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________________ प्रमेयबोधिनी का पद १७२० १२ नैरयिकोत्पत्यादिनिरूपणम् स्यात् नीललेश्यः, स्यात् कापोतलेश्य उद्वर्तते, स्यात् यल्लेश्य उपपद्यते तल्लेश्य उद्वर्तते, - तेजोलेश्य उपपद्यते नो चैव खलु तेजोलेश्य उद्वर्ततें, एवम् अकायिका वनस्पतिकायिका , अपि भणितव्याः, तत् नूनं भदन्त ! कृष्णलेश्यो नीललेश्यः कापोतलेश्य: तेजस्कायिक: कृष्णलेश्येषु नीललेश्येषु कापोतलेश्येषु तेजस्कायिकेपु उपपद्यते, कृष्णलेश्यो नीललेश्यः । कापोतलेश्य उद्वर्तते, यल्लेश्य उपपयते तल्लेश्य उद्वर्तते ? हन्त, गौतम ! कृष्णलेश्यो.. पाले पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होता है । (सिय कण्हलेस्से) स्यात् कृष्णलेश्या वाला (उववइ) उद्वर्तन करता है (सिय नीललेस्से) स्यात् नीललेश्या में (सिय काउलेस्से) स्याव कापोतलेश्या में (उदवइ) उदवर्तन करता है (सिय) स्यात (जल्लेस्से उववज्जइ तल्लेस्से उववइ) जिस लेश्या वाला उत्पन्न होता है स्यातू उस लेश्यावाला उद्वर्तन करता है (तेउलेस्से उववज्जइ नो चेव णं तेउलेस्से उववइ) तेजोलेश्या वाले में उत्पन्न होता है परन्तु तेजोलेश्या वाला होकर उतन नहीं करता (एवं आउकाइया) इसी प्रकार अप्कायिक (वणस्सइकाइयावि) वनस्पतिकायिक भी (भाणियब्वा) कहना चाहिए। (से णूणं भंते ! कण्हलेस्से नीललेस्से काउलेस्से तेउकाइए) हे भगवन् ! कृष्णलेश्या वाले, नीललेश्या वाले, कापोतलेश्या वाले तेजस्कायिक (कण्हलेस्सेसु नीललेस्सेसु काउलेस्सेसु तेउकाइएस) कृष्णलेश्यावाले,नीललेश्या वाले, कापोतलेश्या वाले तेजस्कायिकों में (उववज्जइ) उत्पन्न होता है (कण्हलेस्से, नीललेस्से काउलेस्से उववइ) कृष्ण, नील, कापोतलेश्या वाला उद्वर्तन करता है (जल्लेस्से उवयज्जइ तल्लेस्से उववइ) जिस लेश्यावाला उत्पन्न होता है, उस लेश्यावाला उवर्तन करता है ? (हंता गोयमा !) हां गौतम ! (कण्हलेस्से) जाव तेउलेस्सेसु पुढविकाइएसु उववज्जइ) ४ए यावत् रोश्या पृथ्वीयिमा उत्पन्न थाय छे (सिय कण्हलेरसे) स्यात् वेश्यावा (उववट्टइ) वतन ४२ छ (सिय नीललेस्से) स्यात् नीलेश्यामा (सिय काउलेस्से) स्यात् पातश्या (उववट्टइ) वतन ४२ छ सिय) स्यात् (जल्लेस्से उववज्जइ तउलेस्से उववट्टइ) २ श्यामा उत्पन्न याय छ सात त व१या वतन४२ छ (तेउलेस्से उववज्जइ नो चेवणं तेउलेस्से उववट्टइ) वेश्याणामा G4-1 थाय छ ५२न्तु तनश्यावाणा ने वतन नयी ४२ता (एवं आउकाइया) मे प्रारे २५५43 (वणस्सइकाइया वि) वनस्पतिथि: ५५ (भणियव्वा) ४ान थे. ... (से णूणं भंते ! कण्हलेस्से नीललेस्से काउलेस्से तेउकाइए) मावन् ! वेश्यावाणा, नासोश्यापा, पातोश्याला ते२४२४यि (कण्हलेस्सेसु नीललेस्सेसु काउलेस्से तेउकाइ' सु) वेश्यावाणा, नासोश्यावा, पातोश्या ४२४ीमा (उववज्जइ) उत्पन्न याय छे (कण्हलेस्से, नीललेस्से, काउलेस्से उववट्टई) , नla, पातोश्या वर्तन ४२ छ (जल्लेस्से उबवज्जइ तल्लेस्से उववइ) रेश्यावा 4-1 थाय छे, ते वेश्यावा वतन रे छे ? (हंता गोयमा !) , गौतम ! (कण्हलेस्से, नीललेस्से, काउलेस्से तेउकाइए) , प्र०२१
SR No.009341
Book TitlePragnapanasutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size62 MB
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