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________________ प्रमेयबोधिनी टीको पद १७ सू० १२ नैरयिकोत्पत्यादिनिरूपणम् कायिकेषु उपपद्यते, कृष्णलेश्य उद्वर्तते, यल्लेश्य उपपद्यते तल्लेश्य उद्वर्तते ? इन्त, गौतम ! कृष्णलेश्यः पृथिवी कायिकः कृष्णले श्येषु पृथिवीकायिकेषु उपपद्यते, स्यात् कृष्णलेश्य उद्वर्तते, स्याद नीळलेश्य उद्वर्तते, स्यात् कापोतलेश्य उद्वर्तते, स्याद् यल्लेश्य उपपद्यते स्यात् तल्लेश्य उद्वर्तते, एवं नीलकापोतले श्रेष्षपि, तत् नूनं भदन्त ! तेजोलेश्यः पृथिवीकायिकस्तेजोले श्येषु पृथिवीकायिकेपु उपपद्यते पृच्छा, हन्त, गौतम ! तेजोलेश्येषु तक (नवरं तेउलेस्ला अन्भहिया) विशेष यह कि तेजोलेश्या वाले अधिक है। (से गूणं भंते ! कण्हलेस्से पुढविकाइए) क्या भगवन् ! कृष्णलेश्या वाला पृथ्वीकायिक (कण्हलेस्सेसु पुढविकाइएसु) कृष्णलेश्यावाले पृथ्वीकायिकों में (उव वजइ) उत्पन्न होता है (कण्हलेस्ले उववइ) कृण्णलेश्या वाला उद्वर्तन करता है (जल्लेस्से उववज्जइ तल्लेस्से उववइ ?) जिस लेश्या वाला होकर उत्पन्न होता है उसी लेश्यावाला होकर उद्वर्तन करता है ?(हंता गोयमा!) हां गौतम! (कण्हलेस्से पुढविकाइए कण्हलेस्सेसु पुढविकाइएसु उववज्जइ) कृष्णलेश्या वाला पृथ्वीकायिक कृष्णलेश्या वाले पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होता है (सिय कण्हलेस्ले उववइ) स्यात् कृष्णलेश्या वाला में उद्वर्तन करता है (सिय नीललेस्से उववइ) स्यात् नीललेश्या वाला में उद्वर्तन करता है (सिय काउलेस्से उववइ) स्यात् कापोतलेश्या वाला में उद्वर्तन करता है (जल्लेस्से उववज्जइ तल्लेस्से उववइ) जिस लेश्या वाला होकर उत्पन्न होता है, उस लेश्या वाला में उद्वर्तन करता है (एवं नीलकाउलेस्साप्लु वि) इसी प्रकार नील और कापोतलेश्या में भी। ' (से णूणं भंते ! तेउलेस्ले पुढविकाइए तेउलेस्सेलु पुढविकाइएसु उववતેજલેશ્યાવાળા અધિક છે. (से णूणं भंते ! कण्हलेस्से पुढ विकाइए) शु भगवन् ! वेश्यावा पृथ्वी यि (कण्हलेस्सेसु पुढविकाइएमु) वेश्या पृथ्वीमा (उववज्जइ) 4-1 थाय छ (कण्हलेस्से उवपट्टइ) शुश्यामा पनि ४२ छे (जल्लेस्से उववज्जइ तल्लेस्से उववइ) २ श्याम 64- 'याय छे, ते वश्यायी वतन ४२ छ (हंता गोयमा!) । गौतम । (कण्हलेस्से पुढविकाइए कण्हलेस्सेसु पुढविकाइएसु उववज्जइ) सेश्यावाणा पृथ्वीयि: ३श्यावा 24sfulli Gurन थाय छ (सिय कण्हलेस्से उववट्टइ) स्यात् ३०दोश्याम वतन ४२ छे (सिय नीललेरसे उववट्टइ) स्यात् नासोश्यापणामi अवतन थाय छ (सिय काउलेस्से उववट्टइ) स्यात् पातवेश्यावरणाम वन रे छ (सिय जल्लेस्से उववजइ सिय तल्ले से उववट्टइ) स्यात् २ श्याप न थाय छ स्यात् ये देश्यावावतन ४२ छ (एवं नीलकाउलेक्सासु वि) मे रे नla मने કાપલેક્ષાવાળા પણ (से णूणं भंते ! तेउलेस्से पुढविकाइए तेउल्लेस्सेसु पुढविकाइएसु उववज्जइ पुच्छा ?) शुई
SR No.009341
Book TitlePragnapanasutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size62 MB
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