009341
Book TitlePragnapanasutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size62 MB
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