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________________ प्रमेययोधिनी टीका पद १७ ९० १२ नैरयिकोत्पत्यादिनिरूपणम् १५९ लेश्याश्चारयितव्याः, वानव्यन्तरा यथा असुरकुमाराः, तत् नूनं भदन्त ! तेजोलेश्या ज्योतिष्का म्तेजोलेश्येषु ज्योतिष्केषु उपपद्यते ? यथैव असुकुमारः, एवं वैमानिका अपि, नवरं द्वयोरपि च्यवन्ति, इत्यभिलापः तत् नूनं भदन्त ! कृष्णलेश्यो नीलले श्यः कापोतलेग्यो नरयिकः कृष्णलेश्येषु नीलले श्येषु कापोतलेश्ये पु नैरयिकेषु उपपद्यते कृष्णलेश्यो नीललेश्यः कापोतटेश्य उतेि, यल्लेश्य उपपद्यते तल्लेश्य उद्वर्तते ? हन्त, गौतम ! कृष्णलेश्य नीललेश्य कापोतलेश्य उपपद्यते, यल्लेश्य उपपद्य ते तल्लेश्य उद्वर्तते, तत् नूनं भदन्त ! कृष्णलेश्यो कहने चाहिए (नवरं) विशेष (छप्पि लेस्ला) छहों लेश्याएं (उ चारेयचाओ बोलनी चाहिए। __(बाणमंतरा जहा असुरकुमारा) वानव्यन्तर जैसे असुरकुमार (से गुणं भंते ! तेउलेस्से जोसिए) हे भगवन : तेजोलेश्या वाला ज्योतिष्क देव (ते. लेस्सेसु जोइमिएसु) तेजोलेश्या वाले ज्योतिष्कों में (उववज्जइ ?) उत्पन्न होता है ? (जहेव असुरकुमारए) जैसे असुरकुमार (एवं वेमाणिया घि) इसी प्रकार वैमानिक भी (नवरं दोण्हं पि चयंतीति अभिलावो) विशेषता यह कि दोनों को 'च्यवते हैं ऐसा बोलना। . (से गूणं भंते ! कण्हलेस्से नीललेस्से काउलेस्से नेरइए) हे भगवन् ! कृष्णलेश्या वाला, नील लेश्या वाला, कापोतलेश्या वाला नारक (कण्हलेस्सेसु नीललेस्टेसु काउलेस्लेसु नेरइएसु) कृष्णश्या वाले, नीललेश्या वाले, कापोतलेश्या वाले नारकों में (उववज्जइ) उत्पन्न होता है (कण्हलेस्सा नीललेस्ता काउलेमा उववइ) कृष्ण, नील, कापोतलेश्या में उद्वर्तन करता है (जल्लेस्से उववाह तल्लेस्से उववज्जइ ?) जिस लेश्या में उद्वर्तन करता है, उसी लेश्या में उत्पन्न होता है ? (हंता गोयमा !) हां गौतम ! (कण्ह-नील-काउलेस्से उवधज्जइ) कृष्ण, ४ान (नवर) विशेष (छप्पिलेस्सा) छये वेश्यास। (उ चारपवाओ) पापीन (वाणमंतरा जदा असुरकुमाग) पानव्यन्त२ 240 मसु२४भा२. । (से गुणं भंते । तेउलेरसे जोइसिए) भगवन् । वेश्यावा यतिमi (उववज्जइ ?) पन्न थाय छ १ (जहेव असुरकुमारए) म सुरमार (एवं वेमाणियावि) मे० प्रारे वैभानि पY (नवरं दोण्हं वि चयनीति अभिलावो) विशेषनाग पन्ने न्यवे छ सभा हे. (से गुणं भने । कण्हलेस्से नीललेस्से काउलेम्से नेरइए) अ मावन् ! वेश्यावा, नासश्यावाणा पातश्या ना२४ (कण्हलेग्सेसु नीललेसेसु काउलेस्सेसु नेरइएसु) - सेवा , नातवेश्यावा पारवेश्यावणानामा (उववज्जइ) 34-न थाय छ (कण्हलेस्सा, नीललेस्सा, काउलेस्सा उबबट्टइ) or], नla, ४पातसेश्यामा पनि ४२ छ (जल्लेस्से उववट्टइ तल्लेस्से उववज्जइ ?) २ वेश्यामा पनि ४२ छ, ते४ श्यामi G4-थाय छ (हंता गोयमा !) , गौतम ! (कण्ह, नील, काउलेस्से उववज्जइ) ey, नास, पोतोश्यामा
SR No.009341
Book TitlePragnapanasutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size62 MB
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