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________________ प्रमैयबोधिनी टीका पद १७ सू० १ नैरयिकाणां समानकर्मादिनिरूपणम् पुद्गलान् परिणामयन्ति, अल्पतरान् पुद्गलान् उच्छ्वासयन्ति, अल्पतरान पुदगलान् निःश्वासयन्ति, आहत्य आहारयन्ति, आहत्य परिणामयन्ति, आहत्य उच्छ्वासयन्ति, आहत्य निःश्वासयन्ति, तत् एतेनार्थेन गौतम ! एव मुच्यते-नैरयिकाः नो सर्वे समाहाराः, नो सर्वे समशरीराः, नो सर्वे समोच्छ्वासनिःश्वासाः।। टीका-अथाहारप्रक्रमात् प्रथममाहारं प्ररूपयितुमाह-'नेरइया णं भंते ! सव्वे समाहारा, सम्पमसरीरा, सम्वे समुस्सासनिस्सासा ? गौतमः पृच्छति-हे भदन्त ! नैरयिकाः खलु किं सर्वे समाहाराः-समस्तुल्य आहारो येषां ते समाहारा भवन्ति ? एवं किं सर्वं नैरयिका परिणामति) थोडे पुद्गला का परिणतन करते हैं (अप्पतराए पोग्गले ऊससंति) थोडे पुतलों का उच्छमन करते हैं (अप्पतराए पोग्गले नीससंति) थोडे पुदगलों का निःश्वलन करते हैं (आहच्च) कदाचितू (आहारेति) आहार करते हैं (आहच्च परिणाति) कदाचित् परिणत करते हैं (आहच्च ऊससंति) कदाचितू उच्छसन करते हैं (आहच्च नीलसंति) कदाचितू निःश्वसन लेते हैं (से एए णद्वेणं गोयला) इस हेतु से हे गौतम ! (एवं वुच्चह) ऐसा कहा जाता है (नेरइया नो सव्वे समाहारा) नारक सब समान आहार वाले नहीं है (नो सव्वे समस. रीरा) एवं समान शरीर वाले नहीं हे (णो समुस्सासनिस्तासा) सब समान उच्छ्वास नि:श्वास वाले नहीं हैं। टीकार्थ-आहार का प्रसंग होने से पहले आहार की प्ररूपणा की जाती है गौतमस्वामी-प्रश्न करते हैं-हे भगवन् ! क्या सभी नारक समान आहार वाले होते हैं ? इसी प्रकार क्या सभी नारकों का शरीर समान है ? क्या सब नारक समान उच्छास नि:श्वास वाले हैं ? णामेति) था। पुरानु परिमन ४२ छ (अप्पताराए पागले ऊससंति) थे।31 पुगतान २.श्वसन ४रे छे (अप्पतराए पोग्गले नीमसंति) थे । यु नु निश्वसन ४२ छ (आहच्च) ४ायित् (आहारे ति) गाडा२ ४२ छे (आहच्च परिणामेंति) ४ायित् परिमन ४२ छ (आहच्च ऊससंति) ४यित २७सन ४२ छे (आहच्च नीससंति) ४ायित् निश्वसन छ (से एएणटेणं गोयमा !) मे तुथी ॐ गौतम । (एवं वुच्चइ) मे ४३पाय छ (नेरइया नो सव्वे समाहारा) ना२४ मा समान मा २१ नथी (णो सव्वे समुस्सासनिस्सासा) બધા સમાન ઉડ્ડવાસ નિધાસવાળા નથી ટીકાથ-આહારને પ્રસંગ હોવાથી પહેલા આહારની પ્રરૂપણ કરાય છે શ્રી ગૌતમસ્વામી પ્રશ્ન કરે છે–હે ભગવન્ ! શું બધા નારક સમાન આહારવાળા છે? એજ પ્રકારે શું બધા નારકેના શરીર સમાન આહારવાળા હોય છે? એજ પ્રકારે છાષા નારાના શરીર સમાન છે? શું બધા નારદ સમાન ઉચકાસ-નિશ્વાસવાળા છે? -
SR No.009341
Book TitlePragnapanasutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size62 MB
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