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________________ २०६ प्रशापनासूत्रे द्रव्यार्थतया असंख्येयगुणानि, सर्वस्तोकानि जघन्यानि कापोतलेश्यास्थानानि प्रदेशार्यतया, जघन्यानि नीललेश्यास्थानानि प्रदेशार्थतया असंख्येयगुणानि, जघन्यानि कृष्णलेश्यास्थानानि प्रदेशार्थत्या असंख्येयगुणानि, जघन्यानि तेजोलेश्यास्थानानि प्रदेशार्थतया असंख्येयगुणानि, जघन्यानि पद्मलेश्यास्थानानि प्रदेशार्थतया असंख्येयगुणानि, जपन्यानि शुक्ललेश्या स्थानानि प्रदेशार्थतया असंख्येयगुणानि, द्रव्यार्थप्रदेशार्यतया सर्वस्तोकानि जघन्यानि कापोतलेश्यास्थानानि द्रणतया, जघन्यानि नीललेश्यास्थानानि द्रव्यार्थलेस्साठाणा दवट्टयाए असंखेजगुणा) पद्मलेश्या के जघन्य स्थान द्रव्य की अपेक्षा असंख्यातगुणा है (जहन्नगा सुकलेसाठाणा दवट्टयाए असंखेनगुणा) जघन्य शुक्ललेश्या के स्थान द्रव्य की अपेक्षा असंख्यातगुणा कहा है (सव्वत्थोवा जहण्णगा काउलेस्साठाणा पएएहपाए) सबसे कम कापोतलेश्या के जघन्य स्थान प्रदेशों की अपेक्षा से (जहन्नगा नीललेस्माठाणा पएसड्याए - असंखेनगुणा) जघन्य नीललेश्या के स्थान प्रदेशों की अपेक्षा असंख्यातगुणा हैं (जहण्णगो कण्हलेस्साठाणा एएसयाए असंखजगुणा) जघन्य कृष्णलेश्या के स्थान प्रदेशों की अपेक्षा असंख्यात गुणा है (जहण्णगा तेउलेस्सा ठाणा पएस. हयाए असंखेज्जगुणा) जघन्य तेजोलेश्या के स्थान प्रदेशों की अपेक्षा असंख्या तगुणा हैं (जहन्नगा पहमलेस्सा ठाणा पएसट्टयाए असंखेज्जगुणा) जघन्य पैद्मलेश्या के स्थान प्रदेशों की अपेक्षा असंख्यातगुणा हैं (जहन्नगा सुक्कलेस्सठाणां पएसट्टयाए। असंखेज्जगुणा) शुक्ललेश्या के जघन्य स्थान प्रदेशों की अपेक्षा असंख्यातगुणा है । .(दव्वटुपएसट्टयाए सव्वस्थोवा जहन्नगा काउलेस्साठाणा) द्रव्य और प्रदेशों की धन्य तोयाना स्थान द्रव्यानी पेक्षा असभ्यात छ (जहन्नगा पम्हलेस्सा ठामा दव्वट्टयाए असंखेनगुगा) पदमवेश्याना धन्य स्थान द्रव्यनी अपेक्षा असभ्याता (जहन्नगा सुक्कलेसा ठाणा दबट्टयाए असंखेजगुणा) वन्य शुसवेश्याना स्थान द्रव्यना અપેક્ષાએ અસંખ્યાતગણ કહ્યા છે. (सव्वत्थोवा जहण्णगा काउलेस्सा ठाणा पएसयाए)माथी छ। पोतःश्याना धन्य स्थान प्रदेशानी अपेक्षा (जहन्नगा नीललेस्सा ठाणा पएसट्टयाए असंखेज्जगुणा) धन्य नसलेश्याना स्थान प्रशानी अपेक्षा असभ्यात छे (जहण्णगा कण्हलेस्सा ठाणा पएसद्वयाए असंवेजगुणा) धन्य वेश्याना स्थान प्रदेशोना अपेक्षा समज्यात गए। छे (जहण्णगा तेउलेस्ता ठाणा पएसट्रयाए असंखेज्जगुणा) अधन्य तनश्याना स्थान प्रशानी अपेक्षा असण्यात गए। छे (जहण्णगा पम्हलेसा ठाणा पएसट्टयाए असंखेज्जगुणा) ४३न्य पदमीश्याना स्थान प्रशानी अपेक्षाये मध्यात " (जहण्णगा सुक्कलेस्सा ठरणा पएसट्टयाए असंखेजगुणा) शु५५३श्यान पन्य स्थान प्रशाना અપેક્ષાએ અસંખ્યાતગણ છે
SR No.009341
Book TitlePragnapanasutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size62 MB
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